माय गव इंडिया के यूट्यूब चैनल पर पलायन कर रहे लगभग आधा दर्जन मजदूरों का अनुभव सुनने को मिला। इस वक्त जब तन्हाई और अवसाद की काली छाया चारों तरफ कोविड 19 के इस दौर में पसरी है, ऐसे समय में यह अनुभव नई ऊर्जा से भर देने वाला है। जब वायर, क्विंट, एनडीटीवी जैसे मीडिया संस्थान मजदूरों के बीच सिर्फ नफरत की बात कर रहे हैं। निराशा फैला रहे हैं। वहीं माय गव इंडिया का विडियो नई रोशनी दिखाने वाला था।
इस वक्त पूरी दुनिया संकट से गुजर रही है। सब इस संकट के समय एक दूसरे का हाथ थाम रहे हैं और एक दूसरे को लड़खड़ाने से बचा रहे हैं। लेकिन इन सबके बीच ही देश में बायीं तरफ झुका हुआ कांग्रेसोन्मुख मीडिया का एक तबका, जिनके संबंध में राडिया टेप से पहले समाज में अनुमान से बात होती थी। राडिया टेप ने उस बातचीत के बाद कही—सुनी बात पर विश्वसनीयता की मुहर लगा दी। मतलब खुद को चौथा स्तम्भ कहने वाले वर्ग के कुछ प्रमुख चेहरे राजनीतिक गलियारों में पावर ब्रोकर का काम कर रहे थे।
2014 के बाद कांग्रेस इको सिस्टम के वामपंथी पावर ब्रोकर जर्नलिस्ट्स की पावर सीज हुई है। अब उनका ‘ब्रोकर‘ बचा हुआ है। ऐसी स्थिति में चैनलों से बाहर निकाल दिए गए कांग्रेस इको सिस्टम के पत्रकारों ने अपना यू ट्यूब चैनल शुरू कर दिया या प्रोपेगेन्डा वेबसाइट की शुरूआत की या फिर चैनल विशेष के माध्यम से फेक न्यूज फैलाने का काम जारी रखा। अपने प्रोपेगेन्डा खबरों को वैधता दिलाने लिए इन्होंने अपने इको सिस्टम से ही एक व्यक्ति को फैक्ट चेक के काम में लगा दिया। यहां मैं आल्ट न्यूज के प्रतीक सिन्हा की जिक्र कर रहा हूं।
प्रतीक के पिता मुकुल सिन्हा पेशे से वकील थे और खुद को मानवाधिकारवादी कहते थे। गुजरात के अंदर भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और खास तौर से नरेन्द्र मोदी से नफरत करने वाले शीर्ष के दस लोगों में वे शामिल थे।
गुजरात दंगों पर तीस्ता सीतलवार और शबनम हाशमी के साथ भी उनका नाम जुड़ता है। मुकुल सिन्हा पूरी जिन्दगी जिस भारतीय जनता पार्टी से नफरत करते रहे, 2014 में बहुमत से केन्द्र में उसकी सरकार बनते हुए वे नहीं देख पाए। 12 मई 2014 को उनकी मृत्यु हुई।
मुकुल सिन्हा के बेटे प्रतीक भी उनके ही रास्ते पर हैं। उनके पिता जो उनके जीवन आदर्श हैं जिनसे आरएसएस, बीजेपी से नफरत उन्हें विरासत में मिली है। फिर उनके आल्ट न्यूज से निष्पक्षता की उम्मीद भला हम कैसे रख सकते हैं?
इस भूमिका की आवश्यकता यहां इसलिए थी क्योंकि एक दर्शक और पाठक के नाते यह जानने का आपको अधिकार है कि कोरोना के संकट से गुजर रहे देश में मजदूरों के कंधे पर बंदूक रखकर कौन से चैनल और वेबसाइट वाले पत्रकार बायस्ड रिपोर्टिंग कर रहे थे।
जब उन्हें दोनों पक्षों को आपके सामने रखना चाहिए था, वे केवल बदहाली की तस्वीर तलाश रहे थे। अपने रिपोर्टर्स का ऊपर से ही निर्देश दे रहे थे कि सरकार को घेरना है। इस घेरने के दबाव में कई बार रिपोर्टर झूठी खबर भी भेज देता था। जो बाद में फैक्ट चेक में गलत साबित होती थी। उन रिपोर्ट्स को देखते हुए यह साफ हो रहा था कि यह चैनल—वेबसाइट बायस्ड रिपोर्टिंग कर रहे हैं।
http://https://www.youtube.com/watch?v=jyBKJYIUCn4&feature=youtu.be
माय गव इंडिया के यूट्यूब चैनल पर पलायन कर रहे लगभग आधा दर्जन मजदूरों का अनुभव सुनने को मिला। इस वक्त जब तन्हाई और अवसाद की काली छाया चारों तरफ कोविड 19 के इस दौर में पसरी है, ऐसे समय में यह अनुभव नई ऊर्जा से भर देने वाला है। जब वायर, क्विंट, एनडीटीवी जैसे मीडिया संस्थान मजदूरों के बीच सिर्फ नफरत की बात कर रहे हैं। निराशा फैला रहे हैं। वहीं माय गव इंडिया का विडियो नई रोशनी दिखाने वाला था।
मुम्बई से लखनऊ बस से पहुंचे एक श्रमिक वहां बता रहे हैं कि ”यहां पहुंचते ही मुझे निशुल्क भोजन मिला। मास्क और दस्ताने मिले। मुझे बहुत खुशी हुई कि अब मैं अपने घर पहुंच जाऊंगा। मैं बहुत खुश हूं।” ऐसा कहते हुए उनकी खुशी छुप नहीं रही थी। वे काफी प्रसन्न नजर आ रहे थे।
उसी विडियो में रविन्द्र कुमार को सुना। जो लुधियाना में मजदूरी करते थे और वहां से लौटकर, कहते हैं कि सरकार के पहल के कारण ही मैं वापस लौट कर आ पाया हूं। यहां निशुल्क स्वास्थ्य परीक्षण हुआ। 1000 रुपए की राशि मिली। और भोजन के साथ राशन सामग्री पाकर मैं बहुत खुश हूं।
ऐसा कुछ अनुभव अजय कुमार मौर्या का भी है। वे मुम्बई कुर्ला से लखनऊ लौटकर आए हैं। उनका कहना है कि वे महाराष्ट्र में फंस गए थे। उप्र सरकार ने उन्हें मुसीबत से निकाला। रास्ते में उनके खाने—पीने का उचित प्रबंध किया। मौर्या अपनी सरकार के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं।
यह सच है कि पत्रकार को विपक्ष की भूमिका निभानी चाहिए। सरकार को उसकी कमियां गिनानी चाहिए। लेकिन विपक्ष होने के लिए विपक्ष की भूमिका नहीं निभानी चाहिए। यदि एक चैनल, अखबार या वेबसाइट सिर्फ सरकार की आलोचना ही करता हुआ बैठेगा तो उसके पाठक—दर्शक की नजर में उसकी विश्वसनीयता संदिग्ध होगी।
निष्पक्षता का अर्थ पूर्वाग्रह से भरी हुई रिपोर्टिंग नहीं होती है। निष्पक्षता का अर्थ होता है कि विपक्ष के बयानों के साथ—साथ सरकार के पक्ष से भी जनता को अवगत कराना। बहरहाल लगता तो ऐसा ही है कि कोविड 19 के संकट के दौरान कांग्रेस इको सिस्टम के वामपंथी रुझान वाले खबरिया चैनल—अखबार—यूट्यूब चैनल और वेबसाइट अपना यह धर्म भूल गए थे।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। लेख में प्रस्तुत विचार पूरी तरह से उनके निजी विचार हैं।)