योग : शारीरिक-मानसिक कष्टों को दूर कर नव ऊर्जा का संचार करने वाली भारतीय जीवन-पद्धति

योग एक प्राचीन भारतीय जीवन-पद्धति है, जिसकी मदद से शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने का काम किया जाता है। शरीर, मन और मस्तिष्क को पूर्ण रूप से स्वस्थ रखने में भी यह सहायक है। योग के माध्यम से न सिर्फ शारीरिक बीमारियों को दूर किया जा सकता है, बल्कि  मानसिक तकलीफों का भी निदान किया जा सकता है। योग शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाकर जीवन में नव-ऊर्जा का संचार करता है। यह विचारों पर संयम रखने का भी साधन है। साथ ही, योग आसन और मुद्राएं तन एवं मन दोनों को क्रियाशील बनाये रखती हैं।

बीते सालों में योग की सार्थकता और लोकप्रियता बढ़ी है, जिसका श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, योग गुरु बाबा रामदेव और श्री श्री रविशंकर को दिया जा सकता है। प्रधानमंत्री की पहल से ही  “अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस” मनाया जाने लगा है। हर साल 21 जून को यह दिवस मनाया जाता है। 21 जून साल का सबसे लंबा दिन होता है और योग भी लंबी आयु के लिये जरूरी है। योग  और 21 जून के बीच यह समानता अद्भूत है।

सबसे पहले इस दिवस को वर्ष 2015 में मनाया गया था।  भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 सितम्बर, 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए योग दिवस मनाने का प्रस्ताव विश्व बिरादरी के समक्ष रखा था। कालांतर में 11 दिसम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र में 193 सदस्यों ने 21 जून को “अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस” मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी।

भले ही “अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस” का आगाज 21 जून 2015 को किया गया, लेकिन भारत में इसका इतिहास असंख्य वर्षों पुराना माना जाता है। योग का जिक्र ऋग्वेद में भी है। सिंधु घाटी सभ्यता के समय के मिले पशुपति की मुहर (सिक्का) में भी योग की मुद्रा में विराजमान आकृति पायी गयी है। उपनिषद में भी शारारिक अभ्यासों का उल्लेख मिलता है। योग के मौजूदा स्वरूप का वर्णन कठोपनिषद में भी मिलता है। भगवद गीता के साथ-साथ महाभारत के शांतिपर्व में भी योग का विस्तृत उल्लेख है।

महर्षि पतंजलि

महर्षि पंतजलि को योग का पिता माना गया है। महर्षि पतंजली योगदर्शन को सार्वभौम एवं  भारतीय संस्कृति का मूलमंत्र मानते थे। उनके द्वारा लिखे योग सूत्र को योग का सार माना गया है। इन सूत्रों में योग की उत्पत्ति एवं उद्देश्य अंतर्निहित हैं। योग को 3 भागों, पहला, ज्ञान योग या दर्शनशास्त्र, दूसरा, भक्ति योग या भक्ति आनंद का पथ और तीसरा कर्म योग या सुखमय कर्म पथ में बांटा गया है। संस्कृत धातु ‘युज’ से योग शब्द की उत्पत्ति हुई है, जिसका अर्थ है, आत्मा का परमात्मा में मिलन। वैसे, आमजन के लिये यह शारीरिक व्यायाम का ही पर्याय है, जबकि वास्तविकता में यह व्यायाम के साथ-साथ भावनात्मक व आध्यात्मिक समेकन का प्रतीक है।

योग एक प्राचीन भारतीय जीवन-पद्धति है, जिसकी मदद से शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने का काम किया जाता है। शरीर, मन और मस्तिष्क को पूर्ण रूप से स्वस्थ रखने में भी यह सहायक है। योग के माध्यम से न सिर्फ शारीरिक बीमारियों को दूर किया जा सकता है, बल्कि  मानसिक तकलीफों का भी निदान किया जा सकता है। योग शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाकर जीवन में नव-ऊर्जा का संचार करता है। यह विचारों पर संयम रखने का भी साधन है। साथ ही, योग आसन और मुद्राएं तन एवं मन दोनों को क्रियाशील बनाये रखती हैं।     

योग – एक प्राचीन भारतीय जीवन-पद्धति

देखा जाये तो जब से “अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस” मनाया जाने लगा है, तब से योग की लोकप्रियता में तेजी से इजाफा हो रहा है। इसका एक महत्वपूर्ण कारण इससे होने वाले फायदे भी हैं। आज की तारीख में इंसान स्वार्थ, क्रोध, ईर्ष्या, घृणा आदि मानवीय विकारों से ग्रसित है, लेकिन इनपर योग की मदद से काबू पाया जा सकता है और लोग योग के जरिये ऐसा करने में सफल भी हो रहे हैं। जीवन में नियमित आसन और प्राणायाम शरीर एवं मन को निरोगी बनाते हैं। योग नियमों के पालन से हमारा जीवन अनुशासित हो जाता है।

आज योग से बच्चे, जवान और बूढ़े सभी लाभान्वित हो रहे हैं। कुछ लोग तो इसके आध्यात्मिक पक्ष को अपने जीवन में उतार कर सम्पूर्ण जीवन का आनंद ले रहे हैं। कहा जा सकता है कि लोग इससे जिस तरह से लोग लाभान्वित हो रहे हैं, उससे लगता है कि इसकी लोकप्रियता का परचम जल्द ही पूरे विश्व में लहरायेगा।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र, मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में मुख्य प्रबंधक हैं। स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)