ज्योतिरादित्य सिंधिया की पकड़ मध्य प्रदेश की सियासत में है, लेकिन एक गोल्डन रूल है कांग्रेस के अन्दर कि आप कितना भी चमक लें लेकिन आपकी चमक इतनी नहीं होनी चाहिए कि आप गांधी परिवार के वारिस की चमक को फीका कर दें।
धन्य है गांधी परिवार और धन्य है गांधी परिवार की महिमा! एक तरफ जहाँ कांग्रेस के क्षेत्रीय नेता एक-एक कर कांग्रेस पार्टी का दामन छोड़ रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के अन्दर यह आवाज़ फिर से जोर पकड़ रही है कि राहुल गांधी को क्यों न कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष बना दिया जाय।
ये शोर मचाने वाले वही हैं जो दशकों से गांधी परिवार को ही असली कांग्रेस मानकर उनकी परिक्रमा करते रहे हैं। अक्सर लुटियन दिल्ली में पलने-बढ़ने वाले सुविधाभोगी लोग तब-तब शोर मचाते हैं जब उन्हें लगता है कि कांग्रेस सत्ता से बाहर हो रही है।
कांग्रेस पार्टी सत्ता से पिछले 6 वर्ष से बाहर है, लेकिन चाटुकारों से घिरे गांधी परिवार को लगातार यह एहसास करवाया जाता रहता है कि केंद्र की मोदी सरकार अलोकप्रिय हो चुकी है और बस जाने ही वाली है।
कई बार हैरानी होती है कि राष्ट्रीय महत्त्व और राष्ट्र की सुरक्षा के मुद्दों पर भी परिवार की परिक्रमा के कारण कांग्रेस का अक्स ऐसा बना दिया जाता है जैसे कि वह कांग्रेस पार्टी ऑफ़ इंडिया न होकर कांग्रेस पार्टी ऑफ़ चाइना या कांग्रेस पार्टी ऑफ़ पाकिस्तान बन गई हो।
आपने लेह लद्दाख के मुद्दे पर देखा होगा कि कांग्रेस पार्टी के बयान ऐसे थे जैसे कांग्रेस भारत के साथ नहीं चीन के साथ खड़ी हो।
आपको याद होगा कि 2014 के चुनाव से पहले भी कांग्रेस ने बहुत सारे बने बनाये, पके पकाए मुद्दे नरेंद्र मोदी के हाथ में दे दिए थे, जिसको उन्होंने चुनावी सभाओं में भुनाया भी।
कांग्रेस के पास नेतृत्व के लिए नेताओं की सख्त कमी है और अगर क्षेत्रीय स्तर पर नेता उभर कर आना चाहते भी हैं, तो उन्हें आने का मौका नहीं दिया जाता।
मसलन ज्योतिरादित्य सिंधिया की बात कर लेते हैं, जिन्हें कांग्रेस में दरकिनार किये जाने के बाद बीजेपी से हाथ मिलाना पड़ा। यह तब होता है जब केन्द्रीय नेतृत्व आपकी बात नहीं सुनता या केन्द्रीय नेतृत्व और स्थानीय क्षत्रपों के बीच संवादहीनता की स्थिति पनप रही हो।
ज्योतिरादित्य सिंधिया की पकड़ मध्य प्रदेश की सियासत में है, लेकिन एक गोल्डन रूल है कांग्रेस के अन्दर कि आप कितना भी चमक लें लेकिन आपकी चमक इतनी नहीं होनी चाहिए कि आप गांधी परिवार के वारिस की चमक को फीका कर दें।
कांग्रेस पार्टी ने राजस्थान जहाँ उनकी बहुमत की सरकार है, में एक युवा नेता को एक ऐसी दीवार के सामने खड़ा कर दिया जिसके आर-पार कुछ भी नज़र नहीं आता। जहाँ उसकी बात अपनी ही सरकार में सुनी नहीं जा रही। अब ऐसे में फूट तो होनी ही है।
सचिन पायलट राजस्थान में वैसा ही प्रभाव रखते हैं जैसा कि मध्य प्रदेश में सिंधिया, लेकिन उनको भी पार्टी की तरफ से लगातार उपेक्षा झेलनी पड़ी है। सो यदि अब उन्होंने बगावती तेवर अपना लिए हैं, तो ये कांग्रेस की आंतरिक समस्या है, इसके लिए भाजपा पर ऊँगली उठाने का कोई मतलब नहीं है।
कांग्रेस की इस मौजूदा स्थिति के लिए तो पूरी तरह से कांग्रेस ही ज़िम्मेदार है, गलती ये कि पार्टी के बहुत से लोगों को अब भी गांधी परिवार के परे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा। एक पार्टी के तौर पर कांग्रेस के लिए ये पतन की ओर बढ़ते जाने का ही संकेत है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)