दरअसल आम आदमी पार्टी (आप) ने पंजाब विधानसभा चुनावों के दौरान भी खालिस्तान मुद्दे को हवा देने की कोशिश की थी, लेकिन जब उसका कोई लाभ नहीं मिला तो पार्टी ने यूटर्न लेते हुए अपना स्टैंड बदल लिया। आज ‘आप’ पंजाब की राजनीति में लगातार हाशिये पर जा रही है, तो संभव है कि उसके नेता ने लाइमलाइट में रहने के लिए ऐसा बयान दे दिया हो। बात जो भी हो, लेकिन इसका फायदा जितना आम आदमी पार्टी को विदेशों में होगा, उससे कहीं ज्यादा जनाधार पंजाब में खिसक जाएगा।
कुछ लोग हैं जो आग से खेलने की कोशिश कर रहे, लेकिन उन्हें अंजाम का ज़रा भी इल्म नहीं है। ऐसे ही लोग खालिस्तान और रेफेरेंडम-2020 के नाम पर सियासी रोटियाँ सेंकने में लगे हैं। पंजाब में शांति ऐसे नहीं आई, हजारों बेगुनाह लोगों, सेना के जवानों और पंजाब पुलिस बलों की कुर्बानी के बाद पंजाब में अमन-चैन का राज कायम हुआ। लेकिन, सब जानते-बूझते हुए भी पिछले दिनों आम आदमी पार्टी के नेता और विधानसभा में विपक्ष के लीडर सुखपाल खैहरा ने रेफेरेंडम-2020 जैसी बेकार की बहस को तूल दे दिया।
खैहरा ने कहा कि सिख 1984 के कत्लेआम के बाद आहत हुए हैं और उन्हें अधिकार है कि वह जिस मुल्क में हैं, वहां से रेफेरेंडम-2020 जैसी मुहिम चला सकते हैं। हालांकि खैरा ने सफाई दी कि इसका मतलब यह नहीं है कि वह भारतीय संविधान का सम्मान नहीं करते। लेकिन तब तक उनके इस बयान से काफी नुकसान हो चुका था।
पंजाब में रहने वाले लोग जानते हैं कि हिंदुस्तान के बाहर एक ऐसी जमात बैठी हुई है जो खुशहाल पंजाब देख नहीं सकती। इसलिए रह-रहकर आग को सुलगाया जाता है। पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले भी ऐसे लोग खुलकर सामने आ गए थे और यहाँ की फिजा को ज़हरीला किया था। कनाडा, जर्मनी, ब्रिटेन और पाकिस्तान की धरती पर बैठकर ये लोग पंजाब को अलग सूबा बनाने की मुहिम को चला रहे हैं।
क्या है रेफरेंडम 2020 ?
दरअसल रेफेरेंडम 2020 का एजेंडा है पंजाब को भारत से अलग करने का। पिछले समय में पश्चिमी देशों में स्वतंत्र सिख राज्य या खालिस्तान को लेकर चरमपंथी तत्व सक्रिय हो रहे हैं। यूरोप और उत्तरी अमेरिका के देशों में सिख उग्रवादी संगठनों को चंदा इकट्ठा कर रेफरेंडम 2020 अभियान चलाया जा रहा है। भारत में प्रतिबंधित सिख फॉर जस्टिस जैसी संस्थाएं अपने मिशन के लिए युवा सिखों को भर्ती कर रही हैं, जिसका मकसद है एक स्वतंत्र पंजाब के लिए ऑनलाइन मिशन चलाकर जनमत संग्रह करवाना। इसीका आम आदमी पार्टी के नेता सुखपाल सिंह खैहरा ने समर्थन कर दिया है।
पंजाब के मुख्यमन्त्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने खैहरा पर सीधा सीधा निशाना साधते हुए कहा कि वह समाज को बांटने वाली ताकतों के साथ खड़े हैं। कैप्टन ने ट्वीट करते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविन्द केजरीवाल से पूछा कि वह इस मुद्दे पर क्या सोचते हैं ? साफ़ साफ़ ज़ाहिर करें।
अकाली दल ने भी खैहरा की आलोचना करते हुए कहा कि वह देश को तोड़ने वाले ताकतों के साथ खड़े हैं। अकाली नेता बिक्रम मजीठिया ने कहा कि वह सिख समुदाय को इंसाफ दिलाने का काम करते रहे हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि किसीको भारत के टुकड़े करने की किसी भी हालत में इजाज़त दी जाए। भाजपा ने भी इस बयान को लेकर आप को आड़े हाथों लिया है।
पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने खैहरा के खिलाफ मामला दर्ज करने की मांग की। पंजाब ने आतंकवाद का काला दौर भी देखा है, जिसका संताप पंजाब के लोग आज भी भुगत रहे हैं। ऐसे में अपने संकीर्ण राजनीतिक हितों के लिए इस तरह के मुद्दों को हवा देना कतई उचित नहीं कहा जा सकता।
दरअसल आम आदमी पार्टी (आप) ने पंजाब विधानसभा चुनावों के दौरान भी खालिस्तान मुद्दे को हवा देने की कोशिश की थी, लेकिन जब उसका कोई लाभ नहीं मिला तो पार्टी ने यूटर्न लेते हुए अपना स्टैंड बदल लिया। आज ‘आप’ पंजाब में लगातार जनाधार खो रही है, तो संभव है कि उसके नेता ने लाइमलाइट में रहने के लिए ऐसा बयान दे दिया हो। बात जो भी हो, लेकिन इसका फायदा जितना आम आदमी पार्टी को विदेशों में होगा, उससे कहीं ज्यादा जनाधार पंजाब में खिसक जाएगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)