भारतीय कम्यूनिस्टों की चुप्पी इस समय उनके पक्ष का इजहार कर रही है। देश के कॉमरेड-फेमिनिस्ट और चर्च के इशारे पर अम्बेडकर के नाम की माला जपने वाले अम्बेडकरवादी भी इस समय चुप हैं। वे जानते हैं कि इस समय वे बोलेंगें तो अपनी पोल खोलेंगे। भारतीय जनता पार्टी को स्यूडो कम्यूनिस्ट एन्टीलेक्चुअल्स ने ही महिला विरोधी प्रचाारित किया था। यह समय कैसे संयोग का समय है कि भारतीय जनता पार्टी और उसकी केन्द्र में सरकार प्रगतिशील स्टैन्ड ले रहे हैं तीन तलाक के महिला विरोधी पाखंड के खिलाफ। और कम्यूनिस्ट बुद्धीजीवी वह तर्क तलाश रहे हैं, जिससे वे इसे सही साबित कर पाएं। वे मुसलमान पुरुष की श्रेष्ठता को मुसलमान महिलाओं पर जायज ठहरा पाएं। महिलाओं पर काबू रखने के तमाम उपचार इस्लाम में हैं, लेकिन कभी कम्यूनिस्ट बुद्धीजीवी उसकी तरफ नजर नहीं कर पाते। उनकी बुद्धीजीविता ब्रम्हा के आस पास ही मंडराती रहती है, लेकिन वे मोहम्मद की नाबालिग पत्नी पर कभी दो शब्द नहीं लिख पाते। ये वही कम्यूनिस्ट हैं, जिन्होंने ब्रम्हा द्वारा सरस्वति के कथित बलात्कार की घटना को कई हजार बार अब तक उद्धृत किया होगा। जबकि वे जानते हैं कि सनातन ग्रंथों का क्षेपक एक अनिवार्य हिस्सा बन गया है। जिस पर बहुत मेहनत आर्य समाज ने किया।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव वली रहमानी, जमीयत उलेमा ए हिन्द के अध्यक्ष अरशद मदनी, ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल के प्रमुख मंजूर आलम, जमात एक इस्लामी हिंद के पदाधिकारी मोहम्मद जफर, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य कमाल फारुकी सभी मुसलमान महिलाओ के खिलाफ भारत में मोर्चा खोलने वालों के अगुआ हैं। इसमें उल्लेखनीय है कि इस सूची में एक भी महिला नाम नहीं है। कुछ दिनों पहले तक असहिष्णुता का राग अलाप रहे गिरोह का कोई सदस्य इस वक्त मुसलमानों को खुद से नाराज करने के पक्ष में नहीं दिख रहा, चूंकि उन्हें न्याय से अधिक अपनी राजनीति प्यारी है। कम्यूनिस्टों का स्त्रियों के पक्ष में होना सिर्फ एक ढोंग है, वर्ना उन्हें इस समय मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में मोर्चा खोलना चाहिए।
मुसलमान महिलाएं अब जागरूक हो रही हैं। वे नहीं चाहती कि वे अपने शौहर के हाथों इस्तेमाल हों। उनका शौहर दो शादी करें, तीन शादी करें या चार। इसकी इजाजत वह मुस्लिम कानूनों से ले आता है और मुसलमान महिलाएं अपने शौहर के अलावा किसी दूसरे मर्द के साथ हम बिस्तर हों तो वही कानून उन्हें यह हक नहीं देता। जब इस्लाम ने महिला और पुरुष में कोई भेद नहीं किया तो यह मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड कौन होता हैं, दोनों के अधिकारों के बीच भेद बरतने वाला। इस्लाम में पंडे और पुजारियों के लिए कोई जगह नहीं थी, लेकिन भारत में आकर उनके अनुसार जो ‘काफिर’ हैं, का रंग मुसलमानों पर खूब चढ़ा और वहां मुफती व मौलाना हुए। मुसलमान महिलाओं को बराबरी का हक ना देने के पक्ष में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड समेत नौ मुस्लिम संगठनों ने मोर्चा खोल दिया है। मुसलमान पुरुषों को अल्लाह ने बनाया है शासन करने के लिए और महिलाओं को बनाया है अपने शौहर का कहा मानने के लिए। यह बिल्कुल झूठी धारणा है। बेबुनियाद है।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव वली रहमानी, जमीयत उलेमा ए हिन्द के अध्यक्ष अरशद मदनी, ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल के प्रमुख मंजूर आलम, जमात एक इस्लामी हिंद के पदाधिकारी मोहम्मद जफर, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य कमाल फारुकी सभी मुसलमान महिलाओ के खिलाफ भारत में मोर्चा खोलने वालों के अगुआ हैं। इसमें उल्लेखनीय है कि इस सूची में एक भी महिला नाम नहीं है। कुछ दिनों पहले तक असहिष्णुता का राग अलाप रहे गिरोह का कोई सदस्य इस वक्त मुसलमानों को खुद से नाराज करने के पक्ष में नहीं दिख रहा, चूंकि उन्हें न्याय से अधिक अपनी राजनीति प्यारी है। कम्यूनिस्टों का स्त्रियों के पक्ष में होना सिर्फ एक ढोंग है, वर्ना उन्हें इस समय मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में मोर्चा खोलना चाहिए। विचारधारा के प्रति प्रतिबद्धता और उसमें बिना दबाव में आए अपनी बात कहने के साहस को समझने के लिए कम्यूनिस्टों को आरएसएस के पूर्व सरसंघ चालक माधव सदाशिव गोलवलकर द्वारा ‘मदर लैंड’ अखबार के लिए के आर मलकानी को 23 अगस्त 1972 को दिया गया साक्षात्कार पढ़ना चाहिए। समान नागरिक संहिता पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में गोलवलकरजी ने कहा – आपको या अन्य बहुतों को आश्चर्य हो सकता है। परंतु यह मेरा मत है और जो मुझे सत्य दिखाई देता है-वह मुझे कहना ही चाहिए। समरसता-हारमनी- और एकविधता -यूनिफार्मिटी- दो अलग अलग बातें हैं। एक विधता/समान नागरिक संहिता जरूरी नहीं। भारत में सदा अपरिमित विविधताएं रहीं हैं। फिर भी अपना राष्ट दीर्घकाल तक अत्यंत शक्तिशाली और संगठित रहा है। एकता के लिए एकविधता नहीं बल्कि समरसता आवश्यक है। इसी साक्षात्कार में उन्होंने यह भी स्वीकार किया है कि उनका समान नागरिक संहिता से कोई विरोध भी नहीं है। तीन तलाक, बहु विवाह जैसे कानूनों को लेकर सहिष्णुता गिरोह जिसका दावा बुद्धीजीवी होने का भी है, को अपने न्याय के साथ खड़े होने की मिसाल इस वक्त देनी चाहिए। वर्ना इतिहास में यह बात दर्ज होगी कि जब देश में मुंसलमान महिलाओं के मुक्ति का संघर्ष चल रहा था, सहिष्णुता के पक्ष में कथित तौर पर खड़ा दिखने वाला गिरोह ‘मौन’ था।
(लेखक पेशे से पत्रकार हैं। यह उनके निजी विचार हैं।)