मात्र छह वर्षों में मोदी सरकार ने खेती-किसानी को सशक्त बनाने के लिए इतने उपाय कर दिए हैं कि विरोधियों के पास खेती-किसानी से जुड़े मुद्दों का अकाल पड़ गया है। मोदी विरोधी इस बात से अच्छी तरह परिचित हैं कि एक बार किसान सूचना प्रौद्योगिकी आधारित कृषि विपणन तंत्र को अपना लेंगे तो पिछले 70 वर्षों में कांग्रेस द्वारा पोषित बिचौलिया प्रधान विपणन व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी। कृषि सुधार संबंधी विधेयकों के विरोध की असली वजह यही है।
पिछले वर्ष सरकार बार-बार कह रही थी कि नागरिकता संशोधन कानून का देश के किसी नागरिक से कोई लेना-देना नहीं है, इसके बावजूद विपक्ष मुसलमानों को बरगलाता रहा। कमोबेश वही स्थिति आज कृषि क्षेत्र में उदारीकरण-आधुनिकीकरण लाने वाले विधेयकों के साथ हो रही है।
सरकार बार-बार कह रही है कि कृषि सुधार संबंधी कानून लागू होने के बाद भी सरकारी मंडी व्यवस्था और न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी रहेंगे फिर भी विपक्ष वोट बैंक की राजनीति में डूबा विपक्ष भ्रम फैलाने से बाज नहीं आ रहा है।
दरअसल कांग्रेसी कार्य संस्कृति में चुनावों को ध्यान में रखकर योजनाओं की घोषणा की जाती थी और सत्ता मिलते ही सरकारें उन योजनाओं को भुला देती थीं। इसी का नतीजा था कि आजादी के सत्तर साल बाद भी लोगों को बिजली, पानी, सड़क, उर्वरक, कीटनाशक, रसोई गैस, शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष करना पड़ता था।
लगभग सत्तर वर्षों तक कांग्रेस की वोट बैंक वाली कार्य-संस्कृति का शिकार बना आम आदमी आज भी वादों पर विश्वास नहीं कर पाता। इसी का फायदा विरोधी दल उठाकर कभी सीएए के नाम पर तो कभी एमएसपी व मौजूदा मंडी व्यवस्था खत्म करने का भ्रम फैलाकर देश को गुमराह करने की कोशिश करते रहते हैं।
दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों को 21वीं सदी के भारत के अनुरूप बना रहे हैं ताकि खेती-किसानी को बिचौलियों-आढ़तियों के चंगुल से निकाला जा सके। यह काम सूचना प्रौद्योगिकी के बिना संभव नहीं है इसी को देखते हुए प्रधानमंत्री ने 74वें स्वतंत्रता दिवस पर अगले एक हजार दिनों में देश के हर हर गांव को ऑप्टिकल फाइबर से जोड़ने की घोषणा की थी।
इस घोषणा को जमीन पर उतारने के लिए 21 सितंबर 2020 को हर घर तक फाइबर नामक योजना शुरू की गयी। इसकी शुरूआत बिहार से हुई जहां 45,945 गांवों को अगले सौ दिनों में ऑप्टिकल फाइबर से जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है।
ऑप्टिकल फाइबर जुड़ने से गांव के लोग इंटरनेट सुविधा के लिए ब्राडबैंड़ का इस्तेमाल कर सकेंगे। गौरतलब है कि सरकार ने अब तक भारतनेट कार्यक्रम के तहत 1.5 लाख ग्राम पंचायतों को ऑप्टिकल फाइबर से जोड़ दिया है। अब बाकी सभी गांवों को ऑप्टिकल फाइबर से जोड़ने के लिए हर घर तक फाइबर योजना शुरू की गई है। उल्लेखनीय है कि 2014 से पहले तक देश की मात्र 60 ग्राम पंचायतें ही ऑप्टिकल फाइबर से जुड़ी थीं।
जब देश के सभी गांवों तक ब्राडबैंड की पहुंच बन जाएगी तब किसान और व्यापारी इंटरनेट के जरिए उपज की खरीद-बिक्री करेंगे जिसमें बिचौलियों की कोई भूमिका नहीं होगी। इससे न सिर्फ अंतर-राज्यीय व्यापार की सीमा खत्म होगी बल्कि इलेक्ट्रॉनिक कृषि बाजार (ई-नाम) के क्रियान्वयन में आ रही बाधाएं भी दूर हो जाएंगी। उल्लेखनीय है कि 2016 में शुरू हुई ई-नाम योजना से अब 1.66 करोड़ किसान, 1.31 लाख व्यापारी, 73151 कमीशन एजेंट और 1012 किसान उत्पादक संघ जुड़ चुके हैं।
हालांकि इतने बड़े देश में दूर-दूर तक बिखरी बस्तियों तक ब्राडबैंड पहुंचाना आसान काम नहीं है लेकिन मोदी सरकार की राजनीतिक-प्रशासनिक प्रतिबद्धता और चुस्त कार्यसंस्कृति को देखें तो यह महत्वाकांक्षी लक्ष्य भी समय से पहले हासिल कर लिया जाएगा।
गौरतलब है कि 15 अगस्त 2015 को जब प्रधानमंत्री ने अगले एक हजार दिनों में देश के बिजली विहीन हर गांव तब बिजली पहुंचाने की घोषणा की थी तब किसी को विश्वास नहीं था कि यह कार्य पूरा हो पाएगा लेकिन मोदी सरकार की जवाबदेह कार्यसंस्कृति का नतीजा रहा कि योजना समय से पहले पूरी हो गई।
मात्र छह वर्षों में मोदी सरकार ने खेती-किसानी को सशक्त बनाने के लिए इतने उपाय कर दिए हैं कि विरोधियों के पास खेती-किसानी से जुड़े मुद्दों का अकाल पड़ गया है। मोदी विरोधी इस बात से अच्छी तरह परिचित हैं कि एक बार किसान सूचना प्रौद्योगिकी आधारित कृषि विपणन तंत्र को अपना लेंगे तो पिछले 70 वर्षों में कांग्रेस द्वारा पोषित बिचौलिया प्रधान विपणन व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी। कृषि सुधार संबंधी विधेयकों के विरोध की असली वजह यही है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)