हिंदी दिवस पर दिल्ली सरकार के अतर्गत आने वाली हिंदी अकादमी एकबार फिर विवादों में है। विवाद की वजह सम्मान-वापसी से जुड़ा है। घबराइये मत, यह सम्मान वापसी अवार्ड वापसी वाले उस असहिष्णुता इवेंट जैसा नहीं है। इसबार आम आदमी पार्टी सरकार के अंतर्गत आने वाली दिल्ली हिंदी अकादमी ने हिंदी दिवस पर तीन साहित्यकारों को बाकायदा पत्र लिखकर ‘भाषादूत’ सम्मान देने की बात कही थी, जो देने से पहले ही वापस ले ली गयी। ये तीन लेखक हैं, अरुण देव, अशोक कुमार पाण्डेय और संतोष चतुर्वेदी। इन तीनों लेखकों को पहले सम्मान का अ अधिकारिक निमन्त्रण-पत्र देने के बाद इन तीनों लेखकों को फिर एक पत्र भेजकर यह कहा गया कि पत्र गलती से चला गया था, यह सम्मान आपको नहीं दिया जा रहा। खैर, सम्मान वापसी के इस नए तरीके से केजरीवाल सरकार ने हिंदी दिवस पर तीनों लेखकों का अपमान जरुर कर दिया।
खैर, केजरीवाल सरकार तुगलकी फरमान के तौर-तरीकों पर काम करती है ये तो सबको पता है लेकिन हिंदी अकादमी की उपाध्यक्षा वरिष्ठ लेखिका मैत्रेयी पुष्पा ने जिस तरह से खुद को निरीह और लाचार बताते हुए और केजरीवाल का बचाव किया है, वो और निराशाजनक है। मैत्रेयी पुष्पा ने अपने सीमाओं और अधिकारों का रोना भी रोया है। अब सवाल है कि अगर हालात इतने खराब हैं कि उपरी दबाव से हिंदी अकादमी में सबकुछ तय हो रहा है तो भला किस मजबूरी में मैत्रेयी पुष्प वहां टिकी हुई हैं और प्रतिवाद स्वरुप उस संस्थान को छोड़ने से उन्हें कौन रोक रहा है ?
हिंदी अकादमी की उपाध्यक्षा होने के नाते और वरिष्ठ लेखिका होने के नाते भी मेरी अपेक्षा थी कि उनका नाम सम्मान के साथ लिया जाएगा, मगर ऐसा नहीं हुआ। इसबात को मैंने फेसबुक पर लिखा तो उसे एक और मित्र ने साझा किया। मैत्रेयी जी ने वहां यह जवाब दिया कि वो नाम लिए जाने या न लिए जाने को बहुत तवज्जो नहीं देतीं और वहां भी उन्होंने केजरीवाल का बचाव किया था। आज एक साल बाद जब उनके रहते ही तीन साहित्यकारों का ऐसे अपमान हुआ है तो भी वो अपनी दलीलों से बचाव ही कर रही हैं। बड़ा सवाल है कि आखिर क्यों लेखिका मैत्रेयी पुष्पा दिल्ली सरकार के तुगलकी आदेशों के खिलाफ बोलने से हिचक रही हैं ? साथ ही उन लोगों से भी सवाल है कि क्या अपमानित हुए इन तीन लोगों के सम्मान में वो लोग भाषादूत सम्मान लेने से मना करेंगे, जिन्हें नया-नया नामित किया गया है ?
इसमें कोई शक नहीं कि मैत्रेयी पुष्पा की हिंदी अकादमी में अथवा केजरीवाल के मंत्री-विधायकों में कोई अहमियत नहीं है। खुद केजरीवाल भी मैत्रेयी पुष्पा का बहुत सम्मान करते हैं, इसपर संदेह है। इस वर्ष के हिंदी अकादमी पर उजागर हुई हिंदी अकादमी की उपाध्यक्षा मैत्रेयी पुष्पा की लाचारी की एक और नजीर पिछले साल हिंदी दिवस पर ही आयोजित एक सार्वजनिक कार्यक्रम में देखी गयी थी। वह भी दिन भी हिंदी दिवस का ही था। जी हाँ, पिछले वर्ष हिंदी दिवस पर एक हिंदी समाचार चैनल द्वारा आम आदमी पार्टी सरकार के सहयोग से दिल्ली के एक पंचसितारा होटल में हिंदी उत्सव नाम का बड़ा ही खर्चीला आयोजन किया गया।
इस आयोजन में जाने का मेरा भी मन था सो आयोजन से जुड़े एक मित्र के कहने पर पर चला गया। आमंत्रित मेहमान न सही मगर हिंदी का लेखक होने की हैसियत से तो जा ही सकता था। जब कार्यक्रम हॉल में प्रवेश किया तो दिल्ली के मुख्यमन्त्री अरविन्द केजरीवाल अपने मंत्रिमंडल के साथ आगे की कतार में बैठे थे। हिंदी सिनेमा दुनिया से प्रसून जोशी, अभिजात जोशी, नीलेश मिश्रा एवं नवाज़ुद्दीन सिद्दकी भी आगे की तरफ बैठे थे। हालाँकि वहां पर व्यवस्था के दृष्टिकोण से आम आदमी एवं ख़ास आदमी के बीच एक प्रतीकात्मक घेरा भी बना दिया गया था। वैसे कार्यक्रम शुरू होने से पहले दिल्ली हिंदी अकादमी की उपाध्यक्षा मैत्रेयी पुष्पा जी आ गयीं थीं। ख़ास लोगों की कतार में उन्हें पीछे जगह मिली तो वे बैठ गयीं। पांच मिनट बैठने के बाद वे खड़ी हुईं और आगे जाकर मुख्यमंत्री साहब को नमस्कार किया। मुख्यमन्त्री जी ने एक ही सेकेण्ड का समय दिया और बिना हिले उनके नमस्कार का जवाब दिया। फिर मैत्रेयी पुष्पा जी अपनी जगह पर बैठ गयीं। कार्यक्रम की शुरुआत उद्घघोषिका ने किया। पहले स्वागत फिर परिचय। स्वागत-परिचय में वे सभी मंत्रियों और सिनेमाई सितारों का नाम ले चुकी थीं। मै इन्तजार करता रहा मगर हिंदी दिवस पर आयोजित उस कार्यक्रम में बैठीं हिंदी अकादमी की उपाध्यक्षा मैत्रेयी जी का नाम भी नही लिया गया। कारण जो भी हो बीच कार्यक्रम से मैत्रेयी जी उठीं और चुपचाप निकल गयीं। खैर, यह भी हो सकता है मैत्रेयी जी को कहीं जाना भी हों क्योंकि हिंदी अकादमी की दिल्ली उपाध्यक्षा होने के नाते व्यस्त कार्यक्रम रहा होगा।
खैर, हिंदी अकादमी की उपाध्यक्षा होने के नाते और वरिष्ठ लेखिका होने के नाते भी मेरी अपेक्षा थी कि उनका नाम सम्मान के साथ लिया जाएगा, मगर ऐसा नहीं हुआ। इसबात को मैंने फेसबुक पर लिखा तो उसे एक और मित्र ने साझा किया। मैत्रेयी जी ने वहां यह जवाब दिया कि वो नाम लिए जाने या न लिए जाने को बहुत तवज्जो नहीं देतीं और वहां भी उन्होंने केजरीवाल का बचाव किया था। आज एक साल बाद जब उनके रहते ही तीन साहित्यकारों का ऐसे अपमान हुआ है तो भी वो अपनी दलीलों से बचाव ही कर रही हैं। बड़ा सवाल है कि आखिर क्यों लेखिका मैत्रेयी पुष्पा दिल्ली सरकार के तुगलकी आदेशों के खिलाफ बोलने से हिचक रही हैं ? साथ ही उन लोगों से भी सवाल है कि क्या अपमानित हुए इन तीन लोगों के सम्मान में वो लोग भाषादूत सम्मान लेने से मना करेंगे, जिन्हें नया-नया नामित किया गया है ?
लेखक नेशनलिस्ट ऑनलाइन के सम्पादक हैं