एक पूरे वर्ग का अपमान करने की वजह से राहुल गांधी की सदस्यता गई है, इस विषय पर अब इतना शोर क्यूँ! वो कौन लोग हैं जो राहुल गांधी के समर्थन में खड़े होकर पिछड़ी जाति के अपमान को गंभीरता से नहीं ले रहे। आखिर राहुल गांधी सदस्यता गँवाने वाले पहले संसद सदस्य तो हैं नहीं। इसी साल 13 जनवरी को लक्षद्वीप से सांसद मोहम्मद फैजल की सदस्यता हत्या के एक मामले में सजा मिलने के बाद रद्द कर दी गई थी।
राहुल गांधी पर फैसला सुनाते हुए जब कल सूरत की अदालत कह रही थी, कि ‘सांसद की हैसियत से किसी व्यक्ति अथवा प्रजा को संबोधन करते वक्त इसका असर बड़े पैमाने पर होता है और उसके चलते गुनाह की गंभीरता ज्यादा है।’.. तब मुझे वो तमाम लोग याद आ रहे थे जो राहुल की ऐसी गलतियों को उनके स्पष्टवादी होने, साहसी होने, सच्चे होने की निशानी कह कर उन्हें लगातार बढ़ावा देते रहे।
भले ही विपक्ष के दल इसे स्वीकार ना करें लेकिन भारतीय राजनीति में वचनों की शुद्धता, अध्ययन एवं गंभीरता की आवश्यकता को जिस तरह राहुल गांधी ने दूर करते हुए लापरवाह रवैये को आगे बढ़ाया, वो एक बड़ी वजह रहा जिससे समकालीन राजनीति में निरंतर विपक्ष की सामाजिक स्वीकार्यता प्रभावित हुई।
चाहे राफेल खरीदने के मामला हो, कृषि कानून हो या फिर लद्दाख के युद्ध क्षेत्र से भारत और चीनी सेना की वापसी की बात हो, राहुल गांधी ने लगातार जानबूझ कर ना केवल तथ्यों से खिलवाड़ किया बल्कि झूठ भी बोला।
अगर क्रम से राहुल गांधी के झूठ को गिनाना शुरू करूँ तो एक बड़ी किताब लिखी जा सकती है –
राहुल गांधी ने मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते हुए इंदौर में कहा था कि इंटेलीजेंस ब्यूरो के एक अफसर ने उनके कमरे में आकर जानकारी दी थी कि मुजफ्फरनगर में आईएसआई 10-15 युवकों के संपर्क में है। जब विपक्ष के दलों ने इस बयान के बाद पूछा कि क्या आईबी सरकार से बाहर के किसी नेता को इस तरह की जानकारी दे सकती है तो गृह मंत्रालय ने कहा कहा कि उनके पास ऐसी कोई रिपोर्ट आई ही नहीं है।
राहुल गाँधी ने झूठ बोलने की अपनी आदत को कायम रखते हुए फ्रेंच मीडिया हाउस की रिपोर्ट को ट्वीट किया लेकिन डसाल्ट के CEO ने इसे खारिज कर दिया। राहुल गांधी ने डिफेंस मिनिस्ट्री के एक अधिकारी के ट्रांसफर पर झूठ बोला,जबकि वास्तविकता में वह ट्रेनिंग के लिए गए थे। राहुल गाँधी ने संसद में खड़े हो कर कहा कि वो फ्रांस के राष्ट्रपति से मिले थे जबकि अगले ही दिन फ्रांस की सरकार ने इसका खंडन कर दिया।
राहुल गाँधी चुनावी रैलियों में राफेल के अलग अलग दाम बताते रहे जबकि वास्तविकता यही थी कि मोदी सरकार ने फुली लोडेड राफेल डील की थी। इसी विषय पर राहुल ने गलतबयानी करते हुए कहा कि कैबिनेट कमिटी ऑन डिफेंस को लूप में नहीं लिया, जबकि वास्तविकता यही थी कि अगस्त 2016 में ही CCS ने खरीद को मंजूरी दे दी थी।
ऐसे समय जब कूटनीतिक स्तर पर चीन भारत का अंतरराष्ट्रीय मंच पर सामना नहीं कर पा रहा, भारत ने सीमा पर ना सिर्फ चीन के सैनिकों को लगातार आगे बढ़ने से रोके रखा है बल्कि चीन को भारत की वजह से व्यापार के क्षेत्र में भी करोड़ों का नुकसान झेलना पड़ा उस वक्त राहुल गाँधी ने बार बार प्रेस कॉन्फ्रेंस करके चीन की सेना का मनोबल बढ़ाने का कार्य किया। जब पूरी दुनिया को भारतीय सीमा पर चीन का सरेंडर दिख रहा था तब राहुल गाँधी को भारत सरकार का सरेंडर दिख रहा था।
इतिहास की अपनी अज्ञानता को राहुल गाँधी लगातार प्रकट करते रहे हैं। वीर सावरकर पर उनका कम अध्ययन ना केवल उन्हें मजाक का पात्र बनाता रहा है बल्कि इससे कांग्रेस पार्टी भी गर्त में जाती रही। मध्य प्रदेश में एक रैली के दौरान राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि ‘आरएसएस ने अंग्रेजों का समर्थन किया, जिन्होंने दो आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों- टंट्या मामा और बिरसा मुंडा को फांसी दी थी।’ जबकि वास्तविकता यही है कि जब अंग्रेजों ने क्रांतिकारी नेताओं टंट्या मामा और बिरसा मुंडा को फांसी दी थी तब आरएसएस अस्तित्व में ही नहीं था।
एक पूरे वर्ग के अपमान करने की वजह से राहुल गाँधी की सदस्यता गई है, इस विषय पर अब इतना शोर क्यूँ! वो कौन लोग हैं जो राहुल गाँधी के समर्थन में खड़े होकर पिछड़ी जाति के अपमान को गंभीरता से नहीं ले रहे। आखिर राहुल गाँधी सदस्यता गँवाने वाले पहले संसद सदस्य तो हैं नहीं। इसी साल 13 जनवरी को लक्षद्वीप से सांसद मोहम्मद फैजल की सदस्यता हत्या के एक मामले में सजा मिलने के बाद रद्द कर दी गई थी।
पिछले साल अक्टूबर में रामपुर से सपा सांसद आजम खान की भी सदस्यता हेट स्पीच केस में दोषी सिद्ध होने के बाद रद्द की गई थी। दिसंबर 2005 में 10 लोकसभा और 1 राज्यसभा सांसद की सदस्यता की सदस्यता रद्द कर दी गई थी। इन सांसदों पर आरोप था कि इन्होंने संसद में सवाल पूछने के लिए पैसे लिए थे।
इस देश में कानून से बड़ा कोई नहीं। लालू प्रसाद यादव, जयललिता, इंदिरा गाँधी सभी किन्ही ना किन्ही वजहों से विभिन्न सदनों से अपनी सदस्यता को गँवा चुके हैं। अब इनमें से एक नाम राहुल गाँधी भी हैं, जो पिछले एक दशक से लगातार सार्वजनिक मंचों से गलतबयानी कर रहे थे और इसका खामियाज़ा उन्हें उठाना ही पड़ा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। राजनीति और संस्कृति सम्बन्धी विषयों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)