एक नई तरह की राजनीति करने और व्यवस्था बदलने का नारा लगाकर बंपर बहुमत से चुनाव जीतने वाली आम आदमी पार्टी और उसके मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के हाथ से सत्ता फिसलती जा रही है। इसीलिए केजरीवाल उसी कांग्रेस से गठबंधन की कवायद में जुटे हैं जिसके भ्रष्टाचार की वे पैदाइश हैं। स्पष्ट है, अब आम आदमी पार्टी और उसके नेता अपनी वैचारिक प्रतिबद्धताओं को छोड़कर किसी भी तरह सत्ता बनाए रखने की जुगत में जुट गए हैं।
भारत और पाकिस्तान के बीच जारी तनाव को देखते हुए भले ही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने अनशन कार्यक्रम को स्थगित कर दिया हो, लेकिन उन्होंने अपनी सिकुड़ती राजनीतिक जमीन को संभालने के लिए कांग्रेस से गठबंधन की आस नहीं छोड़ी है।
केजरीवाल अच्छी तरह जानते हैं कि लोकपाल, भ्रष्टाचार मुक्त शासन, महिला सुरक्षा, पूरी दिल्ली में सीसीटीवी कैमरे, 20 कॉलेज और 500 स्कूल खोलने जैसे भारी-भरकम चुनावी वादों पर अमल मुश्किल है, इसीलिए वे कांग्रेस के साथ गठबंधन पर जोर दे रहे हैं। गौरतलब है कि आम आदमी पार्टी का अपना कोई जनाधार नहीं था। आम आदमी पार्टी कांग्रेसी भ्रष्टाचार की पैदाइश थी और कांग्रेस का वोट बैंक छिटकने से उसे अचानक सत्ता मिली थी।
चूंकि आम आदमी पार्टी की सरकार जनाकांक्षाओं पर खरी नहीं उतरी इसलिए कांग्रेस से छिटककर आम आदमी पार्टी की ओर गया वोट अब धीरे-धीरे वापस अपनी जगह ले रहा है। इसी को देखकर केजरीवाल की बेचैनी बढ़ती जा रही है। यही कारण है कि कांग्रेसी नेताओं को लगने लगा है कि आम आदर्मी पार्टी से चुनावी गठबंधन करना घाटे का सौदा साबित होगा। इसीलिए दिल्ली के कांग्रेसी नेता एक स्वर से कह रहे हैं कि कांग्रेस सभी सातों लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी।
कांग्रेस के कड़े रुख को देखते हुए केजरीवाल शरद पवार से लेकर चंद्रबाबू नायडू तक से मिलकर दबाव बना रहे हैं। इस दबाव के बेअसर रहने पर वे ब्लैकमेलिंग पर उतर आए हैं। अपने चुनावी सभाओं में वे आरोप लगा रहे हैं कि 2019 में मोदी जीत गए तो कभी लोक सभा चुनाव नहीं होंगे और 2050 तक मोदी प्रधानमंत्री बने रहेंगे। ऐसे बेतुके बयान उनकी हताशा को ही दर्शा रहे हैं। दरअसल केजरीवाल इस कड़वी हकीकत को जान गए हैं कि यदि कांग्रेस का वोट बैंक वापस चला गया तो आम आदमी पार्टी जीरो पर आउट हो जाएगी। देखा जाए तो केजरीवाल का डर स्वाभाविक है।
नौकरशाही छोड़कर राजनीति में आने वाले केजरीवाल ने अन्ना आंदोलन के दौरान कांग्रेसी भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल फूंका था और वहीं से उन्हें उर्वर जमीन मिली। दुर्भाग्यवश सत्ता हासिल करने के बाद केजरीवाल ने कांग्रेसी भ्रष्टाचार के प्रति चुप्पी साध ली और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भ्रष्टाचार के बेबुनियाद आरोप लगाने लगे। इसका नतीजा यह हुआ कि 2014 के लोक सभा चुनाव में पार्टी के 400 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई, पंजाब, गोवा, राजस्थान, मध्य प्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों में पार्टी को करारी हार मिली। इससे केजरीवाल भारी दबाव में आ गए हैं।
भले ही केजरीवाल दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की मांग कर रहे हैं लेकिन सच्चाई यह है कि केजरीवाल अपनी पार्टी की गिरती साख से चिंतित हैं। यही कारण है कि वे फिर से धरने की राजनीति पर उतर आए हैं। वे जानते हैं कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में अब साल भर से भी कम समय बचा है इसलिए वे अपनी नाकामियां का ठीकरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर फोड़कर राजनीतिक शहीद का दर्जा हासिल करने की कवायद में जुट गए हैं लेकिन जनता उनकी असलियत पहचान चुकी है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)