केरल इन दिनों कोरोना का एपिसेंटर बना हुआ है। बीते एक माह से लगातार यहां संक्रमण की दर बढ़ती जा रही है। हालात इतने बेकाबू हो गए हैं कि पूर्ण लॉकडाउन के बावजूद संक्रमण नहीं थम रहा। निश्चित रूप से इसके पीछे केरल सरकार द्वारा कोरोना को हल्के में लिया जाना ही कारण है जिसने पूरे देश के लिए चिंता उपस्थित कर दी है, क्योंकि यहां से यदि अन्य राज्यों में संक्रमण फैला तो स्थितियां कठिन हो जाएंगी।
कोरोना महामारी के संदर्भ में देश में इन दिनों दो अलग-अलग परिदृश्य चल रहे हैं। दोनों समानांतर रूप से विचारणीय हैं। पहला है, कोरोना टीकाकरण का महाअभियान और दूसरा है केरल में कोरोना के लगातार तेजी से बढ़ते नए मामले।
पहले बिंदु की बात की जाए तो हर भारतीय के लिए गर्व का विषय है कि कोरोना वैक्सीनेशन को लेकर एक अभूतपूर्व सफलता मिल रही है। बीते सप्ताह में दो बार ऐसा हो चुका है कि जब एक दिन में एक करोड़ से अधिक लोगों को टीके लगाए गए। ये टीके पहली और दूसरी दोनों डोज मिलाकर थे।
जब पहली बार देश में एक दिन में एक करोड़ से अधिक टीकाकरण का आंकड़ा पार हुआ तो स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने ट्वीट करके यह प्रसन्नता आम जनता से साझा की। इसका ध्येय यही था कि जनमानस में यह संदेश जाए कि अभियान के हर कदम पर सरकार की पैनी निगाहें हैं और यह महाअभियान तीव्र गति से जारी है।
यहां यह उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश देश का सर्वाधिक वैक्सीनेशन करने वाला राज्य बन गया है। गत सप्ताह में यहां दो बार 28 लाख प्रतिदिन टीकाकरण का आंकड़ा पार हुआ है। यह अपने आप में बड़ी उपलब्धि है। वैसे भी उत्तर प्रदेश जैसे सघन राज्य में विशाल जनसंख्या को देखते हुए इतनी बड़ी संख्या में टीकाकरण किया जाना चुनौती से कम नहीं रहा होगा।
देश में चल रहे टीकाकरण को एक व्यापक एवं देशव्यापी जनजागरूकता अभियान बनाने में सरकार के साथ-साथ जनता का भी योगदान है। ये सारे तथ्य एक अच्छे वर्तमान एवं सुरक्षित भविष्य का आभास देते हैं। लेकिन केरल में कोरोना के बढ़ते मामले चिंता भी बढ़ा रहे हैं।
आज 2 सितंबर की सुबह जारी किए गए स्वास्थ्य मंत्रालय के ताजा आंकड़े बताते हैं कि बीते 24 घंटों में देश में कोरोना के 47 हजार नए मामले आए हैं और यह बहुत ही चौंकाने वाली बात है कि इनमें से 33 हजार मामले अकेले केरल राज्य से हैं।
केरल इन दिनों कोरोना का एपिसेंटर बना हुआ है। बीते एक माह से लगातार यहां संक्रमण की दर बढ़ती जा रही है। हालात इतने बेकाबू हो गए हैं कि पूर्ण लॉकडाउन के बावजूद संक्रमण नहीं थम रहा। निश्चित रूप से इसके पीछे केरल सरकार द्वारा कोरोना को हल्के में लिया जाना ही कारण है जिसने पूरे देश के लिए चिंता उपस्थित कर दी है, क्योंकि यहां से यदि अन्य राज्यों में संक्रमण फैला तो स्थितियां कठिन हो जाएंगी।
क्या कारण है कि केरल अकेला कोरेाना का केंद्र बन गया है और शेष राज्य संतुलित हैं। असल में यहां की वामपंथी सरकार अपनी राजनीति में इस कदर विवेकहीन हो चुकी है कि कोरोना जैसी महामारी को भी संजीदगी से नहीं ले रही। हाल ही में केरल में बकरीद पर बाजार पूरी क्षमता के साथ खोल दिए गए थे और धड़ल्ले से भीड़ उमड़ी। मज़हबी तुष्टिकरण के लिए केरल सरकार ने लोगों के जीवन को संकट में डाल दिया।
इतना ही नहीं, समय-समय पर केरल की जनता ने सारे नियमों का उल्लंघन किया और राज्य सरकार आंखें मूंदें बैठी रही क्योंकि इस सरकार का मुख्य मकसद केवल स्थानीय जनता को वोटबैंक की तरह इस्तेमाल करना, तुष्टिकरण करना मात्र था। केरल सरकार को ना राज्य की जनता की चिंता थी ना अन्य राज्यों की। यही कारण है कि आज देश के कुल मामलों का लगभग 80 प्रतिशत केरल में दर्ज हो रहा है।
कोरोना के शुरूआती दिनों में केरल में कुछ कम मामले सामने आए थे। तब वामपंथी पत्रकारों एवं बुद्धिजीवियों ने सोशल मीडिया एवं प्रचार माध्यमों में ‘केरल मॉडल’ को बढ़ा चढ़ाकर पेश किया और गुणगान में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। अब वे सारे लोग, सारे नेता, सारे पत्रकार, सारे एक्टिविस्ट अचानक कहीं गायब हो गए हैं क्योंकि उनका तथाकथित केरल मॉडल बुरी तरह ध्वस्त जो हो चुका है और उनके खोखले दावों की हवा निकल चुकी है।
इस परिदृश्य का आज समूचा देश साक्षी है। राष्ट्रीय स्तर पर कोरोना के सक्रिय मामलों में गिरावट के बावजूद आज भी देश में कई राज्यों में प्रतिबंधात्मक उपाय पूरी तरह से हटाए नहीं गए हैं। कई जगह रात का कर्फ्यू बढ़ाया गया है तो कहीं तयशुदा मानक संचालन प्रकिया (SOP) के कठोर पालन की शर्त पर सेवाओं को बहाल किया गया है।
जब संक्रमण काबू में होने पर भी अन्य राज्य ऐसी सावधानी बरत रहे हैं तो सवाल उठता है कि केरल के मुख्यमंत्री के हाथ आखिर ऐसी कौन सी ‘संजीवनी बूटी’ लग गई थी जो उन्होंने केस कम न होने पर भी बकरीद पर सारी पाबंदियों में ढील दे दी और बाजार खोल दिए। उन्होंने ना केवल केरल बल्कि अन्य राज्यों को भी संकट में डाल दिया है।
आज यदि देश में फिर से कोरोना संक्रमण बेकाबू हो जाता है कि इसकी दोषी केरल राज्य सरकार ही होगी। यह भी कम आश्चर्य नहीं है कि विपदा की घड़ी में भी एजेंडेबाज विपक्षी तत्व ‘अमुक मॉडल’ जैसा शब्द गढ़ लेते हैं और उस नैरेटिव को सेट करने के एजेंडा में जुट जाते हैं। इस भाषा में तो बात होना ही नहीं चाहिये लेकिन यदि इन्हें इनके ही तर्क से जवाब दिया जाए तो उत्तर प्रदेश से श्रेष्ठ मॉडल देश में नहीं हो सकता।
यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ तो लॉकडाउन के दौरान ही कई राज्यों से लौटते हजारों प्रवासी श्रमिकों, छात्रों आदि को ना केवल सुरक्षित घर वापस लाए बल्कि इस प्रकार प्रबंधन किया कि वे संक्रमण से दूर रहें और औरों को भी संक्रमण ना फैला सकें। यदि मॉडल की भाषा ही स्वीकार्य होती तो यूपी से बेहतर मॉडल नहीं है जहां 1 सितंबर से सरकार स्कूल खोलने जैसा कठिन काम करने की हिम्मत केवल इसलिए कर सकी क्योंकि कोरोना अब उनके नियंत्रण में है।
लेकिन एजेंडाबाज गिरोह जो केरल मॉडल का बेसुरा राग अलापते थे, जमीनी वास्तविकता पर खामोश है। यदि तब केरल इनकी नज़र में श्रेष्ठ मॉडल था तो अब वे इसकी दुर्दशा पर कुछ बोलने से बच क्यों रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि केरल और उसका कथित ‘मॉडल’ अब पूरी तरह से एक्सपोज हो चुका है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)