भीड़ को उकसाकर कानून हाथ में लेने और उसके बाद अपनी राजनीति चमकाने की रस्म बहुत पुरानी है। देश में ऐसे हजारों असामाजिक तत्व हैं जिन्होंने हिंसक विरोध प्रदर्शनों और सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाकर नेता की पदवी हासिल की है। ऐसे नेताओं के लिए उत्तर प्रदेश में योगी सरकार द्वारा शुरू की गई दंगाइयों से वसूली की मुहिम किसी दु:स्वप्न से कम नहीं है।
एक ओर योगी सरकार उत्तर प्रदेश में दंगाइयों पर काबू पाने और कानून का राज स्थापित करने में जुटी है तो दूसरी ओर कांग्रेस नेत्री प्रियंका गांधी दंगाइयों का समर्थन कर वोट बैंक की राजनीति कर रही हैं। समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता राम गोविंद चौधरी ने तो मुस्लिमपरस्ती की अति करते हुए नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन करने वालों को पेंशन देने के चुनावी वादे का एलान कर दिया है।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तो खुलेआम बांग्लादेशी मुसलमानों और रोहिंग्याओं को बसाने की वकालत कर रही हैं। इसी तरह बहुत से नेता मुस्लिम विरोधी छवि से बचने के लिए नागरिकता संशोधन अधिनियम का विरोध कर रहे हैं। यही कारण है कि इस अधिनियम की असलियत आम लोगों तक नहीं पहुंच पा रही है।
अब तक हिंसक आंदोलनों से जितना भी नुकसान होता था उसकी भरपाई सरकारें करती थीं लेकिन नागरिकता संशोधन अधिनियम पर उत्तर प्रदेश में हुए हिंसक विरोध प्रदर्शनों और सार्वजनिक-निजी संपत्ति की तोड़फोड़ पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जो रवैया अपनाया है उससे न सिर्फ हिंसक प्रदर्शन थम गए बल्कि भविष्य के हिंसक प्रदर्शनों के लिए नया मानक स्थापित हो गया।
असामाजिक तत्व कानून को हाथ मे लेकर लूटपाट और आगजनी करते रहे हैं और देश में ऐसे नेताओं की लंबी फेहरिश्त है जिन्होंने ऐसे हिंसक प्रदर्शनों और सरकारी संपत्ति नष्ट करने वाले आंदोलनों के जरिए अपनी राजनीतिक जमीन बनाई है। वोट बैंक हासिल करने के लिए बलात्कारियों को सिलाई मशीन तक देने के उदाहरण इस देश में रहे हैं।
उत्तर प्रदेश विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष और समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता राम गोविंद चौधरी ने नागरिकता संशोधन अधिनियम का विरोध करने वालों को स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा देते हुए प्रदर्शनकारियों को पेंशन देने का वादा किया है।
मुस्लिम परस्त नीतियों के विपरीत उत्तर प्रदेश में पहली बार कोई सरकार सीसी टीवी, ड्रोन और फेस डिटेक्शन तकनीक के इस्तेमाल से दंगाइयों की पहचान और नुकसान की भरपाई कर रही है। यदि कोई नुकसान की भरपाई नहीं करेगा तब उसकी संपत्ति को जब्त करके उसकी नीलामी कराई जाएगी। मुख्यमंत्री ने जिलेवार कमेटी बनाकर फोटो और वीडियो फुटेज के माध्यम से सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों की पहचान करके नोटिस भेजने का निर्देश दिया।
यह एक अनूठी पहल है जिसके दूरगामी सकारात्मक नतीजे निकलेंगे। योगी सरकार 2010 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश के आधार पर नोटिस भेज रही है जिसके अनुसार विरोध प्रदर्शनों या दंगों के दौरान नष्ट की गई सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की भरपाई के लिए राज्य सरकार दोषियों से वसूली करेगी। उच्च न्यायालय के आदेश में कहा गया है कि स्थानीय निकाय, सार्वजनिक निगम और संपत्ति के मालिक राजनीतिक दलों, व्यक्तियों और संगठनों से नुकसान की भरपाई की वसूली का दावा करेंगे।
इसी तरह का आदेश सर्वोच्च न्यायालय ने भी 16 अप्रैल, 2009 को डिस्ट्रक्शन ऑफ पब्लिक एंड प्राइवेट प्रॉपर्टीज बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में दिया है। इस मामले में गाइडलाइन जारी करते सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि यदि कोई व्यक्ति किसी हड़ताल, बंद या विरोध प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक या निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाता है तो उस नुकसान की भरपाई उस व्यक्ति या संगठन से की जाएगी, जिसने संपत्ति को नुकसान पहुंचाया है।
योगी सरकार की सख्ती को देखते हुए बुलंदशहर के कुछ सभासदों ने प्रशासन से नोटिस न भेजने का आग्रह करते हुए स्वयं ही सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की भरपाई के लिए 6,27,507 का डिमांड ड्राफ्ट प्रशासन को सौंप दिया। उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों में दोषियों से नुकसान की भरपाई करने की कार्रवाई प्रगति पर है।
उत्तर प्रदेश सरकार की इस मुहिम को मिली कामयाबी से उत्साहित भारतीय रेलवे ने भी नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध में हुए हिंसक प्रदर्शनों के दौरान रेलवे को हुए नुकसान की भरपाई दंगाइयों से करने की प्रक्रिया शुरू करने जा रही है। इसी तरह दिल्ली पुलिस भी प्रदर्शनकारियों पर शिकंजा कस रही है। समग्रत: योगी सरकार ने हिंसक विरोध प्रदर्शनों और सार्वजनिक-निजी संपत्ति की तोड़फोड़ करने वालों पर जो सख्ती दिखाई है उससे न सिर्फ अराजकता पर विराम लगा बल्कि देश भर में हिंसक प्रदर्शनों को रोकने के लिए एक नया मानक स्थापित हो गया।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)