क्यों लगता है कि सपा-बसपा गठबंधन से भाजपा को नहीं होगी कोई मुश्किल?

मायावती मानती हैं कि उनके समर्थक जिसे भी चाहें जिता सकते हैं, यानी वोट मायावती का और सीट किसी और की हो, तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता है। मायावती मानती हैं, वो जिसको चाहें अपना वोट ट्रान्सफर कर सकती हैं। बहुजन समाज पार्टी की दशा इन दिनों कोई अच्छी नहीं है, लेकिन सपा से गठबंधन करके मायावती कहीं न कहीं प्रधानमंत्री बनने की उम्मीद लगाए बैठी हैं। हालांकि माना जा रहा कि इस गठबंधन से मायावती के समर्थकों के लिए भ्रम की स्थिति पैदा होगी।

2019 लोक सभा चुनाव से पूर्व देश के सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में मायावती और अखिलेश ने कांग्रेस को न चाहते हुए भी अपना दुश्मन नंबर-2 बना लिया है। सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी को हराने की मजबूरी में दो ऐसी पार्टियों सपा और बसपा के बीच गठबंधन हुआ जो पिछले दो दशक से एकदूसरे की धुर विरोधी रही हैं। 

साभार : आजतक

समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने मिलकर आपस में 80 में से 76 सीटों का बंटवारा कर लिया तथा कांग्रेस और राष्ट्रीय लोक दल के लिए महज दो-दो सीटें ही छोड़ी हैं। अखिलेश और मायावती राहुल गांधी को 2019 चुनाव का बहुत गंभीर खिलाड़ी ही नहीं मानते, इसलिए गठबंधन बनाने से पहले उन्होंने कांग्रेस से बात करने की भी जरूरत नहीं समझी।

असली लड़ाई से पहले ही कांग्रेस के दोस्तों ने उसे मैदान से बाहर कर दिया है। राजनीतिक तौर पर कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अलग-थलग पड़ गई है। न तो उसके पास कैडर है और न ही समीकरण उसके पक्ष में हैं। एक तरह से अखिलेश और मायावती ने कांग्रेस पार्टी को बीच चौराहे पर अकेला छोड़ दिया, इस उपेक्षा के बाद कांग्रेस ने भी प्रदेश की सभी सीटों पर अकेले लड़ने का ऐलान कर दिया है।

दृष्टव्य है कि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने राज्य में पिछला विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ा था। लेकिन बीजेपी ने अकेले ही दोनों पार्टियों को धूल चटा दी थी। ऐसे में प्रश्न यह है कि इस बार बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के बीच क्या कुछ ख़ास है, जिसके दम पर वह लोक सभा चुनाव जीतने की उम्मीद पाल रहे हैं?

सबसे पहले चर्चा मायावती की जिनके लिए लोकतंत्र शायद एक भ्रम से ज्यादा कुछ भी नहीं है। मायावती मानती हैं कि उनके समर्थक जिसे भी चाहें जिता सकते हैं, यानी वोट मायावती का और सीट किसी और की हो, तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता है। मायावती मानती हैं, वो जिसको चाहें अपना वोट ट्रान्सफर कर सकती हैं। बहुजन समाज पार्टी की दशा इन दिनों कोई अच्छी नहीं है, लेकिन सपा से गठबंधन करके मायावती कहीं न कहीं प्रधानमंत्री बनने की उम्मीद लगाए बैठी हैं। हालांकि माना जा रहा कि इस गठबंधन से मायावती के समर्थकों के लिए भ्रम की स्थिति पैदा होगी।

बात अब समाजवादी पार्टी की, जिसमें एक समय से अक्सर विभाजन और अंतर्कलह की ही ख़बरें आती रहती हैं। ऐसे में, समाजवादी पार्टी का कैडर अखिलेश के साथ है, मुलायम के साथ है या शिवपाल यादव के साथ है, इस संबंध में भी भ्रम बना हुआ है। इस बारे में सबकुछ जनता को ही तय करना होगा। जाहिर है, सपा-बसपा दोनों के ही समर्थक किसी न किसी तरह इस समय भ्रम की स्थिति में हैं, अतः इस गठबंधन को लेकर उनका क्या रुख रहेगा, ये अभी नहीं कहा जा सकता।   

कुल मिलाकर उपर्युक्त बातों से इतना तो जाहिर है कि सपा-बसपा गठबंधन के बावजूद परिस्थितियां भाजपा के लिए बहुत कठिन नहीं लग रहीं। कांग्रेस और विरोधी दलों की उक्त कमजोरियों को समझना और उनका लाभ लेना भाजपा के लिए कोई मुश्किल नहीं होगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)