जिस यंग इंडिया लिमिटेड ने नेशनल हेराल्ड की कंपनी एसोसिएट जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) को खरीदा उसमें सोनिया व राहुल गांधी की 38-38 फीसदी की हिस्सेदारी है। क्या इससे यह प्रमाणित नहीं होता है कि कांग्रेस ने सोनिया व राहुल गांधी को परोक्ष रूप से लाभ पहुंचाया है? क्या कांग्रेस इस तरह की आर्थिक उदारता एक सामान्य कांग्रेसी कार्यकर्ता के प्रति दिखा सकती है? अगर नहीं तो फिर ऐसे में याचिकाकर्ता सुब्रमण्यम स्वामी के आरोप में दम लगता है कि यह सब कुछ दिल्ली में बहादुर शाह जफर मार्ग पर स्थित हेराल्ड हाउस की 2000 करोड़ रुपये की संपत्ति को कब्जा करने के लिए किया गया।
नेशनल हेराल्ड मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा यंग इंडियन कंपनी की जांच आयकर विभाग से कराए जाने का आदेश दिए जाने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी की मुश्किलें बढ़ गयी है। उच्च न्यायालय के आदेश के मुताबिक अब कंपनी को अपने दस्तावेज आयकर विभाग को सौंपने ही होंगे। बता दें कि इस मामले में पटियाला हाउस कोर्ट ने जांच के आदेश दिए थे, जिसके बाद सोनिया और राहुल गांधी की ओर से दिल्ली उच्च न्यायालय में आयकर विभाग की जांच पर रोक लगाने की मांग की गयी थी।
उल्लेखनीय है कि यंग इंडियन कंपनी में सोनिया और राहुल गांधी की 76 फीसद हिस्सेदारी है और आयकर विभाग ने अपनी जांच में पाया है कि यंग इंडियन ने 2011-12 में टैक्स चोरी की है। यंग इंडियन पर आरोप है कि उसने कोलकाता में हवाला कारोबार करने वाली कंपनी डोटेक्स मर्केंडाइज के जरिए एक करोड़ रुपये लिए। आयकर विभाग की मानें तो यह कंपनियां हवाला कारोबार में लिप्त हैं। आयकर विभाग के मुताबिक डोटेक्स मर्केंडाइज ने इस तथ्य के बावजूद यंग इंडियन को बिना किसी गारंटी के लोन दिया जबकि उस समय उसकी पूंजी मात्र पांच लाख रुपये थी। देश भी जानना चाहता है कि क्या डोटेक्स मर्केंडाइज किसी अन्य पांच लाख रुपये की पूंजी वाले को करोड़ों रुपये लोन दे सकती है?
यंग इंडियन ने भी अपने जवाब में इसे लोन बताया है और कहा है कि उसने इसे वापस भी कर दिया। अगर थोड़ी देर के लिए मान भी लिया जाए कि यह सही है तो भी अगर आयकर विभाग इसकी जांच करता है, तो इसमें अनुचित क्या है? अगर सबकुछ एकदम पाक साफ़ है तो कांग्रेस इतनी बेचैन क्यों है? उसे किस बात का डर है? क्या उसका विरोध रेखांकित नहीं करता है कि दाल में कुछ काला है? यहां यह जानना जरुरी है कि यंग इंडियन नेशनल हेराल्ड का अधिग्रहण करने वाली कांग्रेस के शीर्ष नेताओं की कंपनी है।
दरअसल कांग्रेस और सोनिया-राहुल को ये भय सता रहा होगा कि अगर आयकर विभाग द्वारा उनके खातों की जांच में कुछ गलत चीज बाहर आ गयी तो पहले से ही डंवाडोल हो रही पार्टी को संभालना बूते से बाहर हो जाएगा। ये दिखाता है कि कुछ न कुछ गलत तो हुआ है, वर्ना कांग्रेस इस जांच का इतना विरोध क्योंकर करती? वैसे आयकर विभाग की शुरूआती जांच के बाद अब सोनिया और राहुल गांधी के अलावा प्रियंका गांधी का भी नाम इस मामले में सामने आ रहा है। ऐसे में, नेशनल हेराल्ड मामले की ये जांच नेहरू-गांधी परिवार से जुड़े किसी बड़े तिकड़म का खुलासा करे तो आश्चर्य नहीं होगा।
यह प्रकरण 2013 में तब उठा था, जब केंद्र में कांग्रेसनीत यूपीए की सरकार थी और डॉ मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री थे। सुब्रमण्यम स्वामी ने इस मामले को उठाया और अदालत तक ले गए। अब कांग्रेस द्वारा तर्क दिया जा रहा है कि चूंकि वह सरकार के विरुद्ध आवाज उठा रही है, इसलिए सरकार उसका मुंह बंद कराने के लिए इस मामले को तूल दे रही है। लेकिन गौर करें तो यह आरोप महज कुतर्क भर है और इस पर सिर्फ हंसा ही जा सकता है। इसलिए कि देश में हजारों लोग हैं जो हर दिन सरकार की आलोचना करते हैं। लेकिन क्या सरकार इन आलोचकों का मुंह बंद करने के लिए किसी किस्म की तानाशाही दिखा रही है? अगर नहीं तो फिर कांग्रेस किस मुंह से कह रही है कि केंद्र सरकार बदले की भावना के तहत काम कर रही है?
कांग्रेस के रवैये से साफ जाहिर है कि वह सोनिया व राहुल गांधी को अदालत में पेश होने से छूट चाहती है और उसमें न्यायालय का सामना करने का हिम्मत नहीं है। देश समझ नहीं पा रहा है कि सोनिया और राहुल गांधी किस तरह संविधान और न्याय व्यवस्था से उपर हैं और किस तरह उन्हें न्यायालय में पेश होने से छूट मिलनी चाहिए? अगर उच्च न्यायालय ने यंग इंडियन कंपनी की जांच आयकर विभाग द्वारा कराए जाने को हरी झंडी दिखायी है तो निःसंदेह उसके ठोस कारण रहे होंगे। बावजूद इसके कांग्रेस को लग रहा है कि सोनिया व राहुल गांधी पाक-साफ हैं तो बेहतर होगा कि वह सरकार को बदनाम करने और उस पर आरोप जड़ने के बजाए न्यायालय को दूध का दूध और पानी का पानी करने दे।
जिस तरह नेशनल हेराल्ड की हजारों करोड़ की संपत्ति को हथियाने के लिए नई कंपनी का गठन किया गया, उससे कांग्रेस की नीयत पर सवाल उठना लाजिमी है। गौर करें तो इस तिकड़म में कांग्रेस का रवैया ठीक वैसे ही है जैसे कोई सूदखोर कर्जदार का ऋण माफ कर उसकी पूरी संपत्ति को हड़प ले। कांग्रेस के इस खेल को समझने के लिए नेशनल हेराल्ड मामले को समझना जरुरी है।
गौरतलब है कि पहले नेशनल हेराल्ड की कंपनी एसोसिएट जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) को कांग्रेस ने 26 फरवरी, 2011 को 90 करोड़ रुपये का लोन दिया। इसके बाद पांच लाख रुपये से यंग इंडिया कंपनी बनायी। इसके उपरांत 10-10 रुपये के नौ करोड़ शेयर यंग इंडिया को दिए गए। इसके बदले यंग इंडिया को कांग्रेस का लोन चुकाना था। लेकिन मजे की बात यह कि नौ करोड़ शेयर के साथ यंग इंडिया को एजेएल के 99 फीसदी शेयर तो हासिल हो गए लेकिन उसे कर्ज भी नहीं चुकाना पड़ा। यानी कांग्रेस ने उदारता दिखाते हुए 90 करोड़ रुपये का लोन माफ कर दिया। कांग्रेस का तर्क है कि इस प्रक्रिया में ऐसा कुछ भी गलत नहीं हुआ जिससे कानून का उल्लंघन हुआ हो।
लेकिन यहां सवाल यह है कि बतौर एक राजनीतिक दल होते हुए कांग्रेस किसी कंपनी को लोन कैसे दे सकती है? कांग्रेस का यह तर्क कि पार्टी अपनी पूंजी को जैसे चाहे तैसे खर्च कर सकती है, पूरी तरह से अमान्य और अतार्किक है। मजे की बात यह कि जिस यंग इंडिया लिमिटेड ने नेशनल हेराल्ड की कंपनी एसोसिएट जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) को खरीदा उसमें सोनिया व राहुल गांधी की 38-38 फीसदी की हिस्सेदारी है। क्या इससे यह प्रमाणित नहीं होता है कि कांग्रेस ने सोनिया व राहुल गांधी को परोक्ष रूप से लाभ पहुंचाया है? क्या कांग्रेस इस तरह की आर्थिक उदारता एक सामान्य कांग्रेसी कार्यकर्ता के प्रति दिखा सकती है? अगर नहीं तो फिर ऐसे में याचिकाकर्ता सुब्रमण्यम स्वामी के आरोप में दम लगता है कि यह सब कुछ दिल्ली में बहादुर शाह जफर मार्ग पर स्थित हेराल्ड हाउस की 2000 करोड़ रुपये की संपत्ति को कब्जा करने के लिए किया गया।
फिर इसकी जांच क्यों नहीं होनी चाहिए? कांग्रेस की यह दलील उचित नहीं कि हेराल्ड हाउस को पासपोर्ट ऑफिस के लिए किराए पर दिया गया है। सवाल यह कि जब केंद्र ने अखबार चलाने के लिए जमीन दी थी, तो उसे व्यवसायिक इस्तेमाल के लिए क्यों दिया गया? सवाल यहीं तक सीमित नहीं है। याचिकाकर्ता का आरोप यह भी है कि चूंकि इस खेल में हवाला का पैसा लगा है, लिहाजा सोनिया व राहुल गांधी के विरुद्ध टैक्स चोरी और धोखाधड़ी का मामला बनता है।
उल्लेखनीय तथ्य यह भी कि फेमा वॉयलेशन की शिकायत सही पाए जाने पर ही सोनिया व राहुल के खिलाफ रेग्यूलर केस दर्ज हुआ है। चूंकि इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने कांग्रेस को राजनीतिक दल होने के बावजूद व्यवसायिक लेन-देने में शामिल होने को लेकर नोटिस दिया है, इसलिए इस मामले की गंभीरता और बढ़ जाती है। कांग्रेस का यह तर्क बेमानी है कि उसने एजेएल में 90 करोड़ का ट्रांजेक्शन व्यवसायिक कार्य के लिए नहीं बल्कि विचारधारा के लिए किया। लेकिन कांग्रेस को यह भी बताना होगा कि फिर नेशनल हेराल्ड को जीवंतता क्यों नहीं दी?
गौरतलब है कि पंडित जवाहर लाल नेहरू ने आजादी के दौरान 8 सितंबर, 1938 को लखनऊ में नेशनल हेराल्ड अखबार की स्थापना की थी। आजादी के उपरांत यह अखबार कांग्रेस का मुखपत्र बन गया और घाटे के चलते 2008 में छपना बंद हो गया। क्या बेहतर नहीं होता कि कांग्रेस इस अखबार को पुनः गति देती? लेकिन विडंबना है कि वह इस सवाल को टाल जा रही है। दरअसल उसकी नीयत में खोट है। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि वह अपनी गलती सुधारने के बजाए केंद्र सरकार पर तोहमत मढ़ अपने अधिनायकवादी आचरण का प्रदर्शन कर रही है। कांग्रेस को समझना होगा कि इससे उसकी छवि सुधरने के बजाए उल्टे और खराब हो रही है।
(लेखक इतिहास के प्राध्यापक हैं। स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। लेख में प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)