कुल मिलाकर सरसंघचालक मोहन भागवत ने अपने वक्तव्य में संघ का वही स्वरूप प्रस्तुत किया जैसा कि हमेशा से वास्तव में वो है, लेकिन जिसे विरोधियों द्वारा दुष्प्रचार के आवरण में ढंककर देश के सामने संघ की एक नकली और गलत छवि दिखाई जाती रही है। आने वाले कुछ महीनों में संघ की तरफ से और भी कार्यक्रम होंगे, जिनमें विचार विमर्श होगा और देश की मौजूदा स्थिति पर चर्चा होगी। जाहिर है, इसका उद्देश्य यह है कि देश के एक बड़े वर्ग को उन मुद्दों से रूबरू कराया जाए जिसपर सालों तक कांग्रेस आदि दलों के दुष्प्रचार के कारण गलतफहमी व्याप्त रही है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका समाज में राजनीतिक विमर्श की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव में संघ ने एक मार्गदर्शक की यथोचित भूमिका निभाई थी। गत दिनों संघ ने अपने मंच पर देश की अलग-अलग विचारधाराओं से सम्बंधित लोगों को आमंत्रित करके एक सन्देश देने की कोशिश की है कि राष्ट्र निर्माण में सभी जाति, समुदाय और धर्म के लोगों की बराबर भूमिका है और होनी चाहिए। इसके साथ ही संघ के प्रति जो भ्रम फैलाए गए हैं, उन्हें भी खत्म करने की कोशिश की गयी है।
पिछले दिनों जब पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी संघ के मंच पर उपस्थित हुए तो विरोध करने का कोई कारण न होने के बावजूद कांग्रेस द्वारा संघ के प्रति अपनी अलोकतांत्रिक और अछूत दृष्टि के कारण इसका विरोध किया गया। कांग्रेस, वामपंथी आदि दलों द्वारा लम्बे समय से संघ को लेकर भ्रांतियां फैलाई जाती रही हैं।
आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने ‘भविष्य का भारत : संघ का दृष्टिकोण’ कार्यक्रम में जो विचार प्रस्तुत किए, वे संघ के प्रति सभी भ्रांतियों का उन्मूलन करने वाले थे। सबसे पहले बात आती है राष्ट्र गौरव की और भारत देश की परिकल्पना की। मोहन भागवत ने कहा कि हिन्दू राष्ट्र का यह मतलब कतई नहीं कि उसमें मुसलमानों के रहने के लिए जगह नही होगी। भागवत ने उन तत्वों को बाखूबी उद्धृत किया जो भारतीय सविधान के मूल स्तम्भ हैं। इस तरह उन्होंने संघ को संविधान और लोकतंत्र विरोधी बताने वालों को जवाब दिया।
देश के अन्य विचारधारा से जुड़े लोगों के लिए भी भागवत ने स्पष्ट सन्देश दिया है कि संघ सबको अपने अन्दर समाहित करने वाला संगठन है। वह एक “युक्त भारत” का पक्षधर है, “मुक्त भारत” का नहीं। यानि हर कोई जो भारत में रहता है, आरएसएस उसके साथ खड़ा है।
संघ प्रमुख ने राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में उन लोगों की भूमिका को भी स्वीकार किया जो संघ का लगातार विरोध करते रहे हैं। आजादी की लड़ाई में कांग्रेस के योगदान का भी संघ प्रमुख ने भी उल्लेख किया। ये संघ की वैचारिक उदारता और लोकतान्त्रिक दृष्टि का परिचय देने वाली बात है।
भाजपा और संघ के संबंधों पर भी मोहन भागवत ने बात रखी। वर्तमान प्रधानमंत्री समेत कई गणमान्य मंत्री और सार्वजानिक पदों पर विराजमान नेता संघ से निकले हैं। इसलिए सरकार पर संघ के नियंत्रण का आरोप विरोधी लगाते रहते हैं। इसपर मोहन भागवत ने स्पष्ट किया कि संघ सरकार के कार्यों में दखल नहीं देता, नागपुर से कोई फ़ोन प्रधानमंत्री कार्यालय में नहीं जाता है। लेकिन वैचारिक स्तर पर संघ का मार्गदर्शन हमेशा सरकार में बैठे लोगों को मिलता रहता है।
कुल मिलाकर सरसंघचालक मोहन भागवत ने अपने वक्तव्य में संघ का वो स्वरूप प्रस्तुत किया जो सदा से ही वास्तव में वो है, लेकिन जिसे विरोधियों द्वारा दुष्प्रचार के आवरण में ढंककर देश के सामने संघ की एक नकली और गलत छवि दिखाई जाती रही है। आने वाले कुछ महीनों में संघ की तरफ से और भी सामाजिक कार्यक्रम होंगे, जिनमें विचार विमर्श होगा और देश की मौजूदा स्थिति पर चर्चा होगी।
जाहिर है, इसका आशय यह भी है कि देश के एक बड़े वर्ग को उन मुद्दों से रूबरू कराया जाए जिसपर सालों तक कांग्रेस आदि दलों के दुष्प्रचार के कारण गलतफहमी व्याप्त रही है। बहरहाल, एक बात तो कहनी होगी कि अब जब चुनाव से पहले कुछ नेता “हिन्दू बनने और दिखने” की राह पर अग्रसर हैं, मोहन भागवत ने हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे की बात करके विचारधारा के स्तर पर संभावनाओं के नए द्वार खोले हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)