प्रयागराज नाम से भारतीय चिंतन का शाश्वत भाव जागृत होता है। योगी सरकार ने पहले ही प्रयागराज मेला प्राधिकरण का गठन करने की सिद्धांत रूप में मंजूरी दे दी थी। जहां दो नदियों का संगम होता है, उसे प्रयाग कहा जाता है। उत्तराखंड में भी ऐसे कर्णप्रयाग और रुद्रप्रयाग जैसे पांच प्रयाग स्थित है। हिमालय से निकलने वाली देवतुल्य दो नदियों का संगम इलाहाबाद में होता है और यह तीर्थों का राजा है। ऐसे में इलाहाबाद का नाम पुनः प्रयागराज किया जाना सर्वथा उचित है। निश्चित ही अकबर ने दुर्भावना के चलते प्रयागराज का नाम बदला था। योगी आदित्यनाथ ने इसे सुधारा है।
कुंभ का आयोजन ग्रह नक्षत्रों के संयोग से होता है। प्रयाग कुंभ के इतिहास में नया संयोग जुड़ा। वह यह कि इस समय उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री हैं। उन्होंने उत्तर प्रदेश ही नहीं, विश्व में रहने वाले हिंदुओं की आस्था का ध्यान रखा। भारत में अनेक स्थानों के पुराने नाम बहाल करने के लिए आंदोलन या अभियान चलाने पड़े। बंबई को मुम्बई नाम दिलाने का अभियान राम नाईक ने शुरू किया था। अंततः यह नाम मिला।
प्रयागराज नाम के सुझाव तो दिए गए, लेकिन कोई बड़ा अभियान नहीं चला। वही शासक अच्छा होता है, जो सहज ही जनभावना को समझ ले, उसी के अनुरूप निर्णय कर ले। योगी आदित्यनाथ ने यह कर दिखाया। चार सौ चवालीस वर्ष बाद इलाहाबाद को प्रयागराज नाम वापस मिला। कुछ महीने बाद अब प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन होगा।
इलाहाबाद मात्र एक नाम था, जबकि प्रयाग भारतीय आस्था से जुड़ा ऐसा संबोधन है, जिसे चार शताब्दियों बाद भी प्रचलन से बाहर नहीं किया जा सका था। जबकि इस अवधि में मुगलों व अंग्रेजों का शासन रहा। लेकिन प्रयाग अपनी जगह पर रहा। धार्मिक अनुष्ठानों में इलाहाबाद का कभी उल्लेख नहीं किया गया। इसमें प्रयाग के ही अस्तित्व को स्वीकार किया जाता था। उसे प्रणाम किया जाता था। गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम की जब बात होती थी, तब इलाहाबाद का नहीं, प्रयाग का ही नाम लिया जाता था।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस नगर का प्राचीन नाम प्रयाग है। चार वेदों की प्राप्ति के पश्चात् ब्रह्मा जी ने यहीं पर यज्ञ किया था, इसीलिए सृष्टि की प्रथम यज्ञ स्थली होने के कारण इसे प्रयाग कहा गया। प्रयाग का अर्थ प्रथम यज्ञ होता है। अब उत्तर प्रदेश की योगी कैबिनेट ने इलाहाबाद शहर का नाम बदलकर प्रयागराज करने के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी। गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती की वजह से इसे ऐतिहासिक रूप से तीर्थराज प्रयाग भी कहते हैं। पुराण, बाल्मीकि रामायण, रामचरित मानस जैसे सैकड़ों ग्रंथों में भी प्रयागराज की चर्चा हैं।
संगम के ही जल से देश के राजाओं का अभिषेक होता था। पूरे देश के लोग संगम स्नान के लिए आते थे। प्रयागराज राष्ट्रीय एकता को सुनिश्चित करने का स्थल भी था। हो सकता है कि अकबर इसीलिए यहां के महत्व को कम करना चाहता हो, अन्यथा विश्व प्रसिद्ध प्रयागराज के नाम परिवर्तन का कोई औचित्य नहीं था।
मुगल बादशाह अकबर ने 1574 में प्रयागराज का नाम बदलकर अल्लाहाबाद कर दिया था। कालांतर में ये नाम इलाहाबाद हो गया। अकबर को मुगल साम्राज्य का सबसे उदारवादी बादशाह माना जाता है। लेकिन प्रयाग नाम मे बदलाव करके उसने अपनी सीमित सोच का ही परिचय दिया था।
इसमें कोई संदेह नहीं कि योगी सरकार का यह निर्णय जनभावना और आस्था के अनुकूल है। उन्होंने जनता से किया गया अपना वादा पूरा किया। महाकुंभ के लोगो में प्रयाग नाम देकर उन्होंने अपनी मंशा प्रकट कर दी थी। विश्व के सभी देशों में धार्मिक महत्व के नगरों को विशेष महत्व दिया जाता है। वहाँ के नाम से संबंधित लोगों का लगाव होता है।
प्रयागराज नाम से भारतीय चिंतन का शाश्वत भाव जागृत होता है। योगी सरकार ने पहले ही प्रयागराज मेला प्राधिकरण का गठन करने की सिद्धांत रूप में मंजूरी दे दी थी। जहां दो नदियों का संगम होता है, उसे प्रयाग कहा जाता है। उत्तराखंड में भी ऐसे कर्णप्रयाग और रुद्रप्रयाग जैसे पांच प्रयाग स्थित है। हिमालय से निकलने वाली देवतुल्य दो नदियों का संगम इलाहाबाद में होता है और यह तीर्थों का राजा है। ऐसे में इलाहाबाद का नाम पुनः प्रयागराज किया जाना सर्वथा उचित है। निश्चित ही अकबर ने दुर्भावना के चलते प्रयागराज का नाम बदला था। योगी आदित्यनाथ ने इसे सुधारा है।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)