अपराध तो मदरसे में भी हुआ है। आरोपी मौलवी भी सामने ही है। ऐसे में, अब उन सभी का चुप बैठना, जो असिफा के लिए शोरगुल मचा रहे थे, बहुत सवाल पैदा करता है। यदि अन्याय के खिलाफ ही खड़े हुए थे, तो अब क्या हो गया है ? क्यों अब आक्रोश नहीं पैदा हो रहा ? क्या इसलिए कि पीडि़ता हिंदू है और देश का मीडिया अपने मुस्लिम प्रेम को जाहिर कर चुका है ? क्या इन लोगों द्वारा न्याय की मांग भी धर्म को देखकर ही की जाती है ? कठुआ पर कैंडल मार्च निकालने वाले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अब इस मामले में दूर-दूर तक क्यों नज़र नहीं आ रहे ?
पिछले दिनों कठुआ मामले को लेकर देश में काफी गहमागहमी देखी गई। इस प्रकरण की पीडि़ता के पक्ष में अचानक गम और गुस्से का उबाल आ गया। देश में कुछ भी हालात चल रहे हों, लेकिन हमेशा केवल अपने नाच-गाने और खाने-पीने व हंसने में मस्त रहने वाला बॉलीवुड भी अचानक आसिफा के लिए तख्तियां लटकाए सामने आ गया। रही सही कसर तथाकथित बुद्धिजीवियों, वामपंथियों, विपक्षियों ने पूरी कर दी जो एक बार फिर से मोमबत्ती लेकर तमाशा करने निकल पड़े। सोशल मीडिया असिफा को न्याय दिलाए जाने के अभियान से भरा पड़ा नज़र आया।
यह सब अभी चल ही रहा था कि एक और खबर सामने आ गई। इस बार मामला एकदम विपरीत था। इस मामले में भी धर्मस्थल का ही नाम सामने आया। यह घटना गाजि़याबाद की है। मामला ये सामने आया कि यहां मदरसे में मौलवी शाहबाज़ खान ने एक 10 वर्षीय बालिका का यौन शोषण किया। बहुत से मुस्लिम मौलवी के बचाव में लाव-लश्कर लेकर उतर पड़े हैं और दस वर्षीय लड़की पर हुए जुल्म को शर्मनाक ढंग से मोहब्बत बताने में लगे हैं। लेकिन यह क्या! इस बार कहीं से कोई आक्रोश के स्वर नहीं सुनाई दे रहे हैं। बॉलीवुड भी नदारद है, मोमबत्ती गैंग चुप है और बुद्धिजीवी वर्ग मुंह में दही जमाकर बैठ गया है।
इसका सीधा सा कारण है कि इस बार पीडि़ता मुस्लिम की बजाय हिंदू है। यह भी कम आश्चर्य की बात नहीं है कि हर छोटी-छोटी बात का बतंगड़ बनाने में माहिर देश का इलेक्ट्रानिक मीडिया का एक वर्ग भी इस मामले पर कोरम पूरा करने वाली रिपोर्टिंग करके बैठ गया है। ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि इस बार अपराधी के मजहब का पता चल चुका है। सोशल मीडिया के अनुसार गाजियाबाद की पीडि़ता का नाम गीता है। गीता के न्याय के लिए अभी तक कहीं से कोई कैंपेन शुरू होता नज़र नहीं आ रहा है। लेकिन, सवाल उठता है कि यदि कठुआ मामले में आवाज़ उठाने वालों का मुख्य मकसद जुर्म के खिलाफ न्याय की मांग ही था, तो अब भला किसे और क्यों अड़चन आ रही है।
अपराध तो मदरसे में भी हुआ है। आरोपी मौलवी भी सामने ही है। ऐसे में, अब उन सभी का चुप बैठना, जो असिफा के लिए बहुत शोरगुल मचा रहे थे, बहुत सवाल पैदा करता है। यदि अन्याय के खिलाफ ही खड़े हुए थे, तो अब क्या हो गया है ? क्यों अब आक्रोश नहीं पैदा हो रहा ? क्या इसलिए कि पीडि़ता हिंदू है और देश का मीडिया अपने मुस्लिम प्रेम को जाहिर कर चुका है ? क्या धर्म को देखकर न्याय की मांग की जाती है ? कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अब इस मामले में दूर दूर तक क्यों नज़र नहीं आ रहे ? यह दोहरी मानसिकता और दोमुंहापन स्पष्ट रूप से प्रकट हो ही चुका है, जो कि बेहद शर्मनाक है।
खबरों के अनुसार, मौलवी ने मदरसे में बालिका को बंधक बनाकर रखा था और हर एक घंटे में उससे दुराचार किया जाता था। अब खबर है कि मौलवी को गिरफ्तार कर लिया गया तथा कोर्ट ने उसे रिमांड पर भेज दिया है। कठुआ मामले में जिस प्रकार से प्रायोजित ढंग से हिंदुत्व को बदनाम करने की कोशिश की गई, वह पूरी तरह से आपत्तिजनक कृत्य था। बॉलीवुड की अभिनेत्रियों ने बिना सोचे-समझे जिस प्रकार से अपने गले में तख्तियां टांगी थीं, उसमें भी देवस्थान शब्द पर अधिक ज़ोर दिया गया। लेकिन, अब जब चूंकि एक और धर्मस्थल पर दुष्कर्म का मामला सामने आया है, ऐसे में ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वाले कहां गायब हो गए हैं, आश्चर्य की बात है।
देश में मीडिया एक बड़ी ताक़त है, लेकिन बहुत अफसोस की बात है कि मीडिया के भी एक हिस्से ने मदरसे के मौलवी के खिलाफ उस तरह से आवाज नहीं उठाई, जैसे कठुआ मामले में उठाई थी। इससे तो मीडिया की भूमिका ही सवालों के घेरे में आ गई है। जिस मदरसे में यह गलत काम हुआ है, उसे ना तो सील किया गया, ना ही वहां बड़ी कार्रवाई की गई, उल्टे दोषी मौलवी को छोड़ दिया गया। असल में बॉलीवुड, वामदलों, विपक्षियों और पक्षपाती मीडिया ने बेशर्मी की हदें पार कर दी हैं। इन्हें शर्म भी नहीं आती कि एक मामले में अपराध की बजाय धर्म को निशाना बनाते हैं और दूसरे मामले में धर्म के उजागर हो जाने पर जुबान सीकर बैठ जाते हैं।
अब किस मुंह से ये न्याय की मांग करेंगे। न्याय की मांग तो इनके मूल में शामिल थी ही नहीं। यदि केवल न्याय की ही मांग करना होती तो गीता के मामले में भी ये सब आगे आते। लेकिन, ऐसा नहीं हुआ। ये सब सिर्फ अपना एजेंडा चलाने वाले लोग हैं। कठुआ मामले में ये हिन्दू विरोध का अपना एजेंडा चलाने उतरे थे, गीता मामले में वो एजेंडा नहीं चल सकता, इसलिए इनके मुंह से बोल नहीं फूट रहे।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)