इतिहास के कंधे पर बैठकर झूठ की राजनीति करना कब छोड़ेगी कांग्रेस ?

आजादी की लड़ाई की बात करते हुए इस पूरे संघर्ष को कांग्रेस स्वयं तक समेट लेती है, लेकिन इस क्रम में वह ये भूल जाती है कि 1885 में उसकी स्थापना से अट्ठाईस वर्ष पूर्व 1857 में इस देश का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम हो चुका था, जिसका रोमांचित करने वाला प्रामाणिक वर्णन महान स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर की पुस्तक ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ में दर्ज है। इस क्रांति के दौरान न केवल देश के अनेक राजाओं-रानियों ने संघर्ष करते हुए अपना बलिदान दिया था, अपितु आदिवासी समाज के भी अनेक योद्धाओं ने अपने जान की बाजी लगा दी थी। ऐसे में, कांग्रेस को सोचना चाहिए कि स्वतंत्रता के संघर्ष को केवल खुद तक सीमित करके क्या वो इन महान स्वाधीनता योद्धाओं के बलिदान का अपमान नहीं करती है ?

राजनीतिक तौर पर अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही कांग्रेस की अकड़ में कोई कमी नहीं आई है। देश में सर्वाधिक समय तक सत्ता का सुख भोगने वाली कांग्रेस सत्ता से दूरी को पचा नहीं पा रही और इसी खीझ में उसके नेता प्रधानमंत्री मोदी सहित संघ-भाजपा को लेकर आए दिन अनर्गल बयानबाजी करते रहते हैं। भाजपा को घेरने के लिए कांग्रेस को जब वर्तमान का कोई ठोस मुद्दा नहीं मिलता तो वो इतिहास से संबंधित झूठे दावों के सहारे संघ-भाजपा पर निशाना साधने की कोशिश करने लगती है।

अभी कुछ दिन पूर्व कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पुनः इतिहास को हथियार बनाते हुए संघ-भाजपा पर बेमतलब सवाल खड़े करने की कोशिश की। खड़गे ने कहा कि आजादी की लड़ाई में कांग्रेस के कई नेताओं ने अपनी जान दी, लेकिन भाजपा का एक कुत्ता भी नहीं मरा।

खड़गे ने अपने बयान में इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की मृत्यु का भी ‘शहादत’ के रूप में उल्लेख किया। किसी कांग्रेस नेता की तरफ से इस तरह का बयान कोई नई बात नहीं है। राहुल गांधी भी अक्सर आजादी की लड़ाई के संदर्भ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा पर सवाल उठाते रहते हैं।

पिछले दिनों उन्होंने मध्य प्रदेश में आदिवासी क्रांतिकारी टंट्या मामा का जिक्र करते हुए कह दिया था कि अंग्रेजों ने टंट्या मामा को फांसी दी और आरएसएस की विचारधारा ने उनकी मदद की। राहुल यह भूल गए कि जब टंट्या मामा को फांसी हुई थी, उस समय संघ के संस्थापक डॉ हेडगेवार का जन्म भी नहीं हुआ था। दरअसल इस तरह के बयान और कुछ नहीं, केवल कांग्रेस के अज्ञानी और अहंकारी चरित्र को ही दर्शाते हैं।

मल्लिकार्जुन खड़गे (साभार : Outlook India)

आजादी की लड़ाई की बात करते हुए इस पूरे संघर्ष को कांग्रेस स्वयं तक समेट लेती है, लेकिन इस क्रम में वह ये भूल जाती है कि 1885 में उसकी स्थापना से अट्ठाईस वर्ष पूर्व 1857 में इस देश का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम हो चुका था, जिसका रोमांचित करने वाला प्रामाणिक वर्णन महान स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर की पुस्तक ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ में दर्ज है।

इस क्रांति के दौरान न केवल देश के अनेक राजाओं-रानियों ने संघर्ष करते हुए अपना बलिदान दिया था, अपितु आदिवासी समाज के भी अनेक योद्धाओं ने अपने जान की बाजी लगा दी थी। ऐसे में, कांग्रेस को सोचना चाहिए कि स्वतंत्रता के संघर्ष को केवल खुद तक सीमित करके क्या वो इन महान स्वाधीनता योद्धाओं के बलिदान का अपमान नहीं करती है ?

कई विद्वानों का मत है कि 1857 जैसी कोई क्रांति दुबारा न हो, इसी विचार से अंग्रेजों ने एक सेवानिवृत्त अंग्रेज अधिकारी के द्वारा ‘सेफ्टी वोल्व’ के तौर पर कांग्रेस की स्थापना करवाई थी। बहरहाल, महात्मा गांधी के देश में आकर सक्रिय होने से पूर्व तक कांग्रेस स्वाधीनता के विचार को लेकर सजग भी नहीं थी। गांधीजी ने अहिंसा और सत्याग्रह का मंत्र फूंककर इस संगठन को दिशा दी।

उस वक़्त की कांग्रेस आज की कांग्रेस से एकदम अलग थी। उसमें हर विचारधारा के व्यक्ति थे, जो परस्पर मतभेदों को किनारे रखकर देश की स्वतंत्रता के विराट उद्देश्य के साथ कांग्रेस में एकजुट हुए थे। अतः आज की कांग्रेस और उसके नेताओं को आजादी का श्रेय स्वयं लेने या मात्र किसी परिवार-विशेष के लोगों  का इसके लिए गुणगान करने से बाज आना चाहिए।

जनसंघ और भाजपा तो आजादी के बाद अस्तित्व में आए संगठन हैं, लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अवश्य 1925 में स्थापित हो गया था और अपनी स्थापना के बाद से संघ ने आजादी की हर लड़ाई में अपना योगदान दिया है।

उल्लेखनीय होगा कि 1925 से लेकर 1947 तक चली स्वाधीनता की जंग ही नहीं बल्कि आजादी के बाद गोवा तथा दादरा तथा नागर हवेली को आजादी दिलाने में भी संघ की बड़ी भूमिका रही है। संघ के कार्यकर्ताओं को प्रथम सरसंघचालक डॉ हेडगेवार ने आजादी की लड़ाई में सक्रियतापूर्वक योगदान देने के लिए प्रेरित किया था।

आज कांग्रेस वीर सावरकर का कितना भी उपहास उड़ा ले और उन्हें कितना भी भला-बुरा कह ले, लेकिन यह इतिहास वो नहीं मिटा सकती कि सावरकर से अंग्रेज सरकार इस कदर आतंकित हो गई थी कि उन्हें अंडमान की सेल्युलर जेल में 50 साल के लिए काला पानी की यातनापूर्ण सजा सुनाई गई। क्या कांग्रेस के किसी नेता को ऐसी सजा मिली थी ? क्या कांग्रेस के परिवार-विशेष के किसी व्यक्ति ने ऐसी सजा काटी थी ?

लेकिन आज ऐसे प्रश्नों की न तो आवश्यकता है और न ही औचित्य क्योंकि स्वाधीनता आंदोलन में जिसने जितना भी योगदान दिया वह सब महत्वपूर्ण है। अतः उचित होगा कि कांग्रेस अपनी वर्तमान दुर्दशा को विनम्रतापूर्वक स्वीकार करे तथा अपने अहंकारी चरित्र का त्याग करते हुए स्वयं में सुधार लाने का प्रयास करे। वो जितनी अकड़ दिखाएगी, देश की जनता में उसका आधार उतना ही सिकुड़ता जाएगा।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)