मोदी के नेतृत्व की इस दो दशकीय यात्रा का सार यह है कि वे सम्पूर्ण निष्ठा एवं समर्पण के साथ अपने कर्तव्य के निर्वहन में जुटे रहते हैं। उनमें समाज के पिछड़े व वंचित जनों के प्रति करुणा है, तो राष्ट्र को हानि पहुंचाने वाले ताकतों के विरुद्ध वे पूरी कठोरता का भाव भी रखते हैं। दृढ़ इच्छाशक्ति से पुष्ट उनका निर्णायक नेतृत्व उन्हें एक मजबूत नेता बनाता है। यह सब विशेषताएं ही उनकी लोकप्रियता का रहस्य हैं। इन्हीं विशेषताओं के साथ नरेंद्र मोदी की बीस वर्षों की यह नेतृत्व-यात्रा चली है, जिसमें उन्होंने बड़े-बड़े भागीरथ कार्यों का निष्पादन और हिमालय-सी समस्याओं का समाधान किया है। मोदी के साहसिक निर्णय आज तो जन-स्वीकार्य हैं ही, आने वाले सैकड़ों वर्षों तक भी उन्हें उनके इन निर्णयों के लिए याद किया जाएगा।
एक नेता को जनता जब बार-बार भारी बहुमत से चुनकर भेजती है, हर बार पिछली बार से ज्यादा बहुमत के साथ तो इसके पीछे क्या कारण होता है? लोकतान्त्रिक प्रणाली में चयनित होना कोई तुक्का तो नहीं है!
बात यहाँ जिस नेता की हो रही है, वो हैं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, जिन्होंने मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के तौर पर सत्ता में 20 वर्ष पूरे कर लिए हैं। विपक्षी उनपर आरोप लगाते हैं, तो विरोधी उनके चयन को गलती बताते हैं। अब गलती तो एकबार या दो बार हो सकती है, हर बार नहीं।
आज राज्य से केंद्र तक शासन का नेतृत्व करते हुए बीस साल पूरे कर चुके नरेन्द्र मोदी के सार्वजनिक जीवन को समझना हो तो उसे दो हिस्सों में बांटकर देखना होगा – मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री। मुख्यमंत्री के तौर पर उन्होंने पहला कार्यभार संभाला था 7 अक्टूबर 2001 को, इसके बाद वह चार बार गुजरात के मुख्यमंत्री रहे।
नरेद्र मोदी का पहला और दूसरा कार्यकाल काफी मुश्किलों भरा रहा। 2001 में तो भूकंप के बाद गुजरात की भयंकर जन और धनहानि हुई। सरकारी आंकड़े के मुताबिक तकरीबन 20,000 के करीब लोग भूकंप में मारे गए। गुजरात में भुज, भचाऊ और अंजार जैसे शहर तो पूरी तरह से ज़मींदोज़ ही हो गए।
एक पत्रकार के तौर पर मैंने खुद गुजरात के इन मंजरों को अपने कैमरे में कैद किया था। इन शहरों को इस आपदा से उबारना आसान नहीं था, लेकिन इन्हें फिर से बसाने का भागीरथ कार्य एक मुख्यमंत्री के तौर पर नरेन्द्र मोदी ने कर दिखाया।
फिर एक लम्बा संघर्षपूर्ण दौर नरेन्द्र मोदी ने देखा जब फरवरी 2002 में गोधरा काण्ड हुआ, जिसमें 59 यात्री ट्रेन के अन्दर ही जला दिए गए, ये वो लोग थे जो अयोध्या से वापस गुजरात आ रहे थे। गोधरा की प्रतिक्रिया में गुजरात दंगे हुए।
यह दंगे जब हुए, मोदी सत्ता में बिलकुल नये थे और चुनौती काफी भीषण थी। मोदी के ऊपर आरोप लगा कि उन्होंने दंगे को संभाला नहीं। यह मामला गुजरात की अदालतों से लेकर कई वर्षों तक सुप्रीम कोर्ट में भी चला। देश और दुनिया की तमाम ताकतें मोदी को उलझाने में लगी रहीं लेकिन लम्बी लड़ाई के बाद मोदी को देश की सर्वोच्च अदालत ने बेक़सूर करार दिया।
इन वर्षों में मोदी के मुख्यमंत्री रहते हुए गुजरात ने आशातीत सफलता हासिल की और गुजरात मॉडल की चर्चा पूरे देश भर में होने लगी। विपक्ष को मोदी की बढ़ती लोकप्रियता से भय लगने लगा था। 2013 आते-आते विपक्ष के सारे आरोप धाराशायी होने लगे थे। यह तय हो गया कि मोदी को राष्ट्रीय स्तर पर अब बड़ी भूमिका मिलने वाली है।
2014 आते आते मोदी नाम की अनुगूंज देश-विदेश में फैलने लगी। मोदी लोकसभा चुनाव में भाजपा का चेहरा बन चुके थे। उनके नेतृत्व में 2014 में पहली बार देश ने एक अभूतपूर्व व्यापक चुनाव अभियान देखा।
इस चुनाव ने बहुत सारे मिथक तोड़ दिए। देश में इतने वर्षों से जो तुष्टिकरण की सियासत कर रहे थे, उनकी हवा निकल गयी। मोदी का कदम इस बार जब दिल्ली की तरफ बढ़ा तो तय हो गया था कि राष्ट्रीय राजनीति में संघ से तपा-तपाया यह स्वयंसेवक अब छह करोड़ लोगों का नहीं, देश के 135 करोड़ लोगों प्रतिनिधित्व करेगा।
विचार करें तो नरेन्द्र मोदी का गांधीनगर से दिल्ली तक का सफ़र जब देखा जायेगा तो इस बात की समीक्षा जरूर होगी कि उनकी राहों में किस तरह जगह-जगह नुकीले कांटे बिछाए गए थे लेकिन जैसा कि कहा जाता है कि बहादुर लोग आपदा को अवसर में तब्दील कर लेते हैं। वैसे ही मोदी ने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों द्वारा दी गई गई चुनौती को अपने फायदे के तौर पर इस्तेमाल किया।
नरेन्द्र मोदी द्वारा गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर किये गए कार्य को लेकर पूरे देश में उत्सुकता थी, जोश था और उसे जानने, समझने और अपनाने की प्रबल इच्छा थी। वर्ष 2013 आते आते, मोदी के पक्ष में हवा चलने लगी थी, लेकिन उनके ऊपर आरोपों की वर्षा भी हो रही थी, जिसका कुछ जवाब वह खुद दे रहे रहे थे, कुछ वक़्त भी दे रहा था।
2014 लोकसभा चुनाव से पहले मोदी को पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री का उम्मीदवार करार दिया गया, तब पूरे देश में उसी जोश-खरोश के साथ पार्टी को नेतृत्व देने की जिम्मेदारी मोदी के कंधे पर आ पड़ी।मोदी जब चुनावी मैदान में थे, तब उनकी लोकप्रियता का अनुमान तो था, लेकिन ऐसा नहीं लग रहा था कि जनता का रुझान इस कदर मोदी के पक्ष में जाएगा कि भाजपा अपने दम पर बहुमत पा जाए, लेकिन जब नतीजे आये तो सभी विरोधी दांतों तले उँगलियाँ दबाने को मजबूर हो गए।
भाजपा को 282 सीटें मिली थीं। एक लम्बे अरसे के बाद देश में पूर्ण बहुमत की सरकार बनी। 26 मई, 2014 को नरेन्द्र दामोदरदास मोदी ने प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली। इसके बाद उनका शासन चला जिसमें उन्होंने नोटबंदी-जीएसटी जैसे कुछ सख्त आर्थिक फैसले लिए जिसे विपक्ष ने खूब मुद्दा बनाया और विश्लेषकों ने माना कि यह सरकार के लिए जोखिम भरे फैसले हैं।
जीएसटी को लेकर विपक्ष सवाल उठा रहा था कि इसे क्यों लागू किया गया, इससे तो अर्थव्यवस्था ही तबाह हो जाएगी, सत्ता पक्ष के सामने यह भय दिखाया जा रहा था कि दुनिया भर में कोई भी सरकार जीएसटी को लागू करके सत्ता में वापस नहीं आ सकी है।
अमूमन जब आप बड़े फैसले लेते हैं तो उसका विरोध होता है। जब बात नोटबंदी और जीएसटी को लेकर की जाएगी तो इस बात की भी चर्चा होगी कि प्रधानमंत्री ने एक बड़ा जोखिम लिया था। जनता उनके खिलाफ जा सकती थी। इतिहास आने वाले समय में इन दोनों विषयों की चर्चा करेगा।
खैर, जब 2019 में मोदी दोबारा चुनावी मैदान में आये तो कहा जाने लगा था कि शायद इस बार विपक्ष का पलड़ा भारी रहेगा। लेकिन मोदी की विशेषता है, असंभव को संभव बनाना। 2019 के चुनाव में भाजपा को अपने बूते पर ही 303 सीटें मिलीं। इसका सीधा सीधा मतलब ये था कि जनता ने मोदी को बड़े फैसले लेने का मैंडेट दे दिया था।
किसी बड़े नेता के व्यक्तित्व का जब भी आकलन किया जाता है तो यह देखा जाता है कि उस नेता में चुनौती लेने की कितनी बड़ी इच्छा शक्ति कैसी है। मोदी जब दूसरी बार प्रधानमंत्री बने तो देश के समने कुछ वैसी समस्याएं मुंह बाये खाड़ी थी, जिनका निराकरण लगभग असंभव माना जा रहा था।
कितनी सरकारें आईं और गईं लेकिन किसी ने इनके बारे में कदम उठाने की ज़हमत नहीं उठाई, इन मुद्दों की सभी चर्चा करते रहे लेकिन वोट बैंक खिसकने के भय ने सबके हाथ बांध रखे थे।
जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद-370 एक ऐसा काँटा था जो देश की आत्मा को आज़ादी के बाद से लगातार चुभ रहा था और इसे निकालना लगभग असंभव समझा जा रहा था। लेकिन नरेन्द्र मोदी ने संसद की मदद से इसका स्थायी समाधान देश के सामने पेश किया।
तीन तलाक, जैसा कि हम सभी जानते हैं एक बेहद ही संवेदनशील मुद्दा था, जिसको लेकर कांग्रेस और कई अन्य दल वर्षो से राजनीतिक रोटियाँ सेंक रहे थे। पीएम मोदी ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर मुस्लिम समाज के एक बड़े वर्ग को साथ लेकर संसद के द्वारा इसे गैर-कानूनी करार दिया। यह फैसला मुस्लिम महिलाओं की ज़िन्दगी से जुड़ा हुआ है। आने वाला वक़्त भी इस फैसले को ज़रूर सराहेगा।
नागरिकता संशोधन क़ानून भी एक महत्वपूर्ण कार्य रहा जिससे पाकिस्तान, अफगानिस्तान व बांग्लादेश के प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को देश की नागरिकता देने की राह खुली। हालाँकि सबने यह अपनी आँखों से देखा कि इस क़ानून के मुद्दे पर कैसा कुप्रचार किया गया और तब देश हित की बात करने वाले विपक्षी किस तरह से घुसपैठियों के पक्ष में खड़े नजर आए।
और आखिर में एक बहुत बड़ी परिघटना हुई, जिसने 100 करोड़ हिन्दू जनमानस को फक्र से सीना उठाकर चलने का हक़ दिया। वह था अदालत के ज़रिये अयोध्या मसले का सम्मानपूर्वक समाधान। सैकड़ों वर्षों की तपस्या, श्रम और त्याग के फलस्वरूप अयोध्या में राम मंदिर की नींव रखी गई।
शताब्दियों से चला आ रहा यह ऐतिहासिक विवाद नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में, सरकार के प्रयासों व न्यायालय के निर्णय से, एक शानदान समाधान को प्राप्त हुआ। प्रधानमंत्री मोदी के हाथों संपन्न भूमिपूजन के साथ ही मंदिर निर्माण का कार्य आरम्भ हो चुका है।
समग्रतः मोदी के नेतृत्व की इस दो दशकीय यात्रा का सार यह है कि वे सम्पूर्ण निष्ठा एवं समर्पण के साथ अपने कर्तव्य के निर्वहन में जुटे रहते हैं। उनमें समाज के पिछड़े व वंचित जनों के प्रति करुणा है, तो राष्ट्र को हानि पहुंचाने वाले ताकतों के विरुद्ध वे पूरी कठोरता का भाव भी रखते हैं। दृढ़ इच्छाशक्ति से पुष्ट उनका निर्णायक नेतृत्व उन्हें एक मजबूत नेता बनाता है। यह सब विशेषताएं ही उनकी लोकप्रियता का रहस्य हैं।
इन्हीं विशेषताओं के साथ नरेंद्र मोदी की बीस वर्षों की यह नेतृत्व-यात्रा रही है, जिसमें उन्होंने बड़े-बड़े भागीरथ कार्यों का निष्पादन और हिमालय-सी समस्याओं का समाधान किया है। आने वाले सैकड़ों वर्षों तक मोदी को उनके साहसिक कार्यों के लिए याद किया जाता रहेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)