विपक्षी दलों के आरोपों से आजिज़ आकर चुनाव आयोग ने अब उन्हें चुनौती दी है कि वे आकर ईवीएम हैक करके दिखाएं। आगामी तीन जून से इस चुनौती की शुरुआत होगी। इसके तहत आरोप लगाने वाले दलों को पिछले विधानसभा चुनावों में प्रयुक्त हुई ईवीएम हैक करने के लिए दी जाएगी, जिसे उन्हें हैक करना होगा। लेकिन, दिलचस्प बात यह है कि इस चुनौती में हिस्सा लेने के लिए नाम देने की आखिरी तारीख 26 मई तक ही है, जबकि ईवीएम पर आरोप लगाने वाले किसी भी दल ने अबतक इस चुनौती को स्वीकार नहीं किया है। सवाल उठता है कि ईवीएम पर आरोप लगाने में तो ये राजनीतिक दल बढ़-चढ़कर बोल रहे थे, फिर चुनाव आयोग की इस चुनौती को स्वीकारने पर सन्नाटा मारे क्यों बैठे हैं ?
गत मार्च में संपन्न हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा की बम्पर विजय से बौखलाए विपक्षी दलों ने अपने बचाव में और कोई दलील न देखकर एक नया शिगूफा उछाल दिया। शिगूफा यह कि भाजपा ने यह जीत ईवीएम में हेर-फेर करके प्राप्त की है। इस शिगूफे की शुरुआत यूपी में अपना सूपड़ा साफ़ होने से बौखलाई मायावती ने की जिसे पंजाब में हार से बौखलाए अरविन्द केजरीवाल एंड कंपनी ने लपक लिया। इसके बाद ये मामला धीरे-धीरे सभी विपक्षी दलों के लिए हार स्वीकारने से बचने की एक लचर दलील बन गया।
चाहें वो कांग्रेस हो, समाजवादी पार्टी हो या तृणमूल कांग्रेस कमोबेश सबने इस मुद्दे पर शोर मचाना शुरू कर दिया। अरविन्द केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी ने इस मसले को सबसे अधिक तूल देने का काम किया। यहाँ तक कि दिल्ली विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर उसमें ईवीएम हैकिंग के कथित डेमो प्रस्तुत करने की पूरी नौटंकी अरविन्द केजरीवाल ने देश के सामने की।
हालांकि ईवीएम पर आरोप लगाने वाले इन दलों में से कोई भी अबतक एक भी ठोस तथ्य प्रस्तुत नहीं कर सका है कि ईवीएम कैसे हैक की जा सकती है। केजरीवाल इसका भी जवाब नहीं दे पाए कि अगर ईवीएम में खराबी है, तो फिर 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में उन्हें 67 सीटें कैसे मिल गयीं।
उचित होता कि ईवीएम में खराबी का आरोप लगाने से पहले अरविन्द केजरीवाल इस सवाल का जवाब दे दिए होते। इसी तरह कांग्रेस आदि दलों को भी ईवीएम पर आरोप लगाने से पहले अपनी चुनावी जीतों का हिसाब-किताब बता देना चाहिए था। मगर, इन बातों पर ये लोग सन्नाटे की चादर ओढ़े ही नज़र आए।
बहरहाल, विपक्षी दलों के आरोपों से आजिज़ आकर चुनाव आयोग ने अब उन्हें चुनौती दी है कि वे आकर ईवीएम हैक करके दिखाएं। आगामी तीन जून से इस चुनौती की शुरुआत होगी। इसके तहत आरोप लगाने वाले दलों को पिछले विधानसभा चुनावों में प्रयुक्त हुई ईवीएम हैक करने के लिए दी जाएगी, जिसे उन्हें हैक करना होगा।
लेकिन, दिलचस्प बात यह है कि इस चुनौती में हिस्सा लेने के लिए नाम देने की आखिरी तारीख 26 मई तक ही है, जबकि ईवीएम पर आरोप लगाने वाले किसी भी दल ने अबतक इस चुनौती को स्वीकार नहीं किया। सवाल उठता है कि ईवीएम पर आरोप लगाने में तो ये राजनीतिक दल जिस तरह से बढ़-चढ़कर बोल रहे थे, अब चुनाव आयोग की इस चुनौती को स्वीकारने के समय सन्नाटा मारे क्यों बैठे हैं ? अगर उनके आरोपों में दम है, तो इस चुनौती को स्वीकारते क्यों नहीं ?
चुनाव आयोग की चुनौती पर इन दलों का इस तरह से चुप्पी साधे रहने का कहीं न कहीं यही मतलब निकलता है कि इन्हें ईवीएम पर अपने आरोपों को साबित कर पाने में नाकामयाब रहने का भय सता रहा है। हवा-हवाई आरोपों का यही हश्र होता है।
वैसे संभव है कि कुछ दल इस चुनौती को स्वीकार भी लें, मगर ईवीएम हैक कर पाना उनके लिए संभव नहीं होगा। क्योंकि, चुनाव आयोग समेत तमाम तकनीकी विशेषज्ञों द्वारा यह स्पष्ट किया जा चुका है कि ईवीएम हैक नहीं की जा सकती। ऐसे में, ये दल अपनी विफलता को छिपाने के लिए कोई न कोई नया बहाना लेकर ज़रूर प्रकट होंगे। मगर, अब इनका कोई भी दाँव नहीं चलने वाला क्योंकि, जनता इनकी हकीकत से परिचित हो चुकी है। इसीलिए इन्हें लगातार चुनावों में खारिज कर रही है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)