‘जन की बात’ यूट्यूब चैनल के संपादक प्रदीप भण्डारी द्वारा श्रमिकों से की गयी बातचीत के वीडियो से स्पष्ट होता है कि श्रमिकों/कामगारों को व्यवस्थित तरीके से शहर के विभिन्न हिस्सों में एकत्र करके बसों के जरिए मोहाली रेलवे स्टेशन लाया गया और यहां कोरोना से बचाव संबंधी सावधानियों का पालन करते हुए उन्हें ट्रेन में बैठाया गया। रेलवे के इस व्यवहार से प्रवासी कामगार खुश हैं, इसीलिए वे स्थानीय प्रशासन से वायदा कर रहे हैं कि जैसे ही हालात सामान्य होंगे वे फिर से आएंगे। यह तस्वीर उससे एकदम भिन्न है जिसमें कहा गया कि रेलवे ट्रेनों के संचालन में भेदभाव बरत रहा है और मनमाने ढंग से ट्रेनों का संचालन कर रहा है।
भारत में आपदा के बाद राहत और पुनर्वास कार्यों में तिजोरी भरने के अनगिनत उदाहरण मिल जाएंगे लेकिन आपदा को राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल करने की परंपरा नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद शुरू हुई।
दरअसल प्रधानमंत्री बनते ही नरेंद्र मोदी आम आदमी के दशकों पुराने लंबित मुद्दों के समाधान में जुट गए। इसका नतीजा यह निकला कि विरोधियों को मोदी को घेरने के लिए मुद्दों का अकाल पड़ गया। इसीलिए उन्होंने कोरोना महामारी के दौर में रेलवे की लेट लतीफी को मुद्दा बनाकर प्रधानमंत्री की घेरेबंदी शुरू कर दी।
गौरतलब है कि आजादी के बाद इतने बड़े पैमाने पर विस्थापन पहली बार हुआ। लॉकडाउन के बावजूद करोड़ों लोग महानगरों-नगरों से अपने गांवों-कस्बों के लिए निकल जाएं तो अफरातफरी मचेगी ही। जिस विपक्ष को आपदा की इस घड़ी में सरकार का साथ देना चाहिए था वह विपक्ष विस्थापितों की तकलीफों को बढ़ाने में जुटा था ताकि मोदी सरकार को बदनाम किया जा सके। इसे रेलवे के उदाहरण से समझा जा सकता है।
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लॉकडाउन के दौरान भारतीय रेलवे के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि रेलवे को देश के विभिन्न जिलों को केंद्रित करके बड़े पैमाने पर रेलगाड़ियां चलानी पड़ीं। उदाहरण के लिए ‘जन की बात’ चैनल के संपादक प्रदीप भंडारी द्वारा ग्राउंड जीरो पर जाकर की गयी बातचीत के इस वीडियो में स्पष्ट होता है कि श्रमिक मोहाली, पंजाब से अमेठी, उत्तर प्रदेश के लिए चलाई गई श्रमिक विशेष ट्रेन से अपने जिले में जा रहे हैं।
इस वीडियो से पता चलता है कि श्रमिकों/कामगारों को व्यवस्थित तरीके से शहर के विभिन्न हिस्सों में एकत्र करके बसों के जरिए मोहाली रेलवे स्टेशन लाया गया और यहां कोरोना से बचाव संबंधी सावधानियों का पालन करते हुए ट्रेन में बैठाया गया। रेलवे के इस व्यवहार से प्रवासी कामगार खुश हैं इसीलिए वे स्थानीय प्रशासन से वादा कर रहे हैं कि जैसे ही हालात सामान्य होंगे वे फिर से आएंगे।
यह तस्वीर उससे एकदम भिन्न है जिसमें कहा गया कि रेलवे ट्रेनों के संचालन में भेदभाव बरत रहा है और मनमाने ढंग से ट्रेनों का संचालन कर रहा है। इस आलोचना का विश्लेषण करने पर जो जमीनी हकीकत उभर कर आई वह एकदम अलग है।
1 मई से लेकर 8 जून तक रेलवे ने 4347 श्रमिक विशेष ट्रेनों के जरिए 60 लाख से अधिक लोगों को उनके गंतव्य राज्यों तक पहुंचाया। रेलवे के बहाने प्रधानमंत्री मोदी की घेरेबंदी करने वाले नेताओं ने यह नहीं देखा कि कोरोना महामारी और लॉकडाउन के बीच भारतीय रेलवे ने अपने सामाजिक दायित्व का निर्वहन करते हुए श्रमिक विशेष ट्रेनों से लोगों को उनके घर तक पहुंचाया। ऐसे समय में जब पूरा देश स्टे होम में हो उस दौर में संक्रमण से बचाव की हर सावधानियां अपनाकर कामगारों को उनके घर तक पहुंचाने का कार्य इतना आसान नहीं था।
चूंकि यह आपदा का समय था इसलिए ट्रेनों का संचालन समान्य परिस्थितियों से एकदम अलग ढंग से हुआ। ऐसे में थोड़ी-बहुत अव्यवस्था पैदा होना स्वाभाविक था। फिर अधिकतर ट्रेनों का गंतव्य उत्तर प्रदेश और बिहार था। रेलवे सूत्रों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में ज्यादातर गंतव्य लखनऊ-गोरखपुर सेक्टर के आसपास के थे। बिहार में गंतव्य पटना के आसपास के थे। इन गंतव्यों के लिए ट्रेन की संख्या अत्यधिक बढ़ने के चलते वहां जाने वाले रेल मार्गों पर भीड़भाड़ (कंजेशन) बढ़ गई।
इसके साथ ही, स्टेशनों पर स्वास्थ्य एवं सामाजिक दूरी के विभिन्न नियमों के चलते यात्रियों के ट्रेनों से उतरने में लगने वाला वक्त भी बढ़ा। इसके चलते टर्मिनल पर भीड़ बढ़ी और इससे पटरियों पर दबाव बढ़ गया। इसीलिए कुछ रेलगाड़ियों को उन रूटों पर चलाया गया जो अपेक्षाकृत लंबे थे, जिससे उन्हें गंतव्य स्थान तक पहुंचने में थोड़ी देरी हुई। इसी को लेकर रेलवे संचालन की आलोचना की जाने लगी। लेकिन ‘जन की बात’ का उक्त वीडियो इस तरह की निराधार आलोचनाओं की हकीकत बयान करता है।
दरअसल लॉकडाउन में मोदी सरकार को देश-दुनिया से मिल रहे समर्थन से मोदी विरोधियों के पास मुद्दों का अकाल पैदा हो गया इसलिए वे रेलवे को बहाना बनाकर मोदी की घेरेबंदी करने लगे। इन व्यावहारिक कठिनाइयों की अनदेखी करते हुए कुछ मोदी विरोधी उच्चतम न्यायालय तक पहुंच गए। उच्चतम न्यायालय ने केंद्र व राज्य सरकारें को निर्देश दिया कि सभी प्रवासी मजदूरों को 15 दिनों के भीतर उनके घर भेजें और उनके कौशल के अनुसार रोजगार उपलब्ध कराएं।
इसके बाद रेलवे ने अपने सामाजिक दायित्व का परिचय देते हुए राज्यों को पत्र लिखकर कहा कि वे प्रवासी श्रमिकों को उनके घरों तक पहुंचाने के लिए श्रमिक विेशेष ट्रेनों के लिए मांग पत्र उलब्ध कराएं, रेलवे चौबीस घंटे के भीतर ट्रेन मुहैया करा देगा। इसके बाद आलोचकों की बोलती बंद हो गई।
समग्रत: मात्र छह वर्षों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष को मुद्दाविहीन कर दिया। तिसपर इस कोरोना जैसे संकट काल में भी विपक्ष को सरकार के खिलाफ कोई वाजिब मुद्दा नहीं मिल पा रहा, इसीलिए वे सतही विरोध करके अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने में जुटे हैं।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)