कश्मीर में अनुच्छेद-370 हटाने के बाद पाकिस्तान भारत को लोकतंत्र और आज़ादी के ऊपर उपदेश देने की कोशिश करने लगा था, लेकिन पाकिस्तान का मानवाधिकार की स्थिति कितनी ज्यादा ख़राब है कि उसकी चर्चा करना एक लेख में संभव नहीं है। हाँ, उसकी बानगी हालिया घटनाओं से जरूर मिलती है। पाकिस्तान की आज़ादी को 72 वर्ष हो गए हैं और वहां रह रहे हिन्दुओं, सिखों और ईसाईयों की स्थिति वाकई अफसोसनाक है। 1947 में पाकिस्तान में गैर मुस्लिमों की तादाद 30 फीसद के आस-पास थी, लेकिन इन वर्षों में सिखों और हिन्दुओं की तादाद कुल आबादी की सिर्फ़ 2 फीसद रह गई है।
एक तरफ पाकिस्तान करतारपुर कॉरिडोर बनवाकर पूरी दुनिया की वाहवाही लेना चाहता है, तो वहीं दूसरी तरफ उसका एक ऐसा सच सामने आया है जिससे पाकिस्तान का असली चेहरा दुनिया के सामने बेनकाब हो गया है। इमरान खान ने प्रधानमंत्री बनने के बाद करतारपुर कॉरिडोर को आनन-फानन में हरी झंडी दी। हालाँकि भारत सरकार की यह लम्बे अर्से से मांग रही थी, लेकिन इस खेल में पंजाब के दलबदलू नेता नवजोत सिंह सिद्धू का पाकिस्तान द्वारा खुलकर इस्तेमाल हुआ। खैर, करतारपुर साहिब कॉरिडोर को लेकर काम आगे भी बढ़ा लेकिन इससे अगर पाकिस्तान अपने आतंकपरस्त और भारत-विरोधी रुख को बदलता तो ज़रूर दोनों मुल्कों के बीच तल्खी कम होती। लेकिन पाकिस्तान से ऐसी उम्मीद करना बेमानी है।
पिछले दिनों पाकिस्तान के ननकाना साहिब से, जो सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक का जन्मस्थान है, एक दुर्भाग्यपूर्ण खबर आई। ननकाना साहिब के एक गुरुद्वारा में रागी की बेटी का ज़बरदस्ती अपहरण कर उसका एक मुस्लिम से निकाह करवा दिया गया। इस मामले को बाद में दबाने की पूरी कोशिश की गई लेकिन तब तक सच पूरी दुनिया में आग की तरह फ़ैल चुका था। पुलिस व पाक सरकार की तरफ से खबर को तोड़ने-मरोड़ने की भरपूर कोशिश ने पाकिस्तान के सच को सामने लाकर रख दिया।
जिन लोगों के नाम अपहरण के पीछे बतलाए जा रहे हैं, उनका संबंध इमरान खान की पार्टी से होने की बात सामने आ रही है। इसके अलावा हिन्दू लड़कियों के भी अपहरण और धर्म-परिवर्तन की घटनाएं पाकिस्तान में सामान्य हैं। हाल ही में ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं। अभी बीते शनिवार को ही पाकिस्तान के सिंध प्रांत के सुक्कुर में एक हिंदू लड़की का व्यवसाय प्रशासन संस्थान से अपहरण कर उसका जबरन धर्म-परिवर्तन करने की खबर आई।
ऐसी घटनाएं पाकिस्तान के असली चाल-चरित्र को तो बेनकाब करती ही हैं, साथ ही भारत में रहने वाले उन कथित सेक्युलर और बुद्धिजीवी लोगों पर भी सवाल उठाती हैं जो हर बात पर आँखें मूंदकर पाकिस्तान की पैरवी करते रहते हैं। भारत के खिलाफ ज़हर उगलने में ऐसे लोग ही सबसे आगे रहते हैं।
कश्मीर में अनुच्छेद-370 हटाने के बाद पाकिस्तान भारत को लोकतंत्र और आज़ादी के ऊपर उपदेश देने की कोशिश करने लगा था, लेकिन पाकिस्तान का मानवाधिकार की स्थिति कितनी ज्यादा ख़राब है कि उसकी चर्चा करना एक लेख में संभव नहीं है। हाँ, उसकी बानगी हालिया घटनाओं से जरूर मिलती है। पाकिस्तान की आज़ादी को 72 वर्ष हो गए हैं और वहां रह रहे हिन्दुओं, सिखों और ईसाईयों की स्थिति वाकई अफसोसनाक है। 1947 में पाकिस्तान में गैर मुस्लिमों की तादाद 30 फीसद के आस-पास थी, लेकिन इन वर्षों में सिखों और हिन्दुओं की तादाद कुल आबादी की सिर्फ़ 2 फीसद रह गई है।
नवम्बर में गुरुनानक देव जी की 550वीं जयंती मनाई जाएगी, जिसमें भारत से हजारों सिख श्रद्धालु पाकिस्तान की यात्रा करेंगे। यह मौका पूरी मानवता के लिए वाकई महत्वपूर्ण होगा लेकिन इस अवसर का इस्तेमाल पाकिस्तान अपने प्रोपगंडा को फ़ैलाने के लिए नहीं करेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है। भारत में अब तक इमरान खान के जो मित्र और समर्थक उनका जयकारा लगा रहे थे, आज सिख और हिन्दू लड़कियों के ज़बरिया धर्मं परिवर्तन पर कोने में दुबके हुए हैं। ऐसे लोग अपने इस रुख और कुछ नहीं, केवल अपनी हकीकत को ही सामने ला रहे हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)