नेतन्याहू भारत आए तो वामपंथियों के सीने पर सांप क्यों लोटने लगा !

कहा जाता है कि आपद काल में मित्र और शत्रु की पहचान होती है। व्यक्तिगत जीवन की यह बात विदेश नीति पर भी लागू होती है। जो देश संकट के समय खुल कर साथ दे, उसकी दोस्ती को सम्मान देना चाहिए। कुछ दिन पहले डोकलाम पर भारत और चीन के  बीच जबरदस्त तनाव था। यहाँ दोनों देशों के सैनिक आमने सामने थे। चीन युद्ध की भाषा बोल रहा था।  ऐसे में जापान और इजरायल ने खुलकर भारत का साथ दिया था।  इन्होने ऐलान किया था कि चीन के आक्रमण की दशा में वह भारत की सहायता करेंगे। ऐसा कहने वाले  नेतन्याहू जब भारत आये तो कम्युनिस्ट दलों समेत कांग्रेस के भी कई नेताओं ने मर्यादा तक का  पालन नहीं किया। सवाल है कि नेतन्याहू के भारत आगमन से इन विपक्षी दलों के सीने पर सांप क्यों लोटने लगा।

विदेश नीति का मुख्य तत्व राष्ट्रीय हित होता है। अन्य तत्वों में बदलाव  हो सकता है, लेकिन राष्ट्रीय हित की कभी अवहेलना नहीं होनी चाहिए। इजरायल  के साथ  भारत की दोस्ती राष्ट्रीय हित के अनुरूप है। ऐसे में, यह अनुचित है कि भारत के कुछ विपक्षी राजनीतिक दलों और नेताओं ने इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की यात्रा का विरोध किया या उनसे मिलने के तरीके पर हल्की टिप्पणी की। ऐसा करने वाले नेताओं को या तो विदेश नीति के मुख्य तत्व की जानकारी नहीं है या उनके लिए  अपने राजनीतिक हित  ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। उनके विरोध का अन्य कोई मतलब नहीं हो सकता। यदि देश में इनके  विरोध की निंदा होती है, तब ये इसे अभिव्यक्ति  की स्वतंत्रता पर हमला करार  देंगे।  

बिडंबना देखिये कि जिस समय भारत और इजरायल के बीच महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर हो रहे थे, उसी समय वामपंथी पार्टियों ने नई दिल्ली के इंडिया गेट पर नेतन्याहू की यात्रा के विरोध में प्रदर्शन किया। इतना ही नहीं, इन्होने इजरायली दूतावास की तरफ बढ़ने का भी प्रयास किया, तब उन्हें सुरक्षा बलों को बलपूर्वक रोकना पड़ा। इस विरोध प्रदर्शन में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी शामिल थीं।

नेतन्याहू के विरोध में उतरी वामपंथी पार्टियां

इसके पहले कांग्रेस के नेता भी द्वारा मोदी के नेतन्याहू से मुलाकात और स्वागत के तरीके पर टिप्पणी करके अपनी समझ का प्रदर्शन कर चुके थे। इन नेताओं का इजरायल फलस्तीन से कोई लेना देना नहीं  है, न कोई फलस्तीनी इनसे सहयोग मांगता है। इनका मकसद तो केवल  वोट बैंक की राजनीति है। इन्हें लगता है कि इजरायल का विरोध करने से भारत के मुसलमान खुश हो जाएंगे। इस सोच के लिए वह इजरायली प्रधानमंत्री की यात्रा का विरोध कर रहे थे, जबकि इन्हें  भारत के आम मुसलमानों का समर्थन नहीं मिला।

कहा जाता है कि आपद काल में मित्र और शत्रु की पहचान होती है। व्यक्तिगत जीवन की यह बात विदेश नीति पर भी लागू होती है। जो देश संकट के समय खुल कर साथ दे, उसकी दोस्ती को सम्मान देना चाहिए। कुछ दिन पहले डोकलाम पर भारत और चीन के  बीच जबरदस्त तनाव था। यहाँ दोनों देशों के सैनिक आमने सामने थे। चीन युद्ध की भाषा बोल रहा था।  ऐसे में जापान और इजरायल ने खुलकर भारत का साथ दिया था।  इन्होने ऐलान किया था कि चीन के आक्रमण की दशा में वह भारत की सहायता करेंगे। 

संकट काल मे ऐसा समर्थन किसी भी देश का मनोबल  बढ़ाता है। ऐसा कहने वाले  नेतन्याहू जब भारत आये तो कम्युनिस्ट और कांग्रेस के कई नेताओं ने मर्यादा तक का  पालन नहीं किया। चीन के विरोध में इन वामपंथियों की कभी आवाज नहीं निकलती, जबकि भारत के सच्चे दोस्त के विरोध में इन्होने प्रदर्शन किया। ये दिखाता है कि इनके लिए राष्ट्रहित से अधिक महत्वपूर्ण इनका अपना राजनीतिक हित है।

इजरायल के साथ भारत  का द्विपक्षीय सहयोग बहुत महत्वपूर्ण है। सीमापार के आतंकवाद से निपटने की इजरायली तकनीक कारगर है। वह भारत के साथ इसपर सहयोग को तैयार है। भारत भी सीमापार के आतंकवाद से पीड़ित है। इसके अलावा कम पानी से कृषि और अन्य तकनीक के क्षेत्र में भी सहयोग की संभावना बढ़ी है। 

सांकेतिक चित्र

नेतन्याहू की नई दिल्ली यात्रा के दौरान नौ महत्वपूर्ण समझौतों पर सहमति बनी।  इनमें साइबर सुरक्षा, मेडिकल शोध, हवाई यात्रा प्रोटोकॉल, अंतरिक्ष विज्ञान,  निवेश,  मेटल एयर बैटरीज, सोलर थर्मल टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में सहयोग शामिल है। जाहिर है कि भारतीय प्रधानमंत्री की इजरायल यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच जो समझौते हुए थे,  उस सहयोग का अगला चरण प्रारंभ हो गया है।  इस यात्रा में सामरिक सहयोग बढ़ाने पर भी व्यापक चर्चा हुई।  इजरायल पहली बार भारत में तेल, गैस और नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र निवेश के लिए राजी हुआ है। इजरायल कम पानी से अधिक कृषि उत्पाद की तकनीक भी भारत को देगा। भारत का  बड़ा हिस्सा असिंचित है।  यहां इजरायली तकनीक बहुत उपयोगी साबित होगी।   

दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के बीच बैठक भी बहुत उपयोगी साबित हुई। इसमें दोनो देश आतंकवाद पर साझा तंत्र बनाने पर सहमत हुए हैं। बराक मिसाइल और एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल पर समझौते की संभावना बढ़ी है। खुफिया सूचना इजरायल पहले से साझा कर रहा है। लेकिन, अब आतंकवाद के खिलाफ साझा तंत्र विकसित किया जाएगा। 

आगरा में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और नेतन्याहू के बीच भी उपयोगी वार्ता हुई। उत्तर प्रदेश के कृषि आदि  क्षेत्रों में  इजरायल ने तकनीकी  सहयोग  पर  सहमति व्यक्त की है। योगी आदित्यनाथ  ने बस्ती व कन्नौज में हार्टिकल्चर  संबन्धी  दो इकाइयों की स्थापना, बुन्देलखण्ड में कम पानी से कृषि उत्पाद, वाटर मैनेजमेंट, सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट पर भी दोनों के बीच वार्ता हुई। इजरायल  की कम्पनियाँ उत्तर प्रदेश में निवेश करेंगी।  

यह समझना होगा कि नरेंद्र मोदी की सरकार राष्ट्रीय हितों के साथ-साथ वैश्विक जिम्मेदारी भी समझती है। इजरायल से  दोस्ती समय की मांग है। इसका मतलब यह नहीं कि अरब देशों से हमारे संबन्ध खराब  होंगे।  कुछ दिन पहले ही येरूसलम को इजरायल की राजधानी बनाने संबन्धी अमेरिका के प्रस्ताव का भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ में विरोध भी किया था। इसका मतलब है कि भारत इजरायल और अरब देशों के साथ अपने संबंधों को लेकर बेहद संतुलित और सूझ-बूझ भरे ढंग से बढ़ रहा है।

(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)