जैन मुनि तरुण सागर जी द्वारा हरियाणा विधानसभा में संबोधन को लेकर विपक्ष हंगामा काटे है। खासकर वामपंथी बहुत बेचैन हैं। उन्हें लगता है कि तरुण सागर का प्रवचन कराकर हरियाणा सरकार ने गैर संवैधानिक काम किया है। उनका आरोप है कि विधानसभा के भीतर जैन मुनि तरुण सागर का प्रवचन कराकर हरियाणा सरकार ने धर्मनिरपेक्षता को अंगूठा दिखा दिया है। पर ऐसा नहीं है कि किसी धार्मिक साधु का प्रवचन पहली बार हुआ हो, मगर चूंकि लोगों की याददाश्त इतनी कमजोर होती है कि पास का अतीत भी याद नहीं कर पाते। क्या अब बताना पड़ेगा कि संसद में छह दिसंबर 2005 को बौद्घधर्म गुरू दलाई लामा भी सांसदों को संबोधित कर चुके हैं, पर तब इतना हंगामा शायद इसलिए नहीं कटा था, क्योंकि चैनलों पर बैठे संपादक दलाई लामा को तो बर्दाश्त कर लेते हैं, पर एक भारतीय धर्मगुरु को नहीं। कितनी बार पोप ने योरोप की संसदों को संबोधित किया हुआ है। मगर आज एक जैन मुनि ने संबोधित कर दिया, तो कांग्रेसी कह रहे हैं कि जाकिर नाइक से भी विधायकों को ज्ञान दिलाओ। अरे मूर्खो! जाकिर नाइक एक धर्म प्रचारक है जबकि जैन मुनि तरुण सागर जी कोई प्रचारक नहीं बल्कि जैन अपरिग्रह के प्रतीक हैं। मगर यह बात न कांग्रेसी समझ सकते हैं न वामपंथी।
आज एक जैन मुनि के प्रवचन पर कांग्रेसी रोना रो रहे हैं, पर वे क्या बता पाएंगे कि कांग्रेस की पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी स्वयं जैन मुनि महाराज विद्यासागर के पास जाया करती थीं और उनके समक्ष दंडवत होती थीं। मुनि विद्यासागर जी भी निर्वस्त्र रहते थे। इसी तरह कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी भी उस नग्न मुनि के पास अक्सर जाया करती थीं। यहां तक कि ये लोग द्वारिकापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद के पास भी दंडवत मुद्रा में कई बार गए हैं और उन्हें अपने आवास पर बुलाया है। जामा मस्जिद के शाही इमाम मौलाना बुखारी के लिए तो इनके घर के दरवाजे खुले रहते थे और ये पलक पांवड़े बिछाये उनका इंतजार करते थे। फिर एक अत्यंत अल्प समुदाय वाले जैन मुनि के प्रवचन पर इतना बवाल क्यों! क्या मार्क्सवादियों को बताना पड़ेगा कि उनके मुख्यमंत्री ज्योति वसु जब तक मुख्यमंत्री रहे उन्होंने एक बार भी ऐसा नहीं किया कि सेंट्रल पार्क की दुर्गा पूजा में शिरकत न की हो।
तरुण सागर जी के निर्वस्त्र रहने पर भी अंगुलियां उठाई जा रही हैं। पर वे यह सामान्य-सी बात भी नहीं समझ पा रहे हैं कि जैन मुनि इतने अपरिग्रही होते हैं कि वे कोई वस्त्र धारण नहीं करते और कोई भी मुनि यह तब ही कर सकता है, जब वह समस्त विकारों से दूर हो जाए। जो व्यक्ति सारे सांसारिक विकारों से दूर हो गया, तो उसके लिए वस्त्र धारण करना और न करना समान है। लेकिन, इस दिव्यता तक पहुंचने के लिए तपस्या करनी पड़ती है, जो कांग्रेसियों और वामपंथियों के लिए असंभव है।
जैन मुनि ने जो उपदेश दिए, वे कोई अजूबे नहीं बल्कि समरसता और न्यायपूर्ण समाज के लिए आवश्यक थे। आप सिर्फ एक धर्मविशेष की समस्या को सारे देश के लोगों पर लाद रहे हो। जातिवाद हिंदू समाज में है और वह राजनीतिकों का खेल है। वे इसे दूर नहीं करना चाहते बल्कि इसके बूते वे राजनीति के खेल करना चाहते हैं। पर जब दिमाग में शंका भरी हो तो किया ही क्या जा सकता है। मैं तो कहूंगा कि हरियाणा सरकार ने एक जैन मुनि का प्रवचन कराकर परोक्ष रूप से यह संदेश भी दिया है कि अपरिग्रही बनना मनुष्य के लिए सर्वोच्च प्रकृति है। अगर राजनीतिक लोग इस प्रकृति को समझें तो शायद समाज के और लोग भी इसके अनुरूप आचरण करें। पर हल्ला करने वाले किसी भी आध्यात्मिक कृत्य को बस सांप्रदायिक समझ लेते हैं।
आज एक जैन मुनि के प्रवचन पर कांग्रेसी रोना रो रहे हैं, पर वे क्या बता पाएंगे कि कांग्रेस की पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी स्वयं जैन मुनि महाराज विद्यासागर के पास जाया करती थीं और उनके समक्ष दंडवत होती थीं। मुनि विद्यासागर जी भी निर्वस्त्र रहते थे। इसी तरह कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी भी उस नग्न मुनि के पास अक्सर जाया करती थीं। यहां तक कि ये लोग द्वारिकापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद के पास भी दंडवत मुद्रा में कई बार गए हैं और उन्हें अपने आवास पर बुलाया है। जामा मस्जिद के शाही इमाम मौलाना बुखारी के लिए तो इनके घर के दरवाजे खुले रहते थे और ये पलक पांवड़े बिछाये उनका इंतजार करते थे। फिर एक अत्यंत अल्प समुदाय वाले जैन मुनि के प्रवचन पर इतना बवाल क्यों! क्या मार्क्सवादियों को बताना पड़ेगा कि उनके मुख्यमंत्री ज्योति वसु जब तक मुख्यमंत्री रहे उन्होंने एक बार भी ऐसा नहीं किया कि सेंट्रल पार्क की दुर्गा पूजा में शिरकत न की हो।
अभी पिछले वर्ष केरल में जन्माष्टमी स्वयं मार्क्सवादियों ने अपनी पहल पर मनाई क्योंकि केरल में हिंदू ही माकपा का जनाधार हैं। हरियाणा सरकार ने यह पहल की है और इसके परिणाम भी सकारात्मक निकलेंगे। एक तो भारतवर्ष के इस समुदाय को पहली बार यह संदेश भी मिलेगा कि अब वाकई भारत में अल्पसंख्यकों का सम्मान करने वाली सरकार है। जब आप संसद या विधायिकाओं में तमाम काले कारनामे वाले नेताओं के प्रवचन करा सकते हैं तो एक जैन मुनि के प्रवचन पर भला क्या आपत्ति हो सकती है। दूसरे, एक आध्यात्मिक नेता के प्रवचन का अगर शतांश भी लाभ विधायक उठा सके तो शायद वे अधिक बेहतर तरीके से अपने आचरण को दुरुस्त कर पाएंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)