एक तरफ देश के प्रधानमंत्री से लेकर विदेश तक के निवेशक राजधानी देहरादून में राज्य में निवेश की बुनियाद को आधार देने में जुटे हुए थे, तो दूसरी ओर उसी वक्त राज्य का मुख्य विपक्षी दल ‘खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे’ वाले अंदाज में धरना-प्रदर्शन में लगा हुआ था।
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून का क्रिकेट स्टेडियम अब तक दो मेगा शो का गवाह बन चुका है। पहला आयोजन वर्ष 2016 के फरवरी महीने में हुआ था। ‘द ग्रेट खली रिटर्न्स मेगा शो’ के नाम से आयोजित इस कार्यक्रम का तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने ऐसे प्रचार किया, मानो यह प्रदेश की तकदीर बदल देगा। मेगा शो को सफल बनाने के लिए कांग्रेस सरकार ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। कांग्रेस सरकार के मुखिया हरीश रावत व उनके सिपहसालारों के पांव धरती पर नहीं पड़ रहे थे। आखिर पढ़ते भी कैसे?
कांग्रेसी बिग्रेड जनता को झांसा देकर एक नकली लड़ाई को असली लड़ाई के रूप में प्रस्तुत कर रही थी। शो के टिकट दस-दस हजार रूपए तक में बेच कर लोगों की जेब काटी गई। सरकारी तामझाम व इंतजामात के साथ हुए इस शो के टिकटों की बिक्री का लाखों रुपया एक निजी संस्था की जेब में गया।
मगर विगत 7-8 अक्टूबर को इसी क्रिकेट स्टेडियम में ‘इन्वेस्टर्स समिट’ नामक एक दूसरा मेगा शो आयोजित हुआ तो पहले शो के कर्ताधर्ता हरीश रावत व अन्य कई कांग्रेसी नकारात्मक सोच के साथ भाजपा सरकार पर हमलावर हो उठे। यह सोच-समझ व समय का अंतर है। आखिर खली का शो कराने वाले इनवेस्टर्स समिट का मतलब क्या समझेंगे?
राज्य गठन के 18 वर्षों के इतिहास में पहली बार किसी सरकार ने इतने व्यापक स्तर पर निवेशक सम्मेलन आयोजित करने की पहल की। सरकार की पहल पर देश-विदेश के निवेशकों ने सकारात्मक रुझान दिखाया और लगभग सवा लाख करोड़ के निवेश के प्रस्ताव राज्य सरकार को सौंपे।
प्रस्तावों का धरातल पर उतरना और उनका परिणाम अभी भविष्य के गर्भ में है। मगर राज्य के हितों से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दे पर विपक्ष द्वारा की गई राजनीति कतई शोभनीय नहीं कही जा सकती है। एक तरफ देश के प्रधानमंत्री से लेकर विदेश तक के निवेशक राजधानी देहरादून में राज्य में निवेश की बुनियाद को आधार देने में जुटे हुए थे, तो दूसरी ओर उसी वक्त राज्य का मुख्य विपक्षी दल ‘खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे’ वाले अंदाज में धरना-प्रदर्शन में लगा हुआ था।
इसका अर्थ क्या लगाया जाएगा? क्या मात्र विरोध करने के लिए विरोध करना विपक्षी दल कांग्रेस का राजनीतिक धर्म है? क्या राज्य के हितों से उसे कोई लेना-देना नहीं है? राजनीतिक विरोध और लोकतांत्रिक तरीके से उसका विरोध अपनी जगह उचित है। मगर राज्य के भविष्य से जुड़े गंभीर मुद्दे पर ओछी राजनीति की इजाजत किसी को भी नहीं होनी चाहिए।
कितना अच्छा होता कि कांग्रेस नेता धरना-प्रदर्शन करने के बजाय इन्वेस्टर समिट में शामिल होते। निवेशकों का मनोबल तोड़ने वाली बयानबाजी करने से बेहतर होता कांग्रेस उनके उत्साह को बढ़ाती और राज्य में औद्योगिकीकरण के एक नए युग के आगाज के लिए सार्थक पहल करती।
दरअसल, विकासवादी सकारात्मक राजनीति कांग्रेस के डीएनए में नहीं है। कांग्रेस ने हमेशा से झूठ व भ्रम को अपनी राजनीति का केंद्र बिंदु बनाए रखा। यही कारण है कि वर्षों तक केंद्र व राज्यों में एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस दो राज्यों पंजाब व मिजोरम और एक केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी तक सिमट कर रह गई है। कर्नाटक में वह गठबंधन में साझीदार है।
बहरहाल, वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने उत्तराखंड के लिए अपनी चुनावी सभाओं में एक नारा दिया था। शाह ने कहा था ‘राज्य अटल जी ने बनाया है – मोदी जी संवारेंगे’। भाजपा सरकार आज इसको चरितार्थ करते दिख रही है। यह तथ्य गौरतलब है कि केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार के गठन के फलस्वरूप भाजपा ने न केवल उत्तराखंड को अलग राज्य का दर्जा दिया, अपितु इस नवोदित राज्य को विशेष राज्य की श्रेणी में शामिल भी किया।
वर्ष 2002 में प्रदेश में नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार गठित होने के बावजूद वाजपेयी सरकार ने बिना किसी राजनीतिक भेदभाव के उत्तराखंड को विशेष पैकेज दिया। वाजपेयी सरकार द्वारा दिए गए औद्योगिक पैकेज का ही परिणाम था कि वर्ष 2004 के बाद राज्य में औद्योगिक विकास में तेजी आई।
यह सुखद संयोग है कि आज जब केंद्र व प्रदेश में भाजपा की सरकारें काबिज हैं, तो उन्होंने उत्तराखंड को संवारने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। इनवेस्टर्स समिट के लिए त्रिवेंद्र सरकार ने लगभग चालीस हजार करोड़ के निवेश प्रस्तावों का लक्ष्य तय किया था। मगर राज्य सरकार के चतुर्दिक प्रयासों व केंद्र सरकार के सकारात्मक रुख के परिणामस्वरूप लगभग सवा लाख करोड़ के निवेश प्रस्ताव मिले। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने निवेशक सम्मेलन की बागडोर अपने हाथों में रखी और लगातार तीन माह तक सम्मेलन को सफल बनाने के लिए रात-दिन एक किए रखा।
प्रदेश सरकार ने निवेशकों को आकर्षित करने के लिए योजनाबद्ध तरीके से काम किया। निवेश के लिए 12 कोर सेक्टर चिन्हित किए गए। पर्यटन, सोलर, ऊर्जा, हॉर्टिकल्चर, फ्लोरीकल्चर, फार्मास्यूटिकल्स, ऑटोमोबाइल, हर्बल, एरोमेटिक जैसे क्षेत्रों पर फोकस कर मुख्यमंत्री खुद तमाम स्थानों पर निवेशकों से मिले। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत केंद्र सरकार के तमाम वरिष्ठ मंत्रियों की उपस्थिति ने इनवेस्टर्स समिट को उड़ान भरने के लिए पंख लगा दिए।
समिट में निवेशकों के उत्साह को देखते हुए स्पष्ट है कि राज्य सरकार उनका भरोसा जीतने में सफल रही है। निवेश प्रस्तावों को धरातल पर उतारना स्वाभाविक रूप से चुनौती भरा कार्य है। लिहाजा, सम्मेलन के तुरंत बाद से प्रदेश सरकार ने निवेश को अमली-जामा पहनाने के लिए कसरत शुरू कर दी हैं। मुख्यमंत्री कार्यालय में निवेश प्रस्तावों के फॉलोअप के लिए अलग से सेल का गठन करने का निर्णय लिया गया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इनवेस्टर्स समिट उत्तराखंड के इतिहास में मील का पत्थर साबित होगा और राज्य को औद्योगिक विकास की एक बहु प्रतीक्षित दिशा देगा।
(लेखक उत्तराखंड सरकार में मीडिया सलाहकार समिति के उपाध्यक्ष रहे हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)