कपिल मिश्रा के आरोप केजरीवाल द्वारा विपक्षी नेताओं पर लगाए जाने वाले आरोपों की तरह बेदम नहीं लगते। क्योंकि, केजरीवाल तो केवल प्रेस कांफ्रेंस वगैरह में आरोप लगाकर गायब हो जाते थे, मगर कपिल मिश्रा तो बाकायदा जांच एजेंसियों के पास कथित तौर पर सबूत लेकर पहुँच रहे हैं। साथ ही, वे आम आदमी पार्टी के नेता हैं और अपनी ही पार्टी के नेता पर आरोप लगा रहे, इसलिए भी उनके आरोपों की विश्वसनीयता अधिक है।
अभी विधानसभा चुनावों, उपचुनाव और फिर एमसीडी चुनाव में लगातार मिली पराजयों से केजरीवाल उबरने की कोशिश कर ही रहे थे कि उनकी सरकार के पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा ने उनके लिए एक अलग ही तूफ़ान खड़ा कर दिया है। बता दें कि कपिल मिश्रा केजरीवाल सरकार में जल मंत्री के पद पर थे, जिससे उन्हें अभी हाल ही में हटाया गया। पद से हटाए जाने के बाद से वे केजरीवाल के खिलाफ बगावती तेवर अपनाए हुए हैं। उन्होंने खुलासा किया है कि उनकी आँखों के सामने केजरीवाल ने आप विधायक सत्येन्द्र जैन से दो करोड़ रूपये की रिश्वत ली थी, जिसके खिलाफ आवाज़ उठाने के कारण उन्हें मंत्री पद से हटा दिया गया।
हालांकि कपिल मिश्रा के इन आरोपों का आम आदमी पार्टी की तरफ से खंडन किया गया और इन्हें जवाब नहीं देने लायक बताया गया है। लेकिन, लगता नहीं कि ये मुद्दा इतने से थम जाएगा। क्योंकि कपिल मिश्रा अपने आरोपों पर पूरी मजबूती से न केवल कायम हैं, बल्कि इस सम्बन्ध में वे राज्यपाल और एसीबी के पास जा चुके हैं। अब सीबीआई के पास भी जाने की तैयारी में हैं।
कपिल मिश्रा के आरोपों में कितनी सच्चाई है, ये तो जांच के बाद सामने आ जाएगा। लेकिन फिलहाल जिस तरह से वे अपने आरोपों पर कायम हैं और जांच एजेंसियों के पास शिकायत कर रहे हैं, उससे उनके आरोपों में कुछ न कुछ दम तो अवश्य लगता है। कहीं न कहीं इन आरोपों ने एकबार फिर आम आदमी पार्टी की स्वच्छ और ईमानदार राजनीति के दावे प्रश्नचिन्ह लगाने का काम किया है।
एक कहावत है कि बोए पेड़ बबूल के तो आम कहाँ से पाय। फिलवक्त ये कहावत आम आदमी पार्टी और उसके राष्ट्रीय संयोजक अरविन्द केजरीवाल पर एकदम सटीक बैठ रही है। दरअसल अभी जिस तरह से कपिल मिश्रा अरविन्द केजरीवाल पर आरोप लगा रहे हैं, राजनीति में इस तरीके की शुरूआत किसी और ने नहीं अरविन्द केजरीवाल ने ही की थी।
बिना किसी आधार और प्रमाण के किसीके भी खिलाफ कुछ भी आरोप लगा देना और फिर जब उन आरोपों को साबित करने की बात आये तो गायब हो जाना, केजरीवाल का प्रमुख शगल रहा है। हालिया उदाहरण देखें तो अरुण जेटली पर केजरीवाल ने घोटाले का आरोप लगाया, जिसके खिलाफ जेटली ने मानहानि का मुकदमा कर दिया, तो केजरीवाल जनता के पैसे से केस लड़ने की तयारी करने लगे। इस मामले में उनकी भरपूर किरिकिरी हुई है और अभी भी उनपर मानहानि की तलवार लटकी है।
हालांकि कपिल मिश्रा के आरोप केजरीवाल द्वारा विपक्षी नेताओं पर लगाए जाने वाले आरोपों की तरह एकदम बेदम नहीं लगते। क्योंकि केजरीवाल तो केवल प्रेस कांफ्रेंस वगैरह में आरोप लगाकर गायब हो जाते थे, मगर कपिल मिश्रा तो बाकायदा जांच एजेंसियों के पास कथित तौर पर सबूत लेकर पहुँच रहे हैं। साथ ही, ये आम आदमी पार्टी के नेता हैं और अपनी ही पार्टी के नेता पर आरोप लगा रहे, इसलिए भी इनके आरोपों की विश्वसनीयता अधिक है। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि केजरीवाल ने अबतक जो-जो बबूल बोए हैं, अब उनके कांटे उन्हें ज़ख़्मी करने की हालत में आ चुके हैं। इसलिए उनकी मुश्किलें फिलहाल कम होती नहीं दिख रहीं।
अभी हाल ही में आप नेता कुमार विश्वास ने भी केजरीवाल पर सवाल उठाए थे, जिसके बाद उन्हें समझा-बुझाकर शांत किया गया। अब कपिल मिश्रा बगावत पर उतर चुके हैं। ये दिखाता है कि दिल्ली की जनता द्वारा पूर्ण बहुमत पाकर सत्ता में बैठी आम आदमी पार्टी जिस तरह की अंतर्कलह में डूबी नज़र आ रही है, वो दिल्ली सरकार के कामकाज के लिहाज से कत्तई ठीक नहीं है। अच्छा होगा कि आप सरकार दिल्ली की जनता के हित में काम करने की ओर ध्यान दे। रही कपिल मिश्रा के आरोपों की बात तो इसपर जांच एजेंसियों को काम करना चाहिए ताकि देश के समक्ष दूध का दूध और पानी का पानी हो सके।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)