यह शर्मनाक है कि लंबे समय से अदद मुद्दे को तरस रही कांग्रेस जब देश की नीतियों, विकास क्रम में कोई त्रुटि नहीं पकड़ पा रही है तो अब वह आपराधिक घटनाओं को अपना हथकंडा बनाने में जुट गई है। आश्चर्य तो यह भी है कि यदि राहुल और प्रियंका आम आदमी के इतने ही हिमायती हैं तो वे बलरामपुर और करौली क्यों नहीं गए। इस पर उन्होंने कोई ट्वीट क्यों नहीं किया।
किसी भी देश-समाज में कुछ न कुछ समस्याएँ होती ही हैं, लेकिन यदि कोई इसमें भी अवसर की तलाश करते हुए राजनीतिक जमीन खोजने लगे तो यह अत्यंत घृणित बात ही कही जाएगी। अफसोस तो यह है कि इन दिनों देश में यह स्थिति धरातल का व्यवहारिक सत्य बन गयी है।
बीते दिनों उत्तर प्रदेश के हाथरस से एक युवती से कथित दुष्कर्म की खबर सामने आई। यह राष्ट्रीय सुर्खी बनी। इसके बाद इस मामले में लगातार नए खुलासे होते रहे। तथ्य बदलते रहे। पुलिस अपना काम पहले भी कर रही थी, अब भी कर रही है। राज्य सरकार अपने स्तर पर निर्णय ले ही रही है। मामला सीबीआई की जांच तक पहुंच चुका है।
लेकिन इन सब घटनाक्रमों में कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने राजनीतिक अवसर सूंघ लिया। राहुल गांधी ने इस मामले में जिस तरह से पुलिस से भिड़ने की, जमीन पर गिरने की नौटंकी की थी, उसे पूरे देश ने देखा और इस पर उनकी बुरी तरह खिल्ली भी उड़ी।
हाथरस की घटना के बाद ही छत्तीसगढ़ के बलरामपुर से भी ऐसे ही अपराध की खबर सामने आई लेकिन वहां राहुल गांधी के लिए राजनीतिक रोटियां सेंकने का कोई अवसर नहीं था, सो उन्होंने उसका जिक्र तक नहीं किया। यह बहुत ही निम्न सोच का परिचायक है।
अभी यह सब चल ही रहा था कि चार दिन पहले राजस्थान के करौली से मंदिर के पुजारी को जिंदा जला देने का ह्दय विदारक समाचार सामने आया। इस पर भी कांग्रेस ने मौन धारण कर रखा है। हाथरस मामले में जोर-शोर से राजनीति करने वाले राहुल गांधी की तरफ से करौली की घटना पर कोई बयान सामने नहीं आया। उनकी यह चुप्पी बहुत कुछ स्पष्ट करती है।
चूंकि भाजपा इस घटना को लेकर आरंभ से ही आक्रामक रूख अपनाए हुए है, इसलिए दबाव के चलते राज्य सरकार ने आखिर घटना की सीबी-सीआईडी जांच के आदेश कल रात को दिए। लेकिन क्या विपक्षी दल इस सवाल का जवाब देंगे कि वे इस पर कुछ बोल क्यों नहीं रहे हैं। हाथरस मामले में तो राहुल और प्रियंका ने यही कुतर्क दिया कि योगी सरकार में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। उनके इस कुतर्क के अनुसार तो राजस्थान में आम आदमी एवं निर्धन तबका घोर असुरक्षित है।
चूंकि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है, इसलिए राहुल गांधी मुंह में दही जमाकर बैठे हैं। जबकि इन ओछी बातों से परे सच केवल इतना है कि अपराध अपराध होता है। यदि वह यूपी में होता है तो भी अपराध है, राजस्थान में होता है तो भी।
हाथरस मामले को बेवजह मुद्दा बनाने वाले राहुल गांधी ने क्या यह नहीं देखा कि योगी सरकार इसमें एसपी, सीओ सहित 5 पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर चुकी है। घटना की सीबीआई जांच की संस्तुति कर चुकी है और अब तो केंद्र सरकार से सीबीआई जांच के लिए बकायदा अधिसूचना भी जारी हो चुकी है। क्या एक राज्य के मुखिया के तौर पर लिए गए ये निर्णय न्यायोचित नहीं प्रतीत होते?
यह शर्मनाक है कि लंबे समय से अदद मुद्दे को तरस रही कांग्रेस जब देश की नीतियों, विकास क्रम में कोई त्रुटि नहीं पकड़ पा रही है तो अब वह आपराधिक घटनाओं को अपना हथकंडा बनाने में जुट गई है। आश्चर्य तो यह भी है कि यदि राहुल और प्रियंका आम आदमी के इतने ही हिमायती हैं तो वे बलरामपुर और करौली क्यों नहीं गए। इस पर उन्होंने कोई ट्वीट क्यों नहीं किया।
थोड़ी नजर हटाकर देश में दूसरी तरफ देखें तो पश्चिम बंगाल में ही सिख से बर्बरता का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। क्या राहुल अब इस तरह का बयान देंगे कि तृणमूल सरकार के राज में सिख अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहा है। इस सरकार को इस्तीफा देना चाहिये आदि आदि।
कांग्रेस की राजनीतिक दुर्भावना इसके आपराधिक मौन से प्रकट होती है। करौली में जहां पीड़ित परिवार को सांत्वना देने विभिन्न दलों व सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि पहुंच रहे हैं, वहीं कांग्रेस का कोई भी प्रतिनिधि अब तक नहीं पहुंचा है, जबकि यहां तो कांग्रेस की ही सरकार है। राज्य के किसी मंत्री के पहुंचने की बात तो दूर, क्षेत्रीय कांग्रेस विधायक भी वहां अभी तक नहीं पहुंचे हैं।
लाशों पर राजनीति का गंदा एवं घिनौना खेल क्या होता है, यह कोई कांग्रेस से सीखे। कांग्रेस इस कुत्सित कृत्य की सदा से अनुभवी रही है। पीड़ित परिवार से मुलाकात के बाद भाजपा नेता कपिल मिश्रा ने कहा कि गहलोत सरकार अपराधियों पर लगाम लगाने में नाकाम साबित हो रही है। कांग्रेस नेताओं को हाथरस से पहले राजस्थान को देखना चाहिए। लेकिन चूंकि करौली में एक पुजारी की मौत का मामला है। वह हिंदू धर्म का प्रतिनिधि था। अतः यह कांग्रेस के एजेंडे में फिट नहीं बैठता।
कांग्रेस का तो एजेंडा हिंदू विरोधी रहा है। वह भला कैसे इस पर बोल सकती है। हाथरस मामले में अतिशय शोरगुल, नौटंकी के बाद बलरामगंज मामले से अनभिज्ञता जताना और करौली की घटना पर मौन हो जाना, यही कांग्रेस का मूल कुटिल चरित्र है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)