जब भारत और चीन के बीच डोकलाम को लेकर विवाद चरम पर था, तब कांग्रेस के अध्यक्ष चीनी नेताओं से गुपचुप बातचीत कर रहे थे, यह अब कोई ढंकी-छुपी बात नहीं रह गई है। भारतीय सैन्य जवानों की बर्बरता पूर्वक हत्या के बाद भारत ने पाकिस्तान के विदेश मंत्री के साथ अपनी बातचीत रद्द कर दी। दोनों देशों के बीच कई स्तर पर आरोपों का सिलसिला शुरु हो गया। लेकिन कांग्रेस और पाकिस्तान के सुर मिल रहे हैं।
भारत में लोक सभा चुनाव से पहले की सियासत पूरी तरह से पक चुकी है। यहाँ हर राजनीतिक दल के लिए मौका है कि वह अपनी नीतियों को लेकर जनता के बीच जाए। लेकिन सत्ता से बाहर हुई कांग्रेस कुछ ज्यादा ही बेचैन दिख रही। येन-केन-प्रकारेण सत्ता हथियाने के लिए वह हरसंभव हथकंडे अपना रही है।
इसकी शुरुआत तो दो साल पहले ही हो चुकी थी जब इसने अपनी ही सेना से सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगे। राष्ट्रीय हित के मुद्दे पर कांग्रेस का इस तरह का व्यवहार वाकई चिंताजनक है। कम से कम अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे विकसित देशों में ऐसा नहीं होता, विपक्ष राष्ट्रहित के मुद्दे पर कंधे से कन्धा मिलाकर सरकार के साथ खड़ा रहता है।
पिछले दिनों जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि कांग्रेस उन्हें हराने के लिए अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन कर रही है तो इसके मायने साफ़ थे कि बॉर्डर पार से कांग्रेस को लगातार सहानुभूति मिल रही थी। यह कोई अब शुरू हुआ हो, ऐसा कतई नहीं है। नरेन्द्र मोदी जब पहली बार 2014 में देश के प्रधानमंत्री बने, कांग्रेस के कुछ नेता मोदी को पकिस्तान विरोधी नेता के तौर पर लगातार प्रोजेक्ट करने में लगे हुए थे।
कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर, जिनकी कांग्रेस में दोबारा वापसी हुई, ने कहा था कि भारत और पाकिस्तान में सम्बन्ध बहाली के लिए ज़रूरी है कि मोदी को सत्ता से बाहर किया जाए। इस तरह के विचार एक नहीं कई नेताओं के हैं, जो लगातार बीजेपी की हार के लिए बाहर की शक्तियों से हाथ मिलाने को तत्पर हैं।
जब भारत और चीन के बीच डोकलाम को लेकर विवाद चरम पर था, तब कांग्रेस के अध्यक्ष चीनी नेताओं से गुपचुप बातचीत कर रहे थे, यह अब कोई ढंकी-छुपी बात नहीं रह गई है। भारतीय सैन्य जवानों की बर्बरता पूर्वक हत्या के बाद भारत ने पाकिस्तान के विदेश मंत्री के साथ अपनी बातचीत रद्द कर दी। दोनों देशों के बीच कई स्तर पर आरोपों का सिलसिला शुरु हो गया। लेकिन कांग्रेस और पाकिस्तान के सुर मिल रहे हैं।
हाल ही में पाकिस्तान की पिछली सरकार में मंत्री रहे रहमान मलिक ने आग में घी डालने का काम किया। उन्होंने खुलेआम कांग्रेस को जिताने की गुहार लगा दी। उन्होंने ट्विट किया कि भारत के अगले प्रधानमंत्री राहुल गांधी होंगे और मोदी का हारना पाकिस्तान के लिए जरूरी है। सवाल उठता है कि क्या राहुल गाँधी चुनाव लड़ने के लिए अंतर्राष्ट्रीय साझीदार खोज रहे हैं?
पाकिस्तान का कहना है कि दोनों देशों के बीच युद्ध कोई समाधान नहीं है और दोनों देशों को चाहिए कि आपस में मिल बैठकर बात करें और आपसी मुद्दों को सुलझाएं लेकिन यह सिर्फ बातों से नहीं होगा। पाकिस्तान सिर्फ बातें ही करता नजर आता है, उसमें बदलाव जरा भी नहीं है। नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आने के बाद आतंकवादियों से निबटने के लिए सरकार ने बहुत ही सख्त रवैया अपनाया, जिसके बाद घाटी में आतंकी बैकफुट पर आये, लेकिन पाकिस्तान ने कश्मीर पर अपना रुख बरकरार रखा।
पिछले दिनों पाकिस्तान के बुलावे पर पंजाब से एक कांग्रेसी मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू इमरान खान के शपथ ग्रहण में पहुँच गए। कांग्रेसी आलाकमान इसपर भी खामोश ही रहा। इन बातों से क्या कांग्रेस का पाक-प्रेम नहीं झलकता? आने वाले दिनों में पाकिस्तान चाहे-अनचाहे सुर्ख़ियों में बना रहा है। कभी कांग्रेस के बहाने तो कभी कश्मीर के बहाने। इस बात के वैसे कोई सीधे सबूत नहीं हैं कि पाकिस्तान सीधा-सीधा हिंदुस्तान की चुनावी प्रक्रिया में दखल दे रहा है, लेकिन जिस तरह से अक्सर कांग्रेस और पाकिस्तान के सुर मिलते दिखाई देते हैं, उससे सवाल उठना तो लाजिमी ही है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)