योगी आदित्यनाथ ने कहीं भाषण नहीं दिया, पत्रकारों के प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया, कोई बयान जारी नहीं किया। लेकिन बिना शब्दों के एक बड़ा सन्देश गूंज गया। यह उनकी आस्था से संबंधित था। संवाद के लिए शब्दों की आवश्यकता होती है। लेकिन यह एकमात्र माध्यम नहीं है। अक्सर मौन रहकर भी बड़े सन्देश दिए जा सकते हैं। योगी ने ये सिद्ध किया।
योगी आदित्यनाथ ने चुनाव आयोग द्वारा लगाए गए प्रतिबन्ध का सम्मान किया। उन्होंने इसे एक अवसर के रूप में लिया। आयोग के आदेशानुसार वह बहत्तर घण्टे तक चुनाव प्रचार नहीं कर सकते थे। योगी आदित्यनाथ संत हैं, गोरखधाम के पीठाधीश्वर हैं, इसी के अनुकूल उन्होंने प्रतिबन्ध काल में आचरण किया। संकटमोचन मंदिर में दर्शन के साथ स्पर्श बालिका विद्यालय जाकर दृष्टिबाधित बालिकाओं से मुलाकात की। उसके बाद वह अयोध्या यात्रा पर गए।
वह सवा चार घंटे अयोध्या में रहे। दलित राजगीर महावीर के यहां भोजन किया। यह सुंदर संयोग था कि राजगीर महावीर को प्रधानमंत्री आवास योजना से आवास मिला है। योगी इसी आवास में गए थे। अशर्फीभवन पीठाधीश्वर जगद्गुरु श्रीधराचार्य से भेंट के बाद मुख्यमंत्री मणिरामदासजी की छावनी पहुंचे।
यहां रामजन्मभूमि अध्यक्ष महंत नृत्यगोपालदास से मुलाकात की। छावनी के उत्तराधिकारी महंत कमलनयनदास, रामवल्लभाकुंज के राजकुमारदास, नाका हनुमानगढ़ी के महंत रामदास, निर्वाणी अखाड़ा के श्रीमहंत धर्मदास, दिगंबर अखाड़ा के महंत सुरेशदास, तिवारी मंदिर के महंत गिरीशपति त्रिपाठी, संत समिति के अध्यक्ष महंत कन्हैयादास, मानसभवन के महंत अर्जुनदास आदि संत-महंत उपस्थित थे।
इसके बाद योगी आदित्यनाथ दिगंबर अखाड़ा पहुंचे। वह सुग्रीवकिला और हनुमानगढ़ी भी गए। यहां उनके साथ कई शीर्ष संतों सहित राममंदिर निर्माण के लिए अभियान चलाने वाले बब्लू खान एवं कई अन्य मुस्लिमों ने हनुमानचालीसा का पाठ किया। योगी आदित्यनाथ ने रामलला के दर्शन और सरयू का पूजन भी किया। योगी आदित्यनाथ शक्तिपीठ देवी पाटन मंदिर में भी पूजा अर्चना के लिए गए।
प्रतिबन्ध अवधि का अंतिम पड़ाव काशी था। योगी आदित्यनाथ ने यहां भी प्रसिद्ध संकटमोचन मंदिर में दर्शन पूजन किया। प्रभु श्री कृष्ण के वंशजों से संबंधित गढ़वा घाट आश्रम गए। वहां स्वामी शरणानन्द सहित अनेक संतों से उन्होंने भेंट की। योगी आदित्यनाथ काशी जाए, और वहां हर हर महादेव व जय श्रीराम का लोगों द्वारा उद्घोष न हो, ऐसा हो नहीं सकता। यही हुआ, योगी स्वयं मौन रहे लेकिन वहां एकत्र लोग पूरे उत्साह में थे।
संकटमोचन मंदिर के महंत विशंभर नाथ मिश्र ने योगी आदित्यनाथ का मंदिर परिसर में स्वागत किया। गढ़वा घाट आश्रम में योगी ने गौशाला के गायों को गुड़ एवं केला खिलाया। इससे भी उनकी आस्था की अभिव्यक्त हुई। थी। गोरखधाम पीठ में भी योगी गौसेवा करते हैं। इस प्रकार योगी ने बहत्तर घण्टो में अपनी आस्था व संत परम्परा के अनुरूप आचरण किया।
योगी ने कहीं भाषण नहीं दिया, पत्रकारों के प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया, कोई बयान जारी नहीं किया। लेकिन बिना शब्दों के एक बड़ा सन्देश गूंज गया। यह उनकी आस्था से संबंधित था। संवाद के लिए शब्दों की आवश्यकता होती है। लेकिन यह एकमात्र माध्यम नहीं है। अक्सर मौन रहकर भी बड़े सन्देश दिए जा सकते हैं। अथवा वह मौन भी लोगों को प्रभावित करने वाला हो सकता है। भारत में प्राचीन काल में ही मौन की महिमा का प्रतिपादन हो चुका था। अनगिनत ऋषियों ने अपनी दिनचर्या में मौन को सम्मिलित किया था। व्रत या उपवास केवल आहार से संबंधित नहीं होता। मौन रहना भी व्रत की श्रेणी में है।
चुनाव आयोग का आदेश मिलने के बाद वह हनुमान जी के मंदिर गए। चुनाव आयोग को भेजे गए अपने स्पष्टीकरण में बताया कि बजरंगबली जी के प्रति उनकी सम्पूर्ण आस्था है। कोई भी कार्य शुरू करने से पहले वह अपने आराध्य का स्मरण करते हैं। जाहिर है, योगी आदित्यनाथ ने चुनाव आयोग के आदेश का पालन किया। इसी के साथ उन्होंने बिना कुछ कहे अपनी आस्था का सन्देश भी दिया।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)