क्या यह विचित्र नहीं है कि पूरा देश केरल की मदद में अपने-अपने स्तर पर जुटा है, सेना लगी है; लेकिन केरल के मुख्यमंत्री महोदय के मुंह से इनमें से किसीके लिए कोई शब्द नहीं निकलता है। उनका मुंह खुलता है तो मुस्लिम देश यूएई की उस सहायता को बताने के लिए जो उसने दी ही नहीं है।
केरल इन दिनों बाढ़ की भीषण विभीषिका से दो-चार हो रहा है। बड़ी संख्या में लोग मृत, विस्थापित और घायल हुए हैं। केरल में वामपंथी मोर्चे की सरकार है जिसपर राज्य में भाजपा और संघ के कार्यकर्ताओं की हत्या करवाने और हत्यारों को बचाने का आरोप लगता रहा है। बावजूद इसके भाजपानीत केंद्र सरकार ने बाढ़ की इस आपदा के समय बिना देरी के केरल की मदद को हाथ बढ़ाया और बढ़ाना चाहिए भी था।
गत दिनों केरल दौरे पर गए प्रधानमंत्री मोदी ने 600 करोड़ की मदद का तत्काल ऐलान किया। कई राज्यों ने भी मदद को हाथ बढ़ाया। केरल और कर्नाटक के मुख्यमंत्रियों के फंड में देश के सामान्य नागरिकों ने भी अपनी तरफ से सहायता राशि दी है। केंद्र की तरफ से यह भी स्पष्ट किया गया है कि उसने जो 600 करोड़ की मदद दी है, वो सिर्फ शुरूआती मदद है। इसके बाद भी केंद्र अपनी सहायता जारी रखेगा।
जाहिर है, आपदा की इस घड़ी में केरल के साथ केंद्र सरकार समेत पूरा देश खड़ा हुआ है। लेकिन विडम्बना देखिये कि केरल के मुख्यमंत्री महोदय को देश का यह सहयोग दिखाई नहीं दिया, लेकिन संयुक्त अरब अमीरात की तरफ से 700 करोड़ की सहायता दिए जाने की बात जाने किस सूत्र से उन्हें मालूम चल गयी। लगे हाथ उन्होंने ये बात मीडिया में भी बता दी। यह खबर भी फैला दी गयी कि केरल की इस मदद को लेने से केंद्र सरकार ने नियमों के कारण इनकार कर दिया है।
इसके बाद से सोशल मीडिया पर एक ख़ास धड़े द्वारा यह हल्ला मचाया जाने लगा कि केंद्र सरकार से ज्यादा मदद केरल की यूएई ने की है, लेकिन केंद्र उसे ले नहीं रहा। इस आधार पर भाजपा और मोदी सरकार का विरोध होने लगा। लेकिन इस बवंडर की दिशा तब बदली जब बीते दिनों यूएई के राजदूत अहमद अल बन्ना ने यह बयान दिया कि यूएई की तरफ से अभी न तो मदद की किसी राशि का ऐलान हुआ है और न ही अभी ऐसी कोई योजना ही बनी है। सवाल उठता है कि जब 700 करोड़ की ऐसी किसी मदद का ऐलान ही नहीं हुआ है तो इसकी बात केरल के मुख्यमंत्री ने किस आधार पर कही थी? उन्हें ये स्पष्ट करना चाहिए। कहीं ऐसा तो नहीं कि केरल की क़यामत में भी वे अपनी सियासत भिड़ा बैठे?
यह ठीक है कि प्रधानमंत्री मोदी ने एक ट्विट के जरिये यूएई के प्रधानमंत्री का मदद की पेशकश पर धन्यवाद किया था। लेकिन इस ट्विट में न तो किसी रकम का जिक्र है और न ही मदद लेने से इनकार करने की ही बात है। फिर किस आधार पर यह बात फैलाई गयी कि यूएई ने मदद दिया और केंद्र ने इनकार कर दिया।
भाजपा ने इसे कम्युनिस्ट-इस्लामिक गठजोड़ के जरिये देश को बदनाम करने की साजिश बताते हुए केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन पर निशाना साधा है। क्या यह विचित्र नहीं है कि पूरा देश केरल की मदद में अपने-अपने स्तर पर जुटा है, सेना लगी है; लेकिन केरल के मुख्यमंत्री महोदय के मुंह से इनमें से किसीके लिए कोई शब्द नहीं निकलता है। उनका मुंह खुलता है तो मुस्लिम देश यूएई की उस सहायता को बताने के लिए जो उसने दी ही नहीं है।
जिसके बाद देश और देश की सरकार को यह कहकर बदनाम किया जाने लगा कि वो अपने ही राज्य की भरपूर सहायता नहीं कर रही है। ऐसे में भाजपा के इस आरोप को कैसे गलत कहा जाए कि यह सारा खेल इस्लामिक-कम्युनिस्ट गठजोड़ के जरिये देश को बदनाम करने की कोशिश है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)