पिछली सरकार महापुरुषों की जयंती पर अवकाश घोषित करने पर विश्वास करती थी। यह चुनावी समीकरण साधने का एक तरीका भी हो गया था। जबकि योगी आदित्यनाथ ने इस नीति को बदल दिया है। उनका मानना है कि महापुरुषों की जयंती उनसे प्रेरणा लेने का अवसर होना चाहिए। इस दिन शिक्षण संस्थानों में संबंधित महापुरुष के व्यक्तित्व और कृतित्व पर गोष्ठी होनी चाहिए। विद्यार्थियों को अपने महापुरुषों के विषय में पूरी जानकारी होनी चाहिए।
शिक्षण संस्थानों के सुधार में प्राचार्य और कुलपति की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। सभी परिस्थितियां समान होने के बावजूद इन पदों पर तैनात व्यक्ति अलग अलग परिणाम देते हैं। कई बार पर्याप्त संसाधन नहीं होते, फिर भी प्राचार्य या कुलपति बेहतर परिणाम देते हैं। ऐसा वह अपनी इच्छाशक्ति और प्रबंधन क्षमता से कर दिखाते हैं। इसमें पहला तथ्य अनुशासन का होता है। एक बार अनुशासन दुरुस्त हो जाता है, तब अन्य शैक्षणिक कार्य सुगमता से आगे बढ़ते जाते हैं। तब ऐसा माहौल बनता है, जिसमें शिक्षक अधिक रुचि के साथ अध्यापन कार्य करते है। तब प्रत्येक स्तर पर संवाद का माहौल स्थापित होता है। शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के पहले चरण में यह कार्य किया जा सकता है।
दशकों बाद उत्तर प्रदेश के किसी मुख्यमंत्री ने सुधार की ऐसी बातों की ओर ध्यान दिया है। पिछली सरकारों में मुख्यमंत्री या उच्च शिक्षा मंत्री ऐसा कोई सन्देश नहीं देते थे। योगी आदित्यनाथ की सरकार संबंधित जिम्मेदारियों के प्रति सजग है। किंतु इसमें प्राचार्य और कुलपति को भी अपनी जिम्मेदारियों का गंभीरता से निर्वाह करना होगा। इसी उद्देश्य से योगी आदित्यनाथ ने केंद्रीय, राज्य और निजी विश्वविद्यालयों को पत्र लिखा है। इसमें शैक्षणिक सुधार के सार्थक निर्देश दिए गए हैं।
इसमें सर्वप्रथम अनुशासन के मद्देनजर कई महत्वपूर्ण बिंदुओं का उल्लेख है। विद्यार्थियों को दुष्प्रचार से सावधान करना होगा। अराजक तत्वों को परिसर से दूर रखने के इंतजाम करने होंगे। छात्राओं से अभद्रता को रोकने के लिए सख्त रुख दिखाना चाहिए। सीसीटीवी कैमरे लगने चाहिए। सरकार ने एन्टी रोमियो स्कॉयड का भी गठन किया है। प्रिंसिपल और कुलपतियों को इनकी सहायता से भी अराजक तत्वों पर नियंत्रण रखना चाहिए। मामूली बातों पर धरना प्रदर्शन की प्रवृत्ति भी रोकनी चाहिए। अनुशासन के क्रम में ही बाहरी लोगों का परिसर में प्रवेश नियंत्रित होना चाहिए। रैगिंग रोकने के लिए सख्त कदम उठाने होंगे। इन बिन्दुओं का योगी के पत्र में उल्लेख किया गया है।
इसके अलावा योगी के पत्र में अनुशासन और उपयुक्त माहौल के साथ ही पठन-पाठन पर भी जोर दिया गया। इस क्रम में उन्होने विद्यार्थियों की कक्षाओं में उपस्थिति और नियमित अध्यापन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया। पिछली सरकार के मुकाबले एक बड़ा अंतर महापुरुषों के नाम पर छुट्टियों को लेकर है। पिछली सरकार महापुरुषों की जयंती पर अवकाश घोषित करने पर विश्वास करती थी। यह चुनावी समीकरण साधने का एक तरीका भी हो गया था, जबकि योगी आदित्यनाथ ने इस नीति को बदल दिया है। उनका मानना है कि महापुरुषों की जयंती उनसे प्रेरणा लेने का अवसर होना चाहिए। इस दिन शिक्षण संस्थानों में संबंधित महापुरुष के व्यक्तित्व और कृतित्व पर गोष्ठी होनी चाहिए। विद्यार्थियों को अपने महापुरुषों के विषय में पूरी जानकारी होनी चाहिए।
इसके अलावा एकता-अखण्डता की भावना मजबूत करने और नैतिकता को बढ़ाने वाले कार्यक्रम भी होने चाहिए। शिक्षा में तकनीक के प्रयोग को भी बढ़ावा देना चाहिए। विद्यार्थियों में समाज के प्रति उत्तरदायित्व की भावना विकसित करने वाले कार्यक्रम भी होने चाहिए। जाहिर है कि योगी के इन निर्देशों के क्रियान्वयन में अतिरिक्त संसाधनों की जरूरत नहीं है, लेकिन ठीक ढंग से लागू होने पर इनका बेहद सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इनको लागू करने के लिए प्राचार्य और कुलपति की ठोस इच्छाशक्ति की ही आवश्यकता है।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)