किसी पार्टी को यह गलत फहमी नहीं होनी चाहिए उसके यहां विवादित बयानबाजों का अभाव है। ऐसे जोखिम सभी दलों के सामने आ सकते है। आज भारतीय जनता पार्टी अपने एक नेता के धृणित बयान से आलोचना का सामना कर रही है। अब बसपा भी अपने कुछ लोगों की नारेबाजी से असहज हो रही है। यदि एक नेता के बयान को भाजपा की मानसिकता से जोड़ा जाएगा, तो बसपा के अनेक नेताओं, कार्यकर्ताओं द्वारा वैसी ही अश्लील बयानबाजी और नारेबाजी के बारे में क्या कहा जा सकता है। बसपा द्वारा आयोजित विरोध प्रदर्शन में दयाशंकर सिंह की पत्नी, बेटी, बहन आदि के संबंध में बेहद अश्लील बातें कही गयीं, जबकि न्याय का तकाजा यह है कि दयाशंकर सिंह के परिजनों का इसमें कोई दोष नहीं। भारत का संविधान भी इसकी इजाजत नहीं देता। दयाशंकर सिंह और उनके परिजनों के खिलाफ अश्लील नारे लगाने वाले बसपा नेताओं व कार्यकर्ताओं की मानसिकता में कोई फर्क नहीं है दोनों पुरुषवादी मानसिकता में घिरे थे।
भाजपा की मानसिकता दलित विरोधी होती तो उसके नेता गेस्ट हाउस काण्ड के समय मायावती को बचाने का कार्य नहीं करते। मायावती उस दिन की घटना को अपने जीवन में कभी भूल नहीं सकतीं। तब भाजपा के नेताओं कार्यकर्ताओं ने अपनी जान की बाजी लगाकर मायावती का जीवन बचाया था। इतना ही नहीं यह भाजपा ही थी, जिसने मायावती को दो बार उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया। इसी के बाद बसपा और मायावती को प्रदेश में जड़ें जमाने का मौका मिला। भाजपा के साथ सरकार चलाने के दौरान ही मायावती की प्रशासनिक छवि अच्छी बनी थी, इसका फायदा ही मायावती को 2007 के चुनाव में मिला था।
प्रश्न वही है। यदि दयाशंकर सिंह के लिए भाजपा को घेरा जाएगा तो गलत बयान व नारे लगाने वाले नेताओं के लिए बसपा को दोषी क्यों नहीं बताया जा सकता। बसपा प्रमुख मायावती की नाराजगी स्वाभाविक है, लेकिन उन्होंने भी इसके लिए भाजपा को ही दोषी करार दिया। यहां तक आरोप लगाया कि भाजपा की मानसिकता दलित विरोधी है, जबकि एक राजनीतिक पार्टी गलत बात करने वाले अपने किसी नेता को जितनी सजा दे सकती है, उसमें भाजपा ने न कसर छोड़ी, न बिलंब किया। दयाशंकर सिंह को पहले उपाध्यक्ष पद से हटाया फिर पार्टी से बाहर कर दिया। बसपा ने उसके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी थी। ऐसे में भाजपा के लिए ऐसा करने की आवश्यकता नहीं थी। इसके बाद कानून को अपना काम करना था। गिरफ्तारी करना राजनीतिक दल का कार्य नहीं है। भाजपा ने अधिकृत रूप से घृणित बयान को बेहद निन्दनीय बताया। यहां प्रश्न मायावती से भी है। क्या वह भी दयाशंकर सिंह के घर की महिलाओं के लिए अपमान जनक बातें करने वाले अपनी पार्टी के नेताओं को निष्कासित करेंगी। क्या बसपा के ऐसे नेता महिलाओं का सम्मान कर रहे थे। क्या मायावती ने जिस प्रकार दयाशंकर के बयान को भाजपा की मानसिकता बताया, क्या उसी प्रकार अपने नेताओं के बयानों को बसपा की मानसिकता से जोड़ेंगी। मायावती ने कहा कि बसपा के कार्यकर्ता उन्हें देवी मानते हैं। इसका यह मतलब तो नहीं होता कि बिलकुल निर्दोष महिलाओं का अपमान किया जाए।
केन्द्रीय मंत्री उमा भारती ने गेस्ट हाउस काण्ड की याद दिलाई। भाजपा की मानसिकता दलित विरोधी होती तो उसके नेता गेस्ट हाउस काण्ड के समय मायावती को बचाने का कार्य नहीं करते। मायावती उस दिन की घटना को अपने जीवन में कभी भूल नहीं सकतीं। तब भाजपा के नेताओं कार्यकर्ताओं ने अपनी जान की बाजी लगाकर मायावती का जीवन बचाया था। इतना ही नहीं यह भाजपा ही थी, जिसने मायावती को दो बार उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया। इसी के बाद बसपा और मायावती को प्रदेश में जड़ें जमाने का मौका मिला। भाजपा के साथ सरकार चलाने के दौरान ही मायावती की प्रशासनिक छवि अच्छी बनी थी, इसका फायदा ही मायावती को 2007 के चुनाव में मिला था। जिसकी वजह से वह पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने में सफल हुई थीं। ये बात अलग है कि बहुमत की सरकार में उनकी वैसी छवि कायम नहीं रह सकी, लेकिन इसमें सन्देह नहीं कि मायावती के राजनीतिक उत्थान में भाजपा का अहम योगदान रहा है। मायावती इस तथ्य से इन्कार नहीं कर सकतीं। लेकिन राजनीतिक समीकरणों के हिसाब से इस तथ्य को स्वीकार नहीं कर सकती, उनका एक बयान पर भाजपा को दलित विरोधी बताना भी गलत है। दयाशंकर के बयान पर कांग्रेस ने भी भाजपा पर निशाना लगाया। कई वर्ष पहले कांग्रेस के एक नेता ने अपनी प्रेमिका के टुकड़े करके तन्दूर में भुन दिया था लेकिन किसी ने भी इसके लिए कांग्रेस को हिंसक और महिला विरोधी नहीं बताया।
आज भी दलितों व जनजाति के लोगों का देश में सर्वाधिक समर्थन भाजपा को मिलता है। एक असभ्य बयान को उसकी मानसिकता से जोड़ना अशोभनीय है। बसपा नेता नसीमुद्दीन ने कहा कि अमित शाह के इशारे पर दयाशंकर ने बयान दिया। क्या इस फार्मूले के अनुसार यह माना जाए मायावती के इशारे पर महिलाओं को अपमानित करने वाले नारे लगाए गए। नसीमुद्दीन ने तो कार्यकर्ताओं नेताओं की पीठ थपथपाई है। जो बसपा और उसके नेताओं की मानसिकता को दर्शाता है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)