माता-पिता की उपलब्धियों के नाम पर जनता से समर्थन मांगने के अनेक उदाहरण मिल जाएंगे लेकिन भारतीय राजनीति में संभवत: यह पहला वाकया है जब कोई बेटा अपने माता-पिता के शासनकाल में हुए गुनाहों के लिए माफी मांग रहा है। स्पष्ट है, तेजस्वी यादव यह खुलेआम स्वीकार कर रहे हैं कि लालू-राबड़ी के 15 वर्षीय शासन काल में बिहार में गुनाह हुए हैं।
इन दिनों बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और लालू-राबड़ी यादव के पुत्र तेजस्वी यादव सूबे में घूम घूम कर जनता से माफी मांग रहे हैं। दरअसल तेजस्वी यादव यह माफीनामा लालू-राबड़ी के कुशासन के अपराधबोध से ग्रस्त होकर नहीं मांग रहे हैं। वास्तविकता यह है कि कुछ महीनों बाद बिहार विधानसभा के चुनाव होने हैं और राष्ट्रीय जनता दल अपने बुरे दौर से गुजर रहा है। इसी को देखते हुए तेजस्वी यादव तरह-तरह के प्रयोग कर रहे हैं।
कभी वे राजद के विश्वस्त सहयोगी रघुवंश प्रसाद सिंह के धुर विरोधी रामा सिंह को राजद में शामिल करने की कवायद करते हैं तो कभी माफीनामा की चाल चलते हैं। स्पष्ट है कि यदि बिहार में विधानसभा चुनाव न होते तो तेजस्वी यादव चुपचाप घर बैठे बाप की कमाई खा रहे होते।
2019 के लोक सभा चुनाव में तेजस्वी यादव ने लालू प्रसाद यादव की तर्ज पर राजनीति की शुरूआत की थी लेकिन यह प्रयोग नाकाम रहा। स्पष्ट है, तीस साल पहले जिस रास्ते पर चलकर लालू यादव को मंजिल मिली थी वह रास्ता अब बंद हो चुका है।
मोदी सरकार ने पिछले छह वर्षों में हर घर तक बिजली, सड़क, शौचालय, रसोई गैस, हर हाथ में स्मार्ट फोन जैसी मूलभूत सुविधाएं पहुंचा दी है। इससे अब इन मुद्दों पर राजनीति चमकाना असंभव है। यही कारण है कि तेजस्वी यादव अपने माता-पिता की नाकामियों के लिए माफी मांग कर जनसमर्थन की अपेक्षा कर रहे हैं।
भले ही तेजस्वी यादव यह दिवास्वप्न देख रहे हों कि बिहार की जनता एक बार फिर उन्हें समर्थन देगी और वे बिहार के मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हो जाएंगे लेकिन बिहार की जनता लालू-राबड़ी के शासन काल को भूली नहीं है। गौरतलब है कि लालू-राबड़ी के मुख्यमंत्रित्व के दौरान बिहार में कानून-व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी थी। हर ओर अराजकता का माहौल था।
बिहार का पुलिस महानिदेशक कौन बने यह मुख्यमंत्री नहीं बल्कि अपराधी से नेता बने शहाबुद्दीन तय करते थे। विकास का पहिया थम जाने के कारण दो वक्त की रोटी के लिए बिहार से करोड़ों लोगों को पलायन करना पड़ा।
इसे वक्त का फेर ही कहा जाएगा कि एक समय जिस परिवार की बिहार से लेकर दिल्ली तक तूती बोलती थी, वह परिवार राजनीतिक रूप से इतना कमजोर हो गया है कि उसे माफीनामा लेकर घूमना पड़ रहा है। मुस्लिम-यादव (एमवाई) फार्मूले पर राजनीति करने वाला लालू यादव परिवार ने यदि जनभावनाओं का किंचित भी सम्मान किया होता तो उसकी यह दशा न होती।
गौरतलब है कि लालू यादव परिवार ने शासन व राजनीति के अपने शर्मनाक मॉडल को लालूवाद कहकर महिमा मंडित किया था। उनके दौर में बिहार अराजकता का पर्याय बन गया था। सड़क, बिजली, पेयजल, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं बदतर स्थिति में पहुंच गई थी। अपराधी रंगदारी वसूल रहे थे। अपहरण और फिरौती वसूलना व्यवसाय बन गया था। अपराधी अपनी समानांतर सरकार चला रहे थे जिनके सामने पुलिस-प्रशासन असहाय बना हुआ था।
तेजस्वी के माफीनामे की एक वजह यह भी है कि अब एमवाई फार्मूला हिट होने से रहा। दरअसल मुसलमान और यादव दोनों ही लालूवाद की असलियत को जान गए हैं। बिहार वाले अब कतई नहीं चाहेंगे कि अपराध, अराजकता और भ्रष्टाचार से बिहार की पहचान बने। वे विकास की राजनीति से जुड़ चुके हैं जिसका लालू परिवार की राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)