यूपी के सुशासन के कारण अन्य प्रदेशों में भी बढ़ रही योगी की लोकप्रियता !

योगी आदित्यनाथ अलग मिसाल बना रहे हैं। कुछ महीनों में ही उन्होने दिखा दिया कि वह उत्तर प्रदेश में भ्र्ष्टाचार मुक्त और विकास पर आधारित शासन की स्थापना करने के प्रति कृत-संकल्पित हैं। इसमें ‘सबका साथ सबका विकास’ की भावना समाहित है। योगी की यह छवि अब राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित हो रही है। इसीलिए जब वह किसी अन्य प्रदेश में चुनाव प्रचार के लिए जाते हैं, तो उसका प्रभाव अधिक होता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विषय मे कहा जाता है कि वह धुंआधार चुनाव प्रचार के बावजूद सरकारी कार्य को पेंडिंग नहीं रखते। वह इसके लिए भी प्रचार के दौरान ही समय निकाल लेते हैं। यह बात योगी आदित्यनाथ पर भी लागू होती है।

पिछले कुछ समय से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की गुजरात, मुम्बई और नोएडा की यात्राएं चर्चित रहीं। गुजरात में वह चुनाव के सिलसिले में गए थे। गुजरात के जनमानस ने उनके प्रति बहुत उत्साह दिखाया। मुम्बई वह निवेश हेतु आयोजित  समिट में शामिल हुए थे। यहां देश के शीर्ष उद्योगपतियों से उनकी सार्थक वार्ता हुई। अब नोएडा की यात्रा मील के पत्थर की भांति दर्ज होगी। योगी ने नोएडा को लेकर दशकों से जारी पूर्व मुख्यमंत्रियों के अंधविश्वास को तोड़ा है।

दशकों से ऐसा माना जाता था कि नोएडा आने वाले मुख्यमंत्री की सत्ता में वापसी नहीं होती। इस अवधि में जितने भी मुख्यमंत्री हुए, वह सभी गृहस्थ थे। योगी आदित्यनाथ सन्यासी हैं। ऐसे में, उनका चिंतन और आचरण अन्य लोगों से अलग होना भी चाहिए था। परन्तु, उन्होंने अन्धविश्वास को तोड़ते हुए नोएडा यात्रा की है।

पिछले मुख्यमंत्री नोयडा को लेकर अंधविश्वास में जकड़े रहे। कहीं न कहीं यह सत्ता के प्रति उनका मोह था। योगी पहले भी कह चुके हैं कि वह मात्र जनसेवा के लिए राजनीति में हैं। इस भूमिका के बाद भी वह सन्यासी हैं। गोरक्षा पीठ ही उनके जीवन का अंतिम लक्ष्य है। वह अपने कर्तव्य पथ पर चल रहे हैं। नोयडा भी एक पड़ाव है। यहां की यात्रा से परहेज नहीं किया जा सकता। जिन मुख्यमंत्रियों ने अंधविश्वास में नोयडा न आने का निर्णय लिया था, उन्हें भी सत्ता से हटना पड़ा था। योगी के इस निर्णय से उनका आध्यात्मिक आत्मबल और अन्धविश्वास का विरोध झलकता है।

योगी आदित्यनाथ

इसके अलावा विगत दिनों संपन्न हुई योगी की मुंबई यात्रा उत्तर प्रदेश के औद्योगिकरण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित होगी। यहां उन्होने उद्योग  जगत की हस्तियों को बताया कि उत्तर प्रदेश में केवल सत्ता ही नहीं बदली है, बल्कि व्यवस्था भी बदल रही है। ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ निवेश के अनुकूल माहौल बनाया जा रहा। है।  योगी के इस विचार पर उद्योग जगत ने  सकारात्मक प्रतिक्रिया दिखाई  है। इसी प्रकार योगी की गुजरात यात्रा से दोहरा लाभ हुआ है। योगी के रोडशो और जनसभा अनुमान से  ज्यादा सफल रहे। भाजपा व्यक्ति या परिवार नहीं, कैडर और विचारधारा आधारित पार्टी है। इसमें मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री तक पहले पार्टी के कार्यकर्ता होते है। 

दूसरी बात यह कि भाजपा राष्ट्रीय स्तर की आज सबसे बड़ी पार्टी है। इसलिए उसे सभी प्रदेशों के चुनाव गम्भीरता से लड़ने होते हैं। सभी जगह कार्यकर्ता के रूप में मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री को भी चुनाव प्रचार में सहयोग के लिए भेजा जाता है। यह पार्टी की कोई नई परम्परा नहीं है। ऐसा हमेशा होता रहा है। अंतर यह है कि पहले जब भाजपा की सरकार नहीं होती थी, तब इन नेताओं या कार्यकर्ताओं को मीडिया में इतनी सुर्खिया नहीं मिलती थीं। आज इनमें से अनेक लोग केंद्र में मंत्री हैं, विभिन्न प्रदेशों के मुख्यमंत्री हैं, तो चर्चा अधिक होती है।

कहा जा रहा कि भाजपा ने इतने लोंगों को चुनाव में उतार दिया। जबकि कैडर आधारित पार्टी में यह स्वभाविक व्यवस्था होती है। यह भी सच है कि कुछ नेताओं की लोकप्रियता अधिक होती है। मतदाताओं को अपनी बात वह ज्यादा बेहतर ढंग से समझा सकते हैं। इसी आधार पर उनकी चुनाव में उपयोगिता बढ़ जाती है। जो लोग केंद्र या प्रदेश की सत्ता में होते हैं, उनके क्रिया-कलापों का भी प्रभाव चुनाव प्रचार में पड़ता है। जैसे कोई मुख्यमंत्री अपने प्रदेश में सुशासन की स्थापना कर रहा हो, तो उसका चुनाव प्रचार स्वभाविक रूप से प्रभावशाली हो जाता है।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में मुलायम सिंह यादव , मायावती, अखिलेश यादव ने भी अपनी पार्टी के लिए अन्य प्रदेशों में धुंआधार प्रचार किया था। लेकिन, इन्हें अन्य राज्यों तक पांव पसारने में सफलता नहीं मिली। इसका कारण था कि ये लोग सुशासन के प्रति विश्वसनीयता नहीं दिखा सके थे।

योगी आदित्यनाथ अलग मिसाल बना रहे हैं। कुछ महीनों में ही उन्होने दिखा दिया कि वह उत्तर प्रदेश में भ्र्ष्टाचार मुक्त और विकास पर आधारित शासन की स्थापना करने के प्रति कृत-संकल्पित हैं। इसमें ‘सबका साथ सबका विकास’ की भावना समाहित है। योगी की यह छवि अब राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित हो रही है। इसीलिए जब वह किसी अन्य प्रदेश में चुनाव प्रचार के लिए जाते हैं, तो उसका प्रभाव अधिक होता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विषय मे कहा जाता है कि वह धुंआधार चुनाव प्रचार के बावजूद सरकारी कार्य को पेंडिंग नहीं रखते। वह इसके लिए भी प्रचार के दौरान ही समय निकाल लेते हैं। यह बात योगी आदित्यनाथ पर भी लागू होती है।  

विभिन राज्यों में वह स्टार प्रचारक के रूप में शामिल किए जाते हैं। इसके बावजूद मुख्यमंत्री पद के सरकारी दायित्व का भी निर्वाह करते चलते हैं। वह दूसरे प्रदेशों में निवेशकों से भी मुलाकात का समय निकाल लेते हैं। उन्हें उत्तर प्रदेश में निवेश का आमंत्रण देते हैं। गुजरात चुनाव में अत्यधिक व्यस्तता के बाद भी योगी उत्तर प्रदेश के प्रति अपनी जिम्मेदारी को भी निभाते रहे। इसी अवधि में उनके निर्देशन में सरकार ने अनेक महत्वपूर्ण निर्णय लिए, जिनसे सुशासन और विकास  की यात्रा आगे बढ़ेगी।

जाहिर है कि योगी आदित्यनाथ ने चुनाव प्रचार में अपनी दोहरी भूमिकाओं का बखूबी निर्वाह किया। मुख्यमंत्री के रूप में उन्होने विकास, ईमानदारी, सुशासन के प्रति प्रदेश की जनता को विश्वास दिलाया। पार्टी नेता के रूप में कांग्रेस के हमलों का माकूल जवाब दिया। इस दौरान मंदिर, रामसेतु, अयोध्या में राममंदिर जैसे विषय भी उठे। इनका उचित जवाब योगी ने पीठाधीश्वर के रूप में दिया। इन सबका प्रभाव तो पड़ना ही था। यही कारण है कि गुजरात के पश्चात् अब कर्नाटक सहित कई अन्य प्रांतों से योगी आदित्यनाथ की मांग उठने लगी है।

(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में प्राध्यापक हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)