अब जनता नकारात्मक राजनीति करने वालों को लगातार खारिज कर रही है, जबकि अपने क्रियाकलापों से ममता का नाम भी अब नकारात्मक राजनीति करने वालों में दर्ज होने की ओर लगातार बढ़ रहा है। वे खुद तो लाल बत्ती का इस्तेमाल नहीं करतीं, मगर जिस तरह से उन्होंने केंद्र की इस पहल पर अपना विरोध जताया है, उससे उनके प्रति जनता में अच्छा सन्देश नहीं जाएगा। सवाल उठेगा कि उनकी सरकार को लाल बत्ती से इतना अधिक लगाव क्यों है ?
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का भाजपा-विरोध तो जगजाहिर है, लेकिन अब वे सभी सीमाएं लांघते हुए केंद्र की भाजपा सरकार के सही फ़ैसलों का विरोध करती नज़र आ रही हैं। इसकी शुरुआत उन्होंने नोटबन्दी से की, बाद में वे नीति आयोग की बैठक में अनुपस्थित रहीं जहाँ हर राज्य के मुख्यमंत्री अपने-अपने राज्यों में विकास संबंधित मुद्दों पर विमर्श करने के लिए उपस्थित थे। इस बैठक से ममता बनर्जी के अलावा केजरीवाल भी नदारद थे। और अब वे केंद्र द्वारा लाल बत्ती पर प्रतिबन्ध के निर्णय को भी अनदेखा करती पाई गई हैं। हालाँकि ममता खुद लाल बत्ती का इस्तेमाल नही करतीं, मगर उनके मंत्री और अफ़सर आदि लाल बत्ती का इस्तेमाल करते हैं।
केंद्र द्वारा लाल बत्ती पर रोक लगाने के निर्णय को देश के हर राज्य में सराहा गया। हर राज्य में इस नए नियम के लागू होने की कार्यवाही शुरू हो गयी है। मगर, पश्चिम बंगाल ने केंद्र सरकार द्वारा इस नियम पर माँगी गयी राय में इसे राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र का निर्णय बताते हुए कहा है कि केंद्र इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल के राज्य सचिवालय ने एक पत्र लिखते हुए केंद्र सरकार को यह स्पष्ट कर दिया है कि लाल बत्ती पर प्रतिबंध राज्य सरकार से जुड़ा हुआ मसला है, जिसपर केंद्र की दख़लअंदाज़ी देना संघीय ढाँचे के विरुद्ध है। देखा जाए तो उनका रुख साफ है कि भाजपा सरकार की अच्छी पहल भी उनकी बरदाश्त के बाहर है या फिर शायद उनकी सरकार को वीआईपी के उस टैग से बड़ा प्यार है, जिससे उन्हें हर जगह तवज्जो मिलती है।
यह ठीक है कि लाल बत्ती हटाना या न हटाना राज्य सरकार का निर्णय होगा, मगर जब केंद्र ने इस तरह की एक पहल की है और देश के लगभग सभी राज्य इसको अपना रहे हैं, तो ममता बनर्जी की सरकार को इसमें इतनी दिक्कत क्यों हो रही ? अच्छी पहल किसीकी भो हो, उसका स्वागत होना चाहिए. निस्संदेह यह भी ममता बनर्जी के अंध मोदी विरोध की नकारात्मक राजनीति का ही एक उदाहरण है।
नोटबन्दी के बाद से ही ममता ने अंध मोदी विरोध का असाधारण रूप पूरे देश के सामने रखा है। अभी हाल ही में उनके मंत्रियों को भ्रष्टाचार के आरोप में जेल भी जाना पड़ा जिससे वे और भड़की हुई दिखती है और उनका मोदी विरोध और भी प्रबल होता दिख रहा है। ममता का नाम दरअसल उन नेताओं की सूची में होना चाहिए जो असहिष्णुता और अहंकार के जीते-जागते उदाहरण हैं। अब इसे अहंकार के अलावा और क्या कहा जाए कि जब देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति से लेकर मुख्य न्यायधीश तक लाल बत्ती को त्याग दी हैं, फिर एक राज्य की मुख्यमंत्री को ये फैसला जाने कैसे संघीय ढाँचे में हस्तक्षेप लग रहा है। अगर यह संघीय ढाँचे में हस्तक्षेप होता तो केंद्र सरकार राज्यों से इस निर्णय पर मत रखने को क्यों कहती।
ये ममता बनर्जी की सबसे बड़ी राजनैतिक भूल होगी। अब जनता नकारात्मक राजनीति करने वालों को लगातार खारिज कर रही है, जबकि अपने क्रियाकलापों से ममता का नाम भी अब नकारात्मक राजनीति करने वालों में दर्ज होने की ओर लगातार बढ़ रहा है। वे खुद तो लाल बत्ती का इस्तेमाल नहीं करतीं, मगर जिस तरह से उन्होंने केंद्र की इस पहल पर अपना विरोध जताया है, उससे उनके प्रति जनता में अच्छा सन्देश नहीं जाएगा। सवाल उठेगा कि उनकी सरकार को लाल बत्ती से इतना अधिक लगाव क्यों है ?
(लेखिका पत्रकारिता की छात्रा हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)