कासगंज में गणतंत्र दिवस को जो तिरंगा यात्रा निकाली गई, वह राष्ट्रीय पर्व में समाज के उत्साह और सहभागिता की मिसाल थी। इसका तो सभी स्थानों पर स्वागत होना चाहिए था। ऐसे जुलूस राष्ट्रीय और सामाजिक सौहार्द को मजबूत बनाने वाले होते हैं। लेकिन, समाजविरोधी तत्वों को ऐसी बातें परेशान करती हैं। यही कारण था कि जुलूस पर हमला किया गया। सुनियोजित ढंग से गोली चलाई गई, निर्दोष युवक चन्दन गुप्ता को अपनी जान गंवानी पड़ी।
सामाजिक हिंसा सभ्य समाज को कलंकित करती है। समाज और सियासत सभी को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। उत्तर प्रदेश के कासगंज की घटना ऐसी ही है। यहां कुछ अराजक तत्वों ने गणतंत्र दिवस के उत्साह को शोक में बदल दिया। राष्ट्रीय पर्व में जनभागीदारी प्रजातन्त्र, एकता और सौहार्द को जीवंत करती है। ऐसे प्रत्येक आयोजन से जागरूकता बढ़ती है। लेकिन, कासगंज में तिरंगा यात्रा में अवरोध पैदा कर अराजक तत्वों ने राष्ट्रीय पर्व में जनभागीदारी को रोकने का कार्य किया। बिडंबना देखिये कि सेकुलर सियासत के तेवर इस बार दिखाई नहीं दिए। सम्मान लौटाने को कोई सामने नहीं आया। तथाकथित सेक्युलर नेताओं का तांता यहां नहीं लगा।
जहाँ तक प्रदेश सरकार का सवाल है, उसने इस घटना को बहुत गंभीरता से लिया है। स्थानीय प्रशासन और खुफिया तंत्र की चूक पर मुख्यमंत्री ने कड़ा रुख अपनाया है। दोषियों के खिलाफ कार्यवाई की गई है। इसके अलावा पूरी घटना की जांच हेतु एसआईटी का गठन कर दिया गया है। यह सभी संबंधित तथ्यों पर विचार करेगी। घटना के लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान के अलावा साजिश और हिंसक तत्वों को संरक्षण जैसे बिन्दुओं की यह एसआईटी जांच करेगी। संभावना है कि जल्दी ही दोषी शिकंजे में होंगे।
समाज की बात करें तो आमतौर पर इस हिंसा ने लोगों को विचलित किया है। गणतंत्र दिवस के उत्साह में आमजन का शामिल होना अच्छा माना जाता है। प्रायः कहा जाता है कि स्वतन्त्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर सरकारी इमारतें सजाई जाती हैं। समारोह होते हैं। विद्यालयों, कार्यालयों में समारोह होते हैं। किंतु, आमजन से इसका अपेक्षित जुड़ाव नहीं हो पाता था।
लेकिन, पिछले कुछ वर्षों से माहौल बदल रहा है। आमजन भी राष्ट्रीय पर्वों को उसी उत्साह में मनाने का प्रयास करने लगा है, जैसे वह अपने सामाजिक पर्व मनाता है। देश के लिए इस बदलाव को सकारात्मक मानना चाहिए। ऐसे सार्वजनिक कार्यक्रमों से देशभक्ति की भावना मजबूत होती है।
कासगंज में गणतंत्र दिवस को जो तिरंगा यात्रा निकाली गई, वह राष्ट्रीय पर्व में समाज के उत्साह और सहभागिता की मिसाल थी। इसका तो सभी स्थानों पर स्वागत होना चाहिए था। ऐसे जुलूस राष्ट्रीय और सामाजिक सौहार्द को मजबूत बनाने वाले होते हैं। लेकिन, समाजविरोधी तत्वों को ऐसी बातें परेशान करती हैं। यही कारण था कि जुलूस पर हमला किया गया। सुनियोजित ढंग से गोली चलाई गई, निर्दोष युवक चन्दन गुप्ता को अपनी जान गंवानी पड़ी।
अब ऐसे मसलों पर सेकुलर सियासत का रंग देखिये। इखलाक और रोहित वेमुला पर इनकी जो संवेदना थी, वह कासगंज में चन्दन गुप्ता की हत्या के मामले में नदारद रही। आज भी इन तथाकथित सेकुलर पार्टियों के एजेंडे में इखलाक और रोहित वेमुला हैं। जब कोई मुद्दा नहीं होता तब ये अपनी झोली से इन्ही मुद्दों को निकालते हैं। इसके साथ ही ये असहिष्णुता बढ़ने का आरोप लगाते हैं। मगर चन्दन गुप्ता की हत्या से असहिष्णुता भी नहीं बढ़ी। लेकिन, इनमें से किसी नेता ने यह नहीं कहा कि कासगंज हिंसा समुदाय-विशेष की असहिष्णुता का परिणाम है। ज्यादा समय नहीं हुआ जब इखलाक प्रकरण पर सम्मान वापसी अभियान शुरू हो गया था। एक अभिनेता की बेगम को तो भारत में डर लगने लगा था। लेकिन, कासगंज पर ये सभी मौन हैं जैसे कुछ हुआ ही नहीं।
वस्तुतः ऐसी सेकुलर सियासत असामाजिक तत्वों का मनोबल बढ़ाती है। ये तो अच्छा हुआ कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बड़ी समझदारी से सामाजिक सौहार्द को बिगड़ने से बचा लिया। उन्होने जहाँ स्थानीय स्तर पर प्रशासन को सख्त निर्देश दिए, वहीं विकास के मुद्दे को आगे चलाते रहे। कानून व्यवस्था और विकास दोनों पर उन्होने पैनी नजर बनाए रखी है। इस कारण विपक्ष को कहीं मौका नहीं मिला।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)