यह देश का दुर्भाग्य ही है कि यहाँ महामारी की परिस्थिति में भी विपक्षी दल सतही राजनीति करने से बाज नहीं आ रहे। केंद्र सरकार और मोदी को टीकाकरण का श्रेय न मिल जाए, इसके लिए तरह-तरह के प्रपंच कर रहे हैं। वहीं जो वैक्सीन केंद्र से उन्हें मिली है, उसका ठीक ढंग से इस्तेमाल भी नहीं कर पा रहे। एक तरफ राजस्थान में बड़ी संख्या में वैक्सीन का कचरे में पाया जाना सियासी भूचाल ला चुका है, वहीं पंजाब में निजी अस्पतालों को वैक्सीन बेचने के आरोप में राज्य सरकार निशाने पर है।
इन दिनों देश में अजीब कशमकश चल रही है। कोरोना महामारी से निपटने के लिए केंद्र सरकार जोरशोर से टीकाकरण अभियान चला रही है और उसमें सफलता भी मिल रही है। प्रधानमंत्री ने आज (7 जून) को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में यह घोषणा की है कि अब वैक्सीनेशन का पूरा कार्य केंद्र सरकार देखेगी और राज्यों पर जो 25 प्रतिशत वैक्सीनेशन का दायित्व डाला गया था, उसे खत्म किया जा रहा है। अब आने वाले समय में केंद्र द्वारा सब राज्यों को मुफ्त वैक्सीन उपलब्ध करवाई जाएगी।
दरअसल राज्य सरकारों के आग्रह पर ही 25 प्रतिशत दायित्व उन्हें दिया गया था, मगर जिस तरह से इसमें कांग्रेस आदि विपक्षी दलों की राज्य सरकारों ने राजनीति के अवसर तलाशने शुरू कर दिए और वैक्सीन की कमी का रोना रोने लगे, उसे देखते हुए ही अब केंद्र ने पुनः टीकाकरण का पूरा दायित्व खुद लेने का निर्णय लिया है।
यह देश का दुर्भाग्य ही है कि यहाँ महामारी की परिस्थिति में भी विपक्षी दल सतही राजनीति करने से बाज नहीं आ रहे। केंद्र सरकार और मोदी को टीकाकरण का श्रेय न मिल जाए, इसके लिए तरह-तरह के प्रपंच कर रहे हैं। वहीं जो वैक्सीन केंद्र से उन्हें मिली है, उसका ठीक ढंग से इस्तेमाल भी नहीं कर पा रहे। एक तरफ राजस्थान में बड़ी संख्या में वैक्सीन का कचरे में पाया जाना सियासी भूचाल ला चुका है, वहीं पंजाब में निजी अस्पतालों को वैक्सीन बेचने के आरोप में राज्य सरकार निशाने पर है। छत्तीसगढ़ में भी वैक्सीन की हर तीन में से एक शीशी की बर्बादी की बात स्वास्थ्य मंत्रालय कह चुका है।
गौरतलब है कि इन तीनों राज्यों में कांग्रेस की सरकार है। यह बात स्पष्ट है कि देशव्यापी मिशन की देखी या अनदेखी के लिए राज्य सरकार सीधे तौर पर जवाबदार होती है, ऐसे में उक्त राज्यों में वैक्सीन को लेकर सामने आई अनियमितताएं एक नहीं, कई इशारे करती है। अव्वल तो राजस्थान में 35 केंद्रों पर 500 से अधिक शीशियां कूड़े में पाईं गईं। इनमें करीब ढाई हजार डोज होती हैं। क्या इससे यह सवाल नहीं उठता कि एक तरफ विपक्ष केंद्र सरकार को वैक्सीन की कमी का हवाला देते हुए कोसता रहता है, दूसरी तरफ क्या इस तरह से वैक्सीन की कमी को “पैदा” किया जा रहा है।
यह भी कम आश्चर्य नहीं है कि राज्यपाल के निर्देश के बावजूद प्रदेश सरकार बजाय वैक्सीन प्रबंधन के, कुत्सित राजनीति से बाज नहीं आ रही है। मानो इस आपदा में अवसर खोजना ही कांग्रेस की नियति बन गई हो। वैक्सीन की बरबादी पर मचे बवाल के बाद अब सरकार ने भले ही सफाई देना शुरू कर दी हो लेकिन यह मामला आसानी से थमता नज़र नहीं आ रहा। प्रदेश के चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा ने तो पूरे मामले को ही गलत करार देते हुए किनारा कर लिया है।
उधर पंजाब में वैक्सीन का बड़ा घोटाला सामने आया है। वह डोज जिसे 18 से 44 साल के आयु वर्ग के लिए 400 रुपए में खरीदा गया उसे 1060 रुपए प्रति डोज की दर से प्राइवेट अस्पतालों को बेचा गया और करोड़ों का मुनाफा बनाया गया। ऐसा क्यों हुआ कि इस मामले में भाजपा के सक्रिय होने और विरोध करने के बाद पंजाब सरकार ने इस बेची गई वैक्सीन को वापस लेने के आदेश जारी कर दिए। यह आदेश जारी करना तो यही साबित करता है कि सरकार ने अपनी गलती पर मुहर लगा दी।
राजस्थान और पंजाब में इस तरह की बड़ी गड़बडि़यां सामने आने पर क्या राहुल गांधी अपने गिरेबान में झांककर देखेंगे या अभी भी बेसिर पैर की बकवास करते जाएंगे। राहुल गांधी का यह रवैया अत्यंत शर्मनाक है कि कांग्रेस शासित राज्यों से उजागर होते वैक्सीन घोटालों के बावजूद वे अभी भी केंद्र सरकार को कोस रहे हैं, वह भी अपूर्ण एवं गलत तथ्यों के साथ।
अभी इस बात को ज्यादा दिन नहीं बीते जब राहुल गांधी ने केंद्र सरकार पर यह बेतुका आरोप लगाया था कि बच्चों को लगाई जाने वाली वैक्सीन विदेशों को क्यों भेज दी? राहुल गांधी को कुछ भी बोलने से पहले अध्ययन करना चाहिये, तथ्यों की पड़ताल करना चाहिये। उन्हें इतनी सी बात का इल्म नहीं है कि बच्चों के लिए वैक्सीन का उत्पादन अभी देश में आरंभ नहीं हुआ है। उक्त बयान देकर राहुल ने स्वयं की नहीं, बल्कि कांग्रेस की जगहंसाई करवाई। उनके इसी अधकचरे ज्ञान के चलते कांग्रेस को कोई गंभीरता से नहीं लेता है।
सवाल यह उठता है कि आज राजनीति में विपक्ष की ऐसी गलत परिपाटी क्यों स्थापित हो गई है कि पहले यह देखा जाता है कि फलां प्रदेश में किसकी सरकार है, उसके बाद बयान दिया जाता है। कोरोना की भीषण विपदा से जूझ रहे देश में यह बहुत चिंता की बात है कि महामारी से निपटने की बजाय श्रेय एवं आरोप-प्रत्यारोप की होड़ मची हुई है।
कोरोना की दूसरी लहर मंद अवश्य हुई है लेकिन खतरा अभी टला नहीं है। जिन राज्यों में सर्वाधिक संक्रमण की दर बनी हुई है उनमें महाराष्ट्र सर्वप्रथम है। इसके अलावा केरल, पंजाब, राजस्थान में भी संक्रमण घटा नहीं है। राहुल गांधी को ट्वीटर पर समय बरबाद करने की बजाय केरल के हालात को देखना चाहिये। कम से कम वे अपने संसदीय क्षेत्र वायनाड की ही सुध ले लें तो काफी है, लेकिन अफसोस, उनसे यह भी ना हो सका। उन्हें कांग्रेस शासित राज्यों में हालात सुधारने के लिए भी प्रयास करना चाहिए।
ऐसा लगता है जैसे पूरे विपक्ष को वैक्सीन की सफलता से ईर्ष्या हो रही है। अशोक गहलोत अन्य राज्यों को एकत्रित कर सरकार से मुफ्त वैक्सीन मांग रहे हैं और दूसरी तरफ उनके ही राज्य में वैक्सीन कबाड़ में मिल रही है। जहां तक केंद्र सरकार के रूख की बात है, वो बेकार की राजनीति में पड़े बिना कोरोना की रोकथाम और टीकाकरण में लगी हुई है। स्वेदशी कोविशील्ड और कोवैक्सीन की सफलता के बाद अब सरकार ने रूस की वैक्सीन स्पूतनिक भी जनता के लिए उपलब्ध करा दी है। जल्द ही और भी कई वैक्सीन उपलब्ध होने वाली हैं।
केंद्र की भाजपा सरकार प्रतिदिन बड़े पैमाने पर टीकाकरण कर रही है और अभी तक लाखों लोगों को संक्रमण से बचा लिया गया है। अब जो 25 प्रतिशत टीकाकरण का कार्य राज्यों के पास था, वो भी केंद्र के हाथ में जाने से टीकाकरण को और अधिक गति मिलने की उम्मीद की जा सकती है। साथ ही, इसके बाद विपक्षी दलों को टीके पर व्यर्थ राजनीति करने का अवसर भी नहीं मिलेगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)