वर्तमान में देश के लिए भाजपा एक आदर्श सत्तारूढ़ दल है जो अपनी सकारात्मक और तरक्की पसंद सोच के जरिये देश को विकास की राह में आगे बढ़ा रहा है। यही कारण है कि केंद्र में तीन साल की सत्ता के बावजूद भाजपा-नीत नरेंद्र मोदी सरकार की लोकप्रियता में कमी आने की बजाय लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। भाजपा को लगातार चुनावों में मिल रही बम्पर विजय इसीका उदाहरण है। फिलहाल भाजपा के इस विजय रथ की रफ़्तार के आसपास भी कोई और दल नज़र नहीं आता।
विगत दिनों दिल्ली नगर निगम के चुनाव का परिणाम भी सामने आया। एमसीडी चुनाव परिणाम में भाजपा ने 270 में से 181 सीटों पर जीत दर्ज कराई और आम आदमी पार्टी सहित कांग्रेस का करीब-करीब सूपड़ा साफ कर दिया। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस हार को सीधे स्वीकार न करते हुए फिर से इसका ठीकरा ईवीएम पर फोड़ने की कोशिश की। हालांकि इस बार वे अधिक भयाक्रांत नजर आए। 11 मार्च को पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम आए थे, जिनमें उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम बेहद अहम थे। यूपी में भाजपा ने प्रचंड बहुमत हासिल किया और योगी आदित्यनाथ को वहां मुख्यमंत्री के तौर पर प्रदेश की बागडोर सौंपी गई।
इससे पहले मध्य प्रदेश में पंचायत और स्थानीय निकायों के चुनाव हुए थे, जिनमें भी भाजपा विजयी हुई थी। कुल मिलाकर पिछले डेढ़ वर्ष में मध्य प्रदेश सहित अन्य राज्यों में गिने-चुने उपचुनाव हुए, जिनमें मतदान के बाद भाजपा के ही प्रत्याशी विजयी हुए। बताने की जरूरत नहीं है कि 2014 में हुए लोकसभा चुनाव परिणाम में मतदाताओं ने भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनायी और देश में पहली पूर्ण बहुमत की कोई गैरकांग्रेसी सरकार बनी। स्पष्ट है कि एक के बाद एक लगातार, हर मोर्चे पर, हर स्तर पर होने वाले चुनावों में भाजपा का ही सितारा बुलंद होता गया।
अब सवाल उठता है कि क्या भाजपा की ये सिलसिलेवार जीत महज संयोग है या इसके पीछे ठोस कारण हैं। असल में, एक अरब से अधिक आबादी वाले देश में करोड़ों वोटर्स की मर्जी दर्ज होने के बाद सब कुछ ठोस ही होता है। राजनीति में संयोग जैसा शब्द नहीं चलता बल्कि यहां ठोस धरातल पर दलों को उनकी नीयत, क्षमता और काम करने की योग्यता के आधार पर ही जांचा जाता है। किसी भी दल को सत्ता में बने रहना है, तो जनता की उम्मीदों पर खरा उतरना ही एकमात्र कसौटी है। भाजपा इन मापदंडों पर एकदम खरा उतरती है।
दिल्ली नगर निगम के चुनाव देश की सत्ता का केंद्र नहीं थे, लेकिन अपने आप में अर्थपूर्ण थे। इसी दौरान छत्तीसगढ़ के सुकमा में नक्सलियों ने एक बड़ा हमला करते हुए सीआरपीएफ के दो दर्जन जवानों को मौत के घाट उतार दिया। यह भाजपा जैसी पार्टी के ही संस्कार थे कि सुकमा की घटना के चलते एमसीडी में मिली विराट जीत के बावजूद भाजपा ने जश्न न मनाने का फैसला किया और इस जीत को शहीदों को समर्पित किया गया। अन्यथा राजनीति में यह भी देखा गया है कि कैसे कुछ दल जीत की खुमारी में ऐसे डूबते हैं कि लोगों के जान-माल तक का ख्याल नहीं करते।
समझने की कोशिश करें कि क्या वजह है कि देश का मतदाता बार-बार, हर बार भाजपा को ही चुन रहा है, तो निश्चित ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कद इस विजय रथ में केंद्रीय भूमिका निभाता है, लेकिन संगठन की कसावट और योजनाओं के अचूक क्रियान्वयन के चलते पार्टी के भीतर एक प्रकार की कर्मशील कार्य संस्कृति विकसित हो चुकी है जो हमें अब अखिल भारतीय रूप से देखने को मिलती है। तिसपर संगठन के अध्यक्ष इस वक़्त अमित शाह जैसे मंझे हुए रणनीतिकार हैं। उनकी चुनावी रणनीतियों और सांगठनिक प्रबंधन का जवाब किसी विपक्षी दल के पास नज़र नहीं आता।
भाजपा से इतर देश की अन्य पार्टियों पर एक नज़र डालें तो कांग्रेस पार्टी ने दशकों तक देश में शासन किया और उसके शासन काल में आम आदमी सदा हाशिये पर रहा। कांग्रेस ने सदा कथित धर्मनिरपेक्षता के नाम पर समुदाय विशेष का तुष्टिकरण कर उन्हें वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करती रही। बाद में उनके कल्याण के लिए कोई काम नहीं किया। कांग्रेस विकास के मोर्चे पर भी विफल रही और भ्रष्टाचार रोकने के मसले पर पूरी तरह नाकाम रही।
कांग्रेस के राज में निरंकुश नेताओं, मंत्रियों ने सिलसिलेवार कई-कई हजार करोड़ के घोटाले किए और देश को गर्त में झोंकने में कोई कसर नहीं छोड़ी। समाजवादी पार्टी को देखें तो उसमें परिवारवाद किसी कुटैव की भांति व्याप्त है, जिसके चलते सपा केवल अपने ही गुट को उपकृत करने में लगी रही और जनता हाशिये पर चली गयी। बहुजन समाज पार्टी अपनी नकारात्मक विचारधारा के चलते मतदाता के मन में पैठ नहीं बना पाई। बसपा सुप्रीमो मायावती आत्मकेंद्रित और अहंकार में होने के कारण केवल स्वयं के उन्नयन की ओर ध्यान देती रही।
ऐसे में देश में भाजपा के अतिरिक्त फिलहाल कोई भी दल ऐसा नहीं दिखता जो कि अपने आप में संपूर्ण और समूचा हो। निसंदेह भाजपा ही वह दल है। भाजपा के अलावा कोई विकल्प नहीं है। भाजपा ने निरंतर संघर्ष से यह मुकाम हासिल किया है। यही कारण है कि जब 2014 में नरेंद्र मोदी पीएम प्रत्याशी के तौर पर सभाएं कर रहे थे, तब उन्होंने देश को कहा कि अच्छे दिन आने वाले हैं और देश ने इस बात पर यकीन भी किया। सत्ता मिलने पर मोदी ने इस बात को अपने अबतक के शासन में साबित कर दिखाया है कि अच्छे दिनों की परिभाषा क्या है। आज देश में शासन के प्रति निराशा और अविश्वास की जगह एक उम्मीद और उत्साह का भाव दिखाई दे रहा है।
बेशक, मोदी के शासन में भाजपा ने आम आदमी व साधारण, निर्धन वर्ग को केंद्र में रखकर ही योजनाओं का निर्माण और क्रियान्वयन सुनिश्चित किया। अन्नपूर्णा योजना हो या उज्ज्वला योजना, हर बार उन्होंने समाज के अंतिम पंक्ति के व्यक्ति को ही ध्यान में रखा। जन धन योजना लाकर उन्होंने वंचित तबके को बैंकिंग की मुख्य धारा से जोड़ा। हाल ही में मोदी ने उड़ान नामक योजना का शुभारंभ किया जिसमें रियायती दरों पर अब हवाई यात्रा की जा सकेगी। इस योजना का नाम उड़ान भी “उड़े देश का आम नागरिक” जैसे नारे के साथ बनाया गया। केंद्र की भाजपा सरकार अपनी स्वच्छ भारत अभियान जैसे लोकप्रिय और जन आंदोलनकारी योजना के चलते नित नए प्रतिमान गढ़ रही है।
कुल मिलाकर वर्तमान में देश के लिए भाजपा एक आदर्श सत्तारूढ़ दल है जो अपनी सकारात्मक और तरक्की पंसद सोच के जरिये देश को विकास की राह में आगे बढ़ा रहा है। यही कारण है कि केंद्र में तीन साल की सत्ता के बावजूद नरेंद्र मोदी सरकार की लोकप्रियता में कमी आने की बजाय बढ़ोत्तरी ही हुई है। भाजपा को लगातार चुनावों में मिल रही जीतें इसीका उदाहरण है। फिलहाल भाजपा के इस विजय रथ की रफ़्तार के आसपास भी कोई और दल नज़र नहीं आता।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)