देखा जाए तो कोविड 19 संक्रमण मामले में सरकार के कामकाज, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मिल रहे वैश्विक समर्थन और भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की सक्रियता ने कांग्रेसी नेताओं को बौखलाहट से भर दिया है। तभी तो जब प्रधानमंत्री लोगों से कोविड-19 से लड़ने वालों के लिए ताली, थाली, शंख बजवा रहे थे या फिर दीया जलवा रहे थे तब सबसे ज्यादा छटपटाहट कांग्रेसी नेताओं में ही थी। कमोबेश यही हाल दूसरे राजनीतिक दलों का है।
देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस गंभीर वैचारिक द्वंद्व में फंस चुकी है। अनुच्छेद-370 समाप्त करने, नागरिकता कानून और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) पर तो उसके नेताओं में परस्पर विरोध था ही, अब कोरोना संकट में भी पार्टी के अंतर्विरोध उभरकर सामने आ रहे हैं।
पार्टी के कई मुख्यमंत्री और वरिष्ठ नेता जहां लाकडॉउन का समर्थन कर रहे हैं, वहीं सोनिया गांधी इसका विरोध कर रही हैं। मोदी विरोध की धुन में कई कांग्रेसी नेता इस जमीनी हकीकत को भी मानने को तैयार नहीं हैं कि जिन देशें ने अर्थव्यवस्था को वरीयता देते हुए लाकडॉउन में देरी या लाकडॉउन नहीं किया उन्हें जानमाल का भारी खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। इन देशों में जान भी गया जहान भी चरितार्थ हो रहा है।
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कोविड-19 के शुरू में कहा था कि पार्टी संकट के इस दौर में दलगत भावना से उपर उठकर मोदी सरकार के प्रयासों का समर्थन करेगी। लेकिन वही राहुल गांधी अब लॉकडाउन, प्रवासी मजदूरों को हो रही समस्याओं और केंद्रीय कर्मियों-पेंशनरों के महंगाई भत्ते को रोके जाने के सरकार के फैसले का विरोध कर रहे है। इसी को देखते भारतीय जनता पार्टी ने पलटवार करते हुए कहा कि जब पूरा देश कोरोना के खिलाफ युद्ध लड़ रहा है तो कांग्रेस केवल केंद्र सरकार के खिलाफ लड़ रही है।
देखा जाए तो कोविड 19 संक्रमण मामले में सरकार के कामकाज, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मिल रहे वैश्विक समर्थन और भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की सक्रियता ने कांग्रेसी नेताओं को बौखलाहट से भर दिया है। तभी तो जब प्रधानमंत्री लोगों से कोविड-19 से लड़ने वालों के लिए ताली, थाली, शंख बजवा रहे थे या फिर दीया जलवा रहे थे तब सबसे ज्यादा छटपटाहट कांग्रेसी नेताओं में ही थी। कमोबेश यही हाल दूसरे राजनीतिक दलों का है।
दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आपदा की इस घड़ी में सभी को साथ लेकर चल रहे हैं। वे लगातार विश्व के राष्ट्रध्यक्षों से संवाद करने, कोविड-19 का संक्रमण रोकने में सहयोग करने, मदद लेने की कोशिश कर रहे हैं। केंद्र सरकार के सचिवों, उच्च स्तरीय समितियों से चर्चा करने, मंत्रियों के समूह की रिपोर्ट लेने, दुनिया भर में फैले भारतीय दूतावासों, मिशनों से संवाद करते रहने के साथ-साथ राज्यों के मुख्यमंत्रियों से एक निश्चित अंतराल पर चर्चा करके राय लेते हैं।
इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री ने संसद में राजनीतिक दलों के नेताओं की राय लेने, कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी, पूर्व राष्ट्रपतियों, पूर्व प्रधानमंत्रियों, क्षेत्रीय दलों के नेताओं से कोविड-19 संक्रमण रोकने में सहयोग मांगने में नहीं चूके। प्रधानमंत्री ने इससे भी आगे बढ़कर वह देश के खेल जगत, बालीवुड, अन्य कलाकारों, प्रोफेशनलों के भी संपर्क किया। वह देश की जनता के साथ दु:ख दर्द साझा करते हुए जुड़ते हैं और देश की पंचायतों से भी संवाद कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री की यही सक्रियता कांग्रेस को अपच कर रही है। दरअसल सत्ता कांग्रेस के लिए ऑक्सीजन का काम करती है। इसीलिए कांग्रेस की हर गतिविधि सत्ता को ध्यान में रखकर होती है। यही कारण है कि संवेदनशील मुद्दों पर कई बार कांग्रेस वैचारिक रूप से पंगुता वाली स्थिति में आ जाती है। इसी विचारशून्यता के कारण पार्टी का दायरा सिमटता जा रहा है। इसके बावजूद भी पार्टी अपनी नीतियों पर पुनर्विचार नहीं कर रही है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)