दिल्ली विधानसभा में हुए इस डेमो प्रदर्शन से कई नए प्रश्न खड़े होते हैं। पहला प्रश्न यही है कि क्या पिछले दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप पार्टी के कार्यकत्र्ताओं ने इसी कमाल से बहुमत प्राप्त किया है ? जब आप के नेता इस तकनीक से इतने परिचित हैं, तब यह क्यों न माना जाय कि ई.वी.एम. में इस प्रकार का कोई कोड डालकर उन्होंने दिल्ली विधानसभा के पिछले चुनावों में अपेक्षित लाभ प्राप्त किया होगा। और दलों के कार्यकर्ता परिचित न भी हों, मगर आम आदमी पार्टी के लोग इससे सुपरिचित होने का ढिंढोरा पीट ही चुके हैं। फिर सवाल तो सबसे पहले उन्हीपर उठता है कि क्या 67 सीटों पर आम आदमी पार्टी की विजय इस ई.वी.एम. हैकिंग का ही कमाल है ?
दिल्ली विधानसभा में दो करोड़ रूपए लिए जाने के आरोप का जवाब देने की बजाय अरविन्द केजरीवाल और उनके समर्थकों ने ई.वी.एम. का डेमो प्रस्तुत किया। इस तथाकथित डेमो में यह प्रदर्शित करने की पुरजोर कोशिश की गई कि भाजपा कार्यकर्ताओं ने पिछले चुनावों में मतदान के दौरान ई.वी.एम. में कोड डालकर मतगणना परिणाम प्रभावित कर लिए हैं और इसी कारण अन्य दलों की हार हुई है। हालांकि आप के इस डेमो से सबसे पहले उसीपर सवाल खड़े होते हैं।
पहला सवाल यही है कि क्या पिछले दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप पार्टी के कार्यकर्ताओं ने इसी कमाल से बहुमत प्राप्त किया है ? जब आप के नेता इस तकनीक से इतने परिचित हैं, तब यह क्यों न माना जाय कि ई.वी.एम. में इस प्रकार का कोई कोड डालकर उन्होंने दिल्ली विधानसभा के पिछले चुनावों में अपेक्षित लाभ प्राप्त किया होगा। और दलों के कार्यकर्ता परिचित न भी हों, मगर आम आदमी पार्टी के लोग इससे सुपरिचित होने का ढिंढोरा पीट ही चुके हैं। फिर सवाल तो सबसे पहले उन्हीपर उठता है कि क्या 67 सीटों पर आम आदमी पार्टी की विजय इस ई.वी.एम. हैकिंग का ही कमाल है ?
लेकिन अरविन्द केजरीवाल और उनकी पार्टी के अन्य नेता केवल भाजपा पर ही ई.वी.एम. में गड़बड़ी करने का आरोप लगाते रहे हैं। विचारणीय है कि क्या ई.वी.एम. में गड़बड़ी करने, मदरबोर्ड बदलने, कोड डालने आदि का कोई ईश्वर प्रदत्त वरदान भाजपा को ही मिला है और अन्य दल इस वरदान से वंचित हैं। इस प्रकार के अवांछनीय प्रयत्न यदि ई.वी.एम. में संभव हैं, तो ऐसा कारनामा कोई भी दल कर सकता है। वैसे, चुनाव आयोग की मानें तो वास्तव में ईवीएम के साथ ऐसी कोई छेड़छाड़ संभव ही नहीं है। सच भी यही प्रतीत होता है।
प्रश्न यह भी है कि ई.वी.एम. के मदरबोर्ड को बदलने, उसका विशिष्ट कोड निर्धारित करने जैसे काम कैसे संभव हैं ? क्या ई.वी.एम. और उससे चुनाव कार्य संचालन की प्रक्रिया भाजपा कार्यकत्र्ताओं के हाथ में है ? क्या निर्वाचन आयोग और निर्वाचन कार्य में लगी सरकारी मशीनरी में सारे अधिकारी कर्मचारी भाजपा के समर्थक हैं ? इन स्थितियों में यह कैसे संभव है कि केवल भाजपा ही ई.वी.एम. में गड़बड़ी कर सकती है ?
चुनाव प्रक्रिया चुनाव आयोग के निर्देशन में संबन्धित राज्य की सरकारी मशीनरी द्वारा संपन्न करायी जाती है और चुनाव आयोग अपने आप में एक स्वायत्त संस्था है। मतदान दलों के सदस्य प्रायः परस्पर अपरिचित होते हैं। अतः मदरबोर्ड बदलने, कोड निर्धारित करने जैसे दुष्प्रयत्न लगभग असंभव हैं। चुनाव आयोग भी स्पष्ट कर चुका है कि ये संभव नहीं है। अतः दिल्ली विधानसभा का यह तथाकथित प्रदर्शन ई.वी.एम. की बजाय आप के बयानों, गतिविधियों और क्रियाकलापों को ही संदेहास्पद बना रहा है। नकली ई.वी.एम. से किया गया यह तथाकथित डेमो जनता को भ्रमित करने और दो करोड़ के प्रकरण से ध्यान हटाने का कुटिल प्रयत्न है।
(लेखक उच्च शिक्षा उत्कृष्टता संस्थान में सहायक प्राध्यापक हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)