आखिर केरल में ऐसा क्या हो गया है जो कोरोना के मोर्च पर यह राज्य बुरी तरह विफल साबित हो रहा है। अभी अधिक समय नहीं बीता है जब लॉकडाउन के समय इसी केरल को कुछ विचारधारा विशेष के बुद्धिजीवियों और पत्रकारों द्वारा कथित रूप से आदर्श राज्य बताया जा रहा था। सरकार विरोधी एजेंडा चलाने वाले कुछ पत्रकार अपने कार्यक्रमों में केरल मॉडल की तारीफ करते नहीं थक रहे थे और इस प्रकार का नैरेटिव सेट किया जा रहा था मानो केरल के सिवाय देश में कोई राज्य बढ़िया काम कर ही नहीं रहा है।
पिछले सप्ताह देश ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बना। कोरोना वायरस महामारी से बचाव के लिए आखिर देश में टीकाकरण की शुरुआत हो ही गई। इस अभियान के साथ ही देशवासियों को गर्व करने के दो और कारण मिले। पहला यह कि यह अभियान विश्व का सबसे बड़ा टीकाकरण था और दूसरा यह कि इसमें प्रयुक्त की जाने वाली दोनों वैक्सीन कोविशील्ड और कोवैक्सीन पूर्ण रूप से स्वदेशी हैं।
कोरोना महामारी के खिलाफ भारत में टीकाकरण अभियान सफलतापूर्वक चल रहा है। स्वास्थ्य मंत्रालय के ताजा आंकड़े बताते हैं कि बुधवार की शाम तक कुल 7 लाख 86 हज़ार स्वास्थ्यकर्मियों को वैक्सीन की पहली खुराक दी जा चुकी है।
लेकिन टीकाकरण के इस सुखद पहलू के बीच यदि हम कोरोना संक्रमण के वर्तमान परिदृश्य को देखें तो मिले जुले तथ्य सामने आ रहे हैं। यह अच्छी बात है कि देश में अब कोरोना संक्रमण के मामलों में कमी आ रही है और सक्रिय मामले भी लगातार घटे हैं लेकिन केरल में कोरोना वायरस का कहर कायम है। यह अभी थमता मालूम नहीं पड़ रहा।
बुधवार को केरल में संक्रमण के करीब 6 हजार नए केस सामने आए हैं। यह आश्चर्य की बात है कि जहां एक तरफ पूरे देश में कोरोना पर लगाम लगती जा रही है, वहीं केरल में हालात इतने बेकाबू कैसे हो गए।
कोरोना संक्रमण से सर्वाधिक पीड़ित राज्य महाराष्ट्र रहा लेकिन वहां भी अब हालात सुधर गए हैं। केरल की तुलना में महाराष्ट्र में आधे से भी कम नए मामले आ रहे हैं। यानी केरल को छोड़कर पूरे देश में हालात नियंत्रण में हैं।
आखिर केरल में ऐसा क्या हो गया है जो कोरोना के मोर्च पर यह राज्य बुरी तरह विफल साबित हो रहा है। अभी अधिक समय नहीं बीता है जब लॉकडाउन के समय इसी केरल को कुछ विचारधारा विशेष के बुद्धिजीवियों और पत्रकारों द्वारा कथित रूप से आदर्श राज्य बताया जा रहा था। सरकार विरोधी एजेंडा चलाने वाले कुछ पत्रकार अपने कार्यक्रमों में केरल मॉडल की तारीफ करते नहीं थक रहे थे और इस प्रकार का नैरेटिव सेट किया जा रहा था मानो केरल के सिवाय देश में कोई राज्य बढ़िया काम कर ही नहीं रहा है।
लेकिन अब जब पूरा देश कोरोना मुक्त होता जा रहा है तब केरल में कोरोना अभी भी कहर बनकर टूट रहा है। देश के कुल मामलों का 40 पतिशत केरल से आ रहा है। ऐसे में ये तथाकथित बुद्धिजीवी एवं प्रायोजित पत्रकार चुप क्यों हो गए हैं। उन्हें केरल की दुर्दशा नज़र क्यों नहीं आती। इसी तरह भीलवाड़ा मॉडल की भी चर्चाएं जोरों पर थीं लेकिन ये निर्मूल साबित हुईं।
दरअसल लंबे समय तक कई राज्यों में संक्रमण का ना पाए जाने का केवल इतना कारण था कि वहाँ धीरे-धीरे संक्रमण पैर पसार रहा था जो आगे उजागर हुआ। यदि ऐसा ना होता तो आज केरल की यह दुर्गति नहीं हुई होती। मगर तब जो केरल मॉडल की तारीफें करते हुए फूले नहीं समा रहे थे, वे अब सन्नाटा मारे हुए हैं।
चूंकि केरल और राजस्थान में विपक्षी दलों की सरकार है, इसलिए प्रायोजित पत्रकार इन्हें आदर्श बताने पर तुले हुए थे। जबकि उसी दौर में उत्तर प्रदेश से जिस दक्षता, संपूर्णता, सख्ती और सुव्यवस्थित ढंग से कोरोना पर काबू पाने की दिशा में कार्य किया वह अपने आप में एक मिसाल है।
दिल्ली एवं महाराष्ट्र सहित अन्य राज्यों में लॉकडाउन के दौरान फंसे हुए प्रवासी श्रमिक, स्टूडेंट आदि अपने शहरों का रूख कर रहे थे। बड़ी संख्या में ये लोग उत्तर प्रदेश पहुंच रहे थे लेकिन यूपी सरकार ने बाहर से आने वालों का इस प्रकार से सुनियोजित प्रबंधन किया कि राज्य के निवासी संक्रमण की चपेट में आने से बच गए।
यदि मॉडल की ही चर्चा करनी है तो सबसे पहले उत्तर प्रदेश मॉडल की ही बात होना चाहिये। लेकिन चूंकि राष्ट्रव्यापी मामलों में क्षेत्रीयता आड़े नहीं आना चाहिये इसलिए इन बातों को तरजीह देना ठीक नहीं होगा। मगर आश्चर्य होता है कि केरल जैसी संक्रमण की चपेट में गले तक डूबी हुई जगह को विपक्षी दल मॉडल राज्य बता देते हैं।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय अपना काम कर रहा है और टीकाकरण सुचारू रूप से चल रहा है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने दो दिन पहले ही देशभर में साढ़े सात लाख नए सैंपलों की जांच की है। इनको मिलाकर देश में अब तक 18 करोड़ 85 लाख 66 हजार से ज्यादा नमूनों की जांच की जा चुकी है।
ताजा आंकड़ों के अनुसार पूरे देश में 30 से अधिक राज्यों में एक्टिव केस की संख्या 10 हजार से भी कम हो चुकी है। कोरोना महामारी से अभी तक 1 करोड़ ढाई लाख लोग पूरी तरह ठीक हो चुके हैं और देश का रिकवरी रेट अब 97 प्रतिशत के करीब पहुंच चुका है। म
रीजों के ठीक होने का सिलसिला बना हुआ है। महामारी के चलते रोज होने वाली मौतों की संख्या भी पिछले कुछ दिनों से दो सौ से कम है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि देश में कोरोना महामारी अब धीरे-धीरे नियंत्रण में आती नजर आ रही है। यह सब केंद्र सरकार की निर्णय क्षमता के चलते संभव हो पाया है। अन्यथा आज भी अमेरिका, ब्रिटेन, इटली और चीन जैसे देश कोरोना से जूझ ही रहे हैं।
अमेरिका में जहां रोज 3 से 4 हजार मौतें हो रही हैं, वहीं इंग्लैंड और इटली में समय-समय पर देशव्यापी लॉकडाउन लगाए गए हैं। हाल ही में चीन में कई राज्यों में संपूर्ण लॉकडाउन लगा दिया गया क्योंकि वहां कोरोना संक्रमण की नई लहर तेजी से फैल रही है। ऐसे में तुलनात्मक रूप से देखें तो भारत बहुत सुरक्षित स्थिति में है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सही समय पर लॉकडाउन लगाया एवं बाद में चरणबद्ध रूप से अनलॉक करते हुए देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया गया है। आज देश जान और माल दोनों के नुकसान से उबर रहा है। वैक्सीनेशन सफल हो रहा है। यदि कुछ ठीक नहीं है तो विपक्षियों का दिमाग जो केंद्र सरकार के हर निर्णय पर सवाल उठाना ही अपना काम समझते हैं लेकिन केरल जैसे राज्यों में संक्रमण की तेज रफ़्तार पर खामोश हैं।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)