सूचना क्रांति के इस दौर में चीन के एप्प उसकी बड़ी ताकतों में से एक हैं जो किसी और देश के नागरिकों और सरकार की ख़ुफ़िया जानकारी चीन की कम्युनिस्ट सरकार तक पहुंचा सकते हैं। ऐसे में चीनी एप्प बैन किये जाने पर चीन से चिंतित और परेशान होने जैसी प्रतिक्रिया आनी अपेक्षित भी थी लेकिन हैरानी की बात ये है कि चीन से ज्यादा दुखी हमारे ही देश के कुछ नेता और बुद्धिजीवी नज़र आ रहे हैं।
भारत चीन के बीच हुए सीमा विवाद के बाद देश में चीन के प्रति रोष बढ़ा है। सीमा पर तो हमारे सैनिकों ने चीन की गुस्ताखी का जवाब उसी रात दे दिया था और जवाब ऐसा दिया था कि चीन खुद अपने हताहत सैनिकों की संख्या तक नहीं बता पा रहा।
सैनिकों के साथ पूरा देश भी खड़ा हुआ और आर्थिक मोर्चे पर बहिष्कार की मांग तेज हुई, सरकार ने कुछ चीनी कंपनियों के टेंडर रद्द कर दिए, चीन से आने वाले हर शिपमेंट की जांच जरुरी कर दी। सरकार ने अपनी प्रतिक्रिया से बिलकुल साफ़ कर दिया कि भारत की सीमा के साथ की जाने वाली किसी भी हरकत को नजरंदाज नहीं किया जायेगा।
भारत के सैनिकों पर जब पाकिस्तान ने हमला किया तो हमने एयर स्ट्राइक करके उनके घुसपैठियों को तबाह कर दिया और अब सरकार ने चाइना के 59 एप्प को बैन करके डिजिटल स्ट्राइक किया है। चाइना के सरकारी समाचारपत्र ग्लोबल टाइम्स की भाषा बता रही है कि इस स्ट्राइक की मार अन्दर तक लगी है।
सूचना क्रांति के इस दौर में चीन के एप्प उसकी बड़ी ताकतों में से एक हैं जो किसी और देश के नागरिकों और सरकार की ख़ुफ़िया जानकारी चीन की कम्युनिस्ट सरकार तक पहुंचा सकते हैं। ऐसे में चीन के एप्प को बैन किये जाने पर चीन से ये प्रतिक्रिया आनी अपेक्षित भी थी लेकिन हैरानी की बात ये है कि चीन से ज्यादा दुखी हमारे ही देश के कुछ नेता और बुद्धिजीवी नज़र आ रहे हैं।
जब देश मुश्किल समय का सामना कर रहा हो तब सैनिकों के साथ देश के नागरिकों का भी कर्त्तव्य हो जाता है कि वो घुसपैठियों को पहचानें। जरुरी नहीं कि ये घुसपैठिये बन्दूक और गोलियां लेकर घुसे हों, चीनी प्रोपगेंडा भी उतना ही खतरनाक है। तो ऐसे में इन लोगों की मानसिकता का विश्लेषण जरुरी हो जाता है जो देश का नमक खाकर चीन की भाषा बोल रहे हैं।
रोने के नए बहाने, दर्द वही पुराना
आप पार्टी के नेता संजय सिंह ने ट्वीट किया “App बंद करने की नौटंकी इसलिये की गई कि चंदा वापस करने की माँग पीछे हो जाय Paytm tiktok समेत तमाम कम्पनियों से PM Cares में सैंकड़ों करोड़ चंदा लिया गया है इसमें वो कम्पनियाँ भी शामिल हैं जिनका सम्बंध चीनी सेना से है, इन कम्पनियों का चंदा वापस करो मोदी जी।”
प्रशांत भूषण समेत एक पूरी फ़ौज ट्विटर पर रोने का नया बहाना लेकर आ गयी। इन लोगों का दर्द है कि अब टिकटॉक बैन हो गया तो सरकार उसके द्वारा पीएम केयर फण्ड में दिए 30 करोड़ रूपए वापस कर दे। कुछ लोगों ने यह भी लिखा कि भारतियों की नौकरी चली जाएगी।
गौर कीजियेगा कि टिकटॉक पैसे वापस नहीं मांग रहा, जिनकी नौकरी गयी वो सरकार को गलियां नहीं दे रहे, ये करने वाले देश की राजनीतिक पार्टी के नेता हैं। फिर क्यों न कहा जाए कि ये अपनी राजनीति की आड़ में चीन का प्रोपोगैंडा चलाने में लगे हैं।
एक यूजर ने संजय सिंह के ट्वीट का उत्तर देते हुए जो लिखा वो काफी दिलचस्प है और सारे प्रोपोगैंडा की असलियल रेखांकित कर देता है।
When they attack Patanjali, do they show care for people it employs?
When they attack statue of unity, do they talk of unemployment of people it provides livelihood?
But..
The moment you attack China, same people come defending crying about job loss.
It's crocodile tears
— मनोज कुमार (@manojsom6) June 30, 2020
सवाल ये है कि आखिर क्यूँ इन लोगों को चीनी कंपनी के पैसों की फिकर है लेकिन भारतियों की नहीं। उन्हें कुछ लोगों के नौकरी जाने की चिंता खाए जा रही है लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा से कोई मतलब नहीं है। आखिर ये लोग किस मानसिकता के शिकार हैं कि उन्हें देश की अखंडता और संप्रभुता से ज्यादा अपना एजेंडा प्यारा है? आखिर क्यूँ ये देश में आग लगाकर अपने मतलब की रोटी सेंकना चाहते हैं।
आप अगर समय में थोडा पीछे जाकर देखेंगे तो पाएंगे कि ये वही लोग हैं जो सर्जिकल स्ट्राइक के बाद सबूत मांग रहे थे। ये वही लोग हैं जो अभी कुछ समय पूर्व भारतीय सेना के आधिकारिक बयान के बावजूद चीनी मीडिया पर ज्यादा भरोसा कर सरकार से सवाल पर सवाल पूछ रहे थे।
ये वही लोग हैं जिन्हें इस बात से तकलीफ हो रही थी कि भारतीय सेना के जवानों ने चीन के 43 जवान मार गिराए। इनका पैटर्न देखने के बाद समझ आता है कि इनका विरोध किसी मुद्दे से नहीं, देश से है। इन्हें सरकार के नहीं राष्ट्रीय भावना के विपरीत जाना है। हर बार इनके रोने के नए बहाने हैं लेकिन दर्द वही पुराना है।
क्या चीन के बिछाये मोहरे हैं ये नेता ?
ऐसा नहीं है कि चीन के समर्थन में सिर्फ भारत में ही घर के भेदी खड़े हो रहे हैं। चीन अपने प्रोपगेंडा के जाल को दुनिया भर में फैला रहा है। इसी साल के जनवरी में कुछ दस्तावेज़ सामने आये। चीन सरकार के एक प्रचार आउटलेट ने पिछले 4 वर्षों में अमेरिकी अखबारों को विज्ञापन और मुद्रण शुल्क के रूप में 19 मिलियन डॉलर का भुगतान किया है।
जस्टिस डिपार्टमेंट में चाइना डेली द्वारा दायर दस्तावेजों के अनुसार, कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र ने वॉल स्ट्रीट जर्नल (WSJ) को 6 मिलियन डॉलर, वाशिंगटन पोस्ट को 4.6 मिलियन डॉलर, फॉरेन अफेयर्स को 2,40,000 डॉलर, न्यूयॉर्क टाइम्स को 50,000 डॉलर का भुगतान किया था। चीन के द्वारा जनमत को प्रभावित करने के इस प्रयास का अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भी विरोध कर चुके हैं।
China is actually placing propaganda ads in the Des Moines Register and other papers, made to look like news. That’s because we are beating them on Trade, opening markets, and the farmers will make a fortune when this is over! pic.twitter.com/ppdvTX7oz1
— Donald J. Trump (@realDonaldTrump) September 26, 2018
अमेरिकी सरकार को ऐसे भी कई मामले मिले हैं जहाँ चीन ने विभिन्न निवेशों, स्कॉलरशिप और शोध के नाम पर बड़ी धनराशी देकर अमेरिका के पत्रकारों और वैज्ञानिकों को अपने पक्ष में कर रखा है। ऑस्ट्रेलिया ने भी अपने एक निर्वाचित एमपी को चाइना के साथ सांठगांठ के लिए गिरफ्तार किया है।
अमरीका में हो रही इन गतिविधियों और सबूतों को देखने के बाद आप इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि चीन ने ऐसे प्रयास भारत में नहीं किये होंगे। तो देश के खिलाफ जाकर चीन का बाजा बजने वाले कहीं चीन के बिछाये मोहरे तो नहीं हैं?
अगर आपको लगता है कि भारत में इस तरह का हस्तक्षेप संभव नहीं है तो आपको एक बार वसिली मित्रोखिन द्वारा लिखित मित्रोखिन आर्काइव पढ़नी चाहिए, जिसे कई देशों ने प्रामाणिक दस्तावेज मानते हुए मुक़दमे चलाये हैं। कभी रूसी ख़ुफ़िया विभाग के लिए काम करने वाले मित्रोखिन ने अपने किताब में भारत से भी जुड़े कुछ खुलासे किये हैं जिनमें से कुछ आपकी जानकारी में जरूर होने चाहिए।
- इंदिरा गांधी को KGB ने VANO कोडनेम दिया था। एक अवसर पर, पोलित ब्यूरो से कांग्रेस (आर) को 2 मिलियन रुपये का एक गुप्त उपहार व्यक्तिगत रूप से भारत में केजीबी प्रमुख लियोनिद शबरशीन द्वारा दिया गया था। इंदिरा गांधी का समर्थन करने वाले एक अखबार को उसी अवसर पर एक और करोड़ रुपये दिए गए।
- 1959 में, सीपीआई के महासचिव अजॉय घोष ने सोवियत ब्लॉक के साथ व्यापार के लिए एक आयात-निर्यात व्यापार की शुरुआत की थी। एक दशक से भी कम समय में इसका वार्षिक मुनाफा 3 करोड़ रुपये से अधिक हो गया।
- 1975 के दौरान इंदिरा गांधी के समर्थन को मजबूत करने और उनके राजनीतिक विरोधियों को कमजोर करने के लिए रूस ने कुल 10.6 मिलियन रूबल खर्च किए थे।
- 1973 तक, केजीबी के पास पेरोल और एक भारतीय प्रेस एजेंसी और 10 भारतीय समाचार पत्र थे। 1975 के दौरान केजीबी ने भारतीय समाचार पत्रों में 5,510 प्रोपगेंडा लेख लगाए।
आज संचार के तरीके बदल गए हैं लेकिन कम्युनिस्ट प्रोपगेंडा आज भी नहीं बदला है। जो कल तक रूस के कम्युनिस्ट कर रहे थे, कहीं आज चीन वही तरीका तो नहीं अपना रहा है? चीन के समर्थन में देश का विरोध करने वाले कहीं चीन के बिछाए मोहरे तो नहीं हैं?
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)