फिलहाल विपक्षी खेमे में कोई एक ऐसा नेता नहीं है, जो मोदी के सामने जरा भी ठहर सके। मोदी जिस विकास की राजनीति के दम पर खड़े हैं, उस मोर्चे पर ये सभी नेता जनता की कसौटी पर कहीं नहीं ठहरते। मोदी ने देश की राजनीतिक हवा को बदल दिया है और इस बदली हुई हवा में इन नेताओं का मोदी का मुकाबला करना तो दूर पाँव जमाए खड़ा रहना भी आसान नहीं है। ये कारण है कि 2019 में मोदी स्पष्ट रूप से अजेय नज़र आ रहे हैं।
2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए रणभेरियां अभी से बज चुकी हैं। राजनीतिक पार्टियां भी अपने-अपने वैचारिक धरातल को तैयार करने में लग गई हैं। भारतीय जनता पार्टी ने अपनी दो दिवसीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई, वहीं राहुल गाँधी ने गुजरात की धार्मिक नगरी द्वारिका से अपना चुनाव अभियान शुरू कर दिया है।
लोक सभा चुनाव से पहले आने वाले समय में हिमाचल, गुजरात और राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने हैं। आज मोदी के विरोध का झंडा लेकर तो बहुत से विपक्षी नेता खड़े हैं और मोदी का मुकाबला करने का हौसला पाल रहे हैं, लेकिन आकलन करें तो उनकी हालत पतली ही नज़र ही आती है। मोदी विरोध में खड़े लगभग सभी नेता ऐसे हैं, जिनका वर्तमान तो डांवाडोल है, लेकिन भविष्य को लेकर वे मुंगेरीलाल के स्टाइल में सपने देख रहे हैं।
राहुल गांधी : राहुल विपक्ष के सर्वमान्य नेता नहीं बन पाए हैं, विपक्षी पार्टियों के लिए सर्वमान्य नेतृत्व एक बहुत बड़ी चुनौती है। राहुल की कांग्रेस पार्टी से भी कई नेताओं ने राहुल गाँधी की क्षमता पर सवाल उठाया, लेकिन पार्टी से निकाले जाने के भय से चुप बैठ गए। ये लगभग तय माना जा रहा कि 2019 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस राहुल की रहनुमाई में ही लड़ेगी।
पिछले दिनों राहुल गाँधी ने अमेरिका जाकर मोदी सरकार पर हमला बोला और हजार तरह की बुराइयां कीं। लेकिन, इस बात को कहने के लिए राहुल का बर्कले जाना ज़रूरी था क्या? दरअसल राहुल की बात को भारत में कोई गंभीरता से नहीं सुनता इसलिए उन्हें अपनी बात कहने के लिए अमेरिका का रुख करना पड़ा। हालत ऐसी है, मगर कांग्रेस पार्टी इनके भरोसे मोदी सेर मुकाबले का मुगालता पाले बैठी है।
ममता बनर्जी : ममता बनर्जी किसी भी हाल में अपने वोट बैंक को अपने हाथों से छिटकने नहीं देना चाहतीं, चाहें उसके लिए मां दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन ही क्यों न रोकना पड़े। ममता का मोदी विरोध भाजपा के प्रति घृणा और एक तरह से अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण का रूप धारण कर चुका है। ममता के राज में हिन्दुओं पर जितने हमले हुए हैं, ऐसा हाल तो वामपंथियों के राज में भी नहीं था। आज मुस्लिम वोट के तुष्टिकरण की दिशा में ममता सबसे आगे चल रही हैं। लेकिन, इसके भरोसे मोदी से मुकाबला करने की सोचना दिन में सपने देखने जैसा ही है।
लालू यादव परिवार : इनका वोट बैंक मुस्लिम और यादव के इर्द-गिर्द ही घूमता रहा है। लालू खुद चारा घोटाले में सजायाफ्ता हैं और चुनाव नहीं लड़ सकते। इनके बेटे-बेटियों के खिलाफ भी सीबीआई और ईडी कई मामलों में जांच कर रही है। नीतीश कुमार ने जब से इनका साथ छोड़ा है, लालू के लिए अपनी राजनीतिक ज़मीन बचानी मुश्किल हो गई है।
मुलायम यादव : ये तो इन दिनों अपनी पारिवारिक सह राजनीतिक कलह से ही निपटने में लगे हैं। जिन अखिलेश यादव को मुलायम 2012 में बड़े अरमानों से यूपी के मुख्यमंत्री की गद्दी पर बिठाए थे, इस बार के विधानसभा चुनाव के समय से वो अखिलेश उनके नियंत्रण से बाहर हैं। अब मुलायम फिलहाल अपनी ही बनाई समाजवादी पार्टी में अपना वजूद बचाने की जद्दोजहद में लगे हैं। अखिलेश को धोखेबाज बता रहे और नयी पार्टी बनाने की बात भी कह रहे। कुल मिलाकर मजमून यही है कि फिलहाल मुलायम या अखिलेश लोकसभा चुनाव में कोई बड़ा खेल करने की हालत में नहीं दिख रहे।
अरविन्द केजरीवाल: ये महोदय अभी पंजाब में मिली हार के सदमे से नहीं उबरे हैं। हर बात के लिए मोदी को जिम्मेदार ठहराना कितना भारी पड़ रहा, इसका एहसास इन्हें अब हो चुका है। इसलिए इन दिनों चुपचाप दिल्ली की राजनीतिक ज़मीन बचाने की कवायद में जुटे हैं। दिल्ली की जनता से किए हुए वादों को पूरा करना केजरीवाल के राजनीतिक भविष्य के लिए बेहद ज़रूरी है, अभी कम से कम उनकी पार्टी लोकसभा के लिए सोचने की स्थिति में नहीं है।
कम्युनिस्ट खेमा: हर राष्ट्रविरोधी गतिविधि में शामिल होना कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं की फितरत बन गई है, यही वजह है कि जनता के बीच इस पार्टी का जनाधार लगातार खिसकता जा रहा है। अब ये राजनीतिक पतन की कगार पर खड़े हैं।
उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि फिलहाल विपक्षी खेमे में कोई एक ऐसा नेता नहीं है, जो मोदी के सामने जरा भी ठहर सके। मोदी जिस विकास की राजनीति के दम पर खड़े हैं, उस मोर्चे पर ये सभी नेता जनता की कसौटी पर कहीं नहीं ठहरते। मोदी ने देश की राजनीतिक हवा को बदल दिया है और इस बदली हुई हवा में इन नेताओं का मोदी का मुकाबला करना तो दूर पाँव जमाए खड़ा रहना भी आसान नहीं है। ये कारण है कि 2019 में मोदी स्पष्ट रूप से अजेय नज़र आ रहे हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)