भारत-इजरायल संबंधों में मजबूत स्थिति में भारत ही रहेगा !

भारत-इजरायल संबंधों में दोनों देशों के परस्पर हितों की पूरी मौजूदगी है, लेकिन फिर भी भारत की स्थिति मजबूत रहेगी। इसका कारण यह है कि आवश्यक होने पर भारत इजरायल का साथ छोड़ने पर विचार कर सकता है, क्योंकि जिन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वो इजरायल से जुड़ रहा उन्हें पूरा करने के लिए उसके पास कई और विकल्प मौजूद हैं। लेकिन इजरायल किसी भी हाल में भारत का साथ छोड़ना नहीं चाहेगा, क्योंकि उसके पास बड़े बाजार और वैश्विक साझेदार जैसी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भारत से बेहतर विकल्प नहीं है। यही कारण है कि येरुशलम मसले पर भारत के विरोधी रुख के बावजूद इजरायली प्रधानमंत्री आज भारत दौरे पर हैं।

इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच नौ क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर सहमति कायम हुई है। कई अनुबंधों पर हस्ताक्षर भी किए गए हैं। इन नौ क्षेत्रों में कृषि, तेल और गैस; सुरक्षा और साइबर तकनीक; पेट्रोलियम, फिल्म निर्माण, उड्डयन, नवीन ऊर्जा, अन्तरिक्ष और पारंपरिक चिकित्सा जैसे क्षेत्र शामिल हैं। इसके अलावा आतंकवाद के मोर्चे पर भी दोनों देश पीड़ित हैं। इजरायल जहां हमास जैसे आतंकी संगठन से जूझ रहा है, तो वहीं भारत पाक प्रेरित आतंकवाद का शिकार है।

देश में तो अब बहुत आतंकी हमले नहीं होते, मगर जम्मू-कश्मीर में अब भी आतंक की धमक जारी है। लिहाजा आतंक के इस बिंदु पर दोनों देशों का निकट आना स्वाभाविक ही है। अन्तरिक्ष के क्षेत्र में भारत बेहतर काम कर रहा है, मगर अन्तरिक्ष की तकनीक का रक्षा क्षेत्र में उपयोग करने की दिशा में इजरायल से भारत को अपेक्षित सहायता मिल सकती है। इन सब बातों को देखते हुए इजरायल के प्रधानमन्त्री की यह भारत यात्रा अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जा रही है।   

प्रधानमंत्री मोदी अपने इजरायली समकक्ष बेंजामिन नेतन्याहू के साथ

पता नहीं, यह प्रधानमंत्री मोदी का कूटनीतिक कौशल है या सहज मानवीय व्यवहार कि वे अपने किसी भी विदेशी समकक्ष के साथ राजनयिक संबंधों को व्यक्तिगत संबंधों के धरातल पर पुष्ट करने में अद्भुत ढंग से सफल सिद्ध होते हैं। विदेशी समकक्षों के प्रति अपने संबोधन और व्यवहार में मित्रता का सहज भाव उत्पन्न करने से लेकर उनकी रुचियों के अनुसार आयोजन रचने तक में मोदी का कोई जवाब नहीं है। उदाहरण के तौर पर देखें तो पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के भारत आगमन पर मोदी उन्हें ‘मिस्टर ओबामा’ जैसे संबोधनों की बजाय ‘मित्र बराक’ कहकर संबोधित करते थे।

वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप से मोदी की आत्मीयता इससे प्रदर्शित होती है कि मोदी के अमेरिका दौरे के बाद ही ट्रंप की बेटी का जब भारत आगमन हुआ, तब मोदी उनसे ऐसे मिले जैसे अपने किसी पारिवारिक सदस्य से मिल रहे हों। जापान, चीन, ब्रिटेन और यहाँ तक कि पाकिस्तान के राष्ट्रप्रमुखों तक से मोदी ने भिन्न-भिन्न प्रकार से आत्मीयता स्थापित करने का प्रयास किया है। अब इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की भारत यात्रा के दौरान उनके प्रति मोदी का संबोधन ‘बीबी’ (उनका उपनाम) सुनने को मिल रहा। ये सभी उदाहरण राजनयिक संबंधों को व्यक्तिगत रूप देने में मोदी की कुशलता का ही परिचय देते हैं।

लेकिन, विद्रूप यह है कि देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस मोदी के अपने समकक्षों के प्रति इस आत्मीय व्यवहार का मजाक उड़ाने में लगी है। इजरायली प्रधानमंत्री के इस दौरे पर जब मोदी ने गले लगकर उनका स्वागत किया तो कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर मोदी के गले लगने को लेकर एक बेहद छिछले स्तर का वीडियो बनाकर साझा कर दिया गया। कहने की जरूरत नहीं कि ये कृत्य कांग्रेस के वैचारिक दिवालियेपन को ही दिखाता है।

इस विडियो से जाहिर है कि मोदी विरोध के लिए राष्ट्रहित की उपेक्षा करने में भी कांग्रेस को कोई दिक्कत नहीं है। कांग्रेस ने अपने शासन के दौरान कभी इजरायल का महत्व नहीं समझा और आज जब मोदी इजरायल को साधने की कोशिशों में लगे हैं तो वो ऐसी निम्नस्तरीय हरकते कर रही है। कांग्रेस को कोई समझाए कि उसकी इस निम्न स्तरीय हरकत का भारतीय विदेशनीति पर किस कदर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

खैर, पुनः भारत-इजरायल संबधों पर आएं तो यह एक तथ्य है कि किसी भी देश की विदेश नीति का मूल आधार ‘राष्ट्रहित’ ही होता है और वो इसका आकलन करने के पश्चात् ही किसी भी देश से अपने संबंधों की दशा-दिशा निर्धारित करता है। इस परिप्रेक्ष्य में अगर भारत-इजरायल संबंधों को देखें तो बड़ी अनुकूल स्थिति दिखाई देती है। भारत के लिए इजरायल का महत्व मुख्यतः विभिन्न क्षेत्रों में उसकी उन्नत तकनीक के कारण है, तो वहीं इजरायल को अपने उत्पादों के लिए बड़े बाजार तथा विश्व बिरादरी में एक मजबूत और विश्वसनीय साथी की छवि भारत में दिखाई देती है।

ये सही है कि भारत-इजरायल संबंधों में दोनों देशों के परस्पर हितों की पूरी मौजूदगी है, लेकिन फिर भी भारत का पलड़ा थोड़ा अधिक भारी है। पलड़ा भारी होने का कारण यह है कि आवश्यक होने पर भारत इजरायल का साथ छोड़ने पर विचार कर सकता है, क्योंकि जिन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वो इजरायल से जुड़ रहा उन्हें पूरा करने के लिए उसके पास कई और विकल्प मौजूद हैं। लेकिन इजरायल किसी भी हाल में भारत का साथ छोड़ना नहीं चाहेगा, क्योंकि उसके पास बड़े बाजार और वैश्विक साझेदार जैसी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भारत से बेहतर विकल्प नहीं है। इस कारण परस्पर हितों पर आधारित इन सबंधों में भारत कुछ अधिक मजबूत स्थिति में है। यही कारण है कि येरुशलम मसले पर भारत के विरोधी रुख के बावजूद इजरायली प्रधानमंत्री आज भारत दौरे पर हैं। उम्मीद की जा सकती है कि नेतन्याहू के इस दौरें का प्रभाव समझौतों और सहमतियों से बढ़कर यथार्थ के धरातल पर भी शीघ्र ही साकार होता दिखेगा।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)