यूपी सरकार के अपराधियों के प्रति इस कड़े रवैये के कारण भारत के सबसे बड़े प्रदेश का समाज जीवन तो सुरक्षित हो ही रहा है और साथ ही साथ आम जन भी अपने आप को सामर्थ्यवान महसूस करने लगे हैं। जहाँ पूर्ववर्ती सरकारों में जाति के दबंगों और समुदायों का शासन चलता था तथा सत्ता-समर्थित अपराधियों को संरक्षण मिलता था व राजधर्म गौण था; वहीं, योगी सरकार का यह शासनकाल राजधर्म के अनुकूल शासन के शुरुआत की सूचना दे रहा है।
किसी भी आबादी में समाज और सभ्यता की शुरुआत तब से मानी जा सकती है जब वहां उस समाज के सदस्यों के द्वारा किये जा रहे क्रियाकलापों का अच्छे-बुरे में वर्गीकरण होने लगता है। कुछ हरकतों को समाज वर्ज्य घोषित कर देता है एवं इन्हें समाज की अवधारणा और स्थायित्व के लिए खतरा मान लिया जाता है। ऐसा करने पर कठोर सज़ा का प्रावधान भी समाज द्वारा किया जाता है एवं इसे अपराध बोला जाता है। वहीं कुछ हरकतें ऐसी भी होती हैं, जिन्हें ना करने की सलाह दी जाती है, परंतु ऐसा हो जाने पर भी किसी भी तरह की वर्जना या सज़ा का प्रावधान नहीं होता। यह समाज की नैतिकता होती है। इसके अतिरिक्त, कुछ ऐसे भी व्यवहार सामने आते हैं, जिसकी परिकल्पना समाज ने कभी की ही ना हो। ये ना तो कानूनी होते हैं और ना ही गैर कानूनी और ना ही नैतिक या अनैतिक, समाज इन पर सोच ही रही होती है।
समाज, देश, काल एवं परिस्थितियों के हिसाब से ये गतिविधियों कभी अपराध बन जाती हैं, कभी नैतिकता का उल्लंघन तो कभी सामान्य लोकाचार। किसी भी राज्य का प्रथम उत्तरदायित्व राज्य के नियमों का पालन करने वाले, राज्य की सम्प्रभुता स्वीकार करने वाले नागरिकों को सुरक्षित जीवन प्रदान करने की होती है। सरकार या राज्य का प्रथम कार्य अपराधों एवं अपराधियों के खात्मे का होता है, इसके बाद ही राज्य अपने दूसरे कर्तव्यों का सफलता से क्रियान्वयन कर सकता है।
विभिन्न सभ्यताओं में इसी धर्मानुकूल शासन को कहीं रूल ऑफ लॉ कहा गया तो कहीं ऑर्डर बेस्ड सोसाइटी। हमारे जनमानस की यह सामान्य आकांक्षा रहती ही है कि उसका शासक राजधर्म का पालन करे। तो आखिर राज धर्म है क्या? जाहिर है, धर्म की संस्थापना और धर्मानुसार शासन। यहाँ धर्म का अर्थ किसी पूजा-पद्धति या एक समुदाय विशेष के दर्शन को पूरे राज्य के नागरिकों पर लागू करना नहीं होता है जैसा कि अक्सर वाम बुद्धिजीवियों के द्वारा प्रचारित किया जाता है। बल्कि एक ऐसे समाज की स्थापना जहाँ धारणा और विचारों पर बंदिश ना हो और समाज भयमुक्त और संवेदनशील हो और साथ ही साथ दूसरों की धारणा के प्रति मतभिन्नता रखते हुए भी सम्मान एवं आदर का भाव रखे।
अगर भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश को विकास की राह पर चलना है, तो वहाँ सबसे पहले भयमुक्त एवं शोषण रहित समाज की स्थापना करनी होगी। अपराधियों के मानवाधिकार हनन रोकने हेतु सक्रिय हो जाने वाले गैर सरकारी संगठनों को ये बात समझनी होगी कि राज्य का प्रथम कर्तव्य अपराधियों को रोकना और नागरिकों के मानवाधिकारों की सुरक्षा की होती है। राज्य का कर्तव्य ही अपराधियों से सख्ती से पेश आना एवं उनके कुनबे में भय उत्त्पन्न करना होता है। अगर यह कार्य कोई सरकार कर रही है, तो ये काबिलेतारीफ है और उस राज्य की जनता को इसका फायदा मिलेगा ही। साथ ही साथ, राज्य के अन्य विकासोन्मुखी कार्यों में भी प्रगति के देखने को मिलती है।
सवाल कुल मिलाकर यह है कि अपराधियों के साथ किस तरह का व्यवहार हो। उनपर नियंत्रण हेतु कितनी सहानुभूति के साथ पेश आया जाए ! हथियारबंद, सजायाप्ता, फरारी या इनामी गुंडों अपराधियों को पुलिस किस तरह पकड़े कि उनके मानवाधिकारों का बिलकुल भी हनन ना हो ! यहाँ इन सवालों के जवाब में सवाल पूछने वालों की मंशा पर प्रश्न उठाना काफी अहम् हो जाता है। जाहिर है उनकी चिंता के बिंदु अपराधियों की सुरक्षा की है परन्तु चूँकि सरकार का प्रथम कर्तव्य समाज को सुरक्षा देने का होता है तो पुलिस के लिए अपराधियों के मानवाधिकार की रक्षा उसके बाद ही आएगी और आनी भी चाहिए।
अपराधियों के साथ किस तरह का व्यवहार हो इस पर समाज की नैतिकता भी अब काफी बदल चुकी है। सुस्त और ढुलमुल अदालतों के कारण एवं न्याय व्यवस्था का अपराधियों के द्वारा दुरूपयोग के कारण हमारा समाज आरोपों के बाद तुरंत सजा की मांग करने लगा है। किसी हथियार बंद गिरोह के साथ पुलिस की मुठभेड़ एवं अपराधियों के इसमें मारे जाने को समाज अब इसकी सहमति देने लगा है। अपराधियों से त्रस्त आम लोगों का विश्वास अब इस सिद्धांत से हिल रहा है कि अदालत से जब तक कोई अपराधी घोषित ना हो तब तक उसे निर्दोष माना जाये। अपराध की दर एवं उसके बनिस्बत सजा का गिरता अनुपात इसके लिए मुख्य रूप से दोषी हैं।
इस जटिल परिस्थिति में घोषित अपराधियों के खिलाफ कड़ी कारवाई करके चाहे उसके लिए हथियारों का सहारा ही क्यों ना लेना पड़े युपी पुलिस ने अन्य छुटभैये अपराधियों के भीतर भय पैदा करने में सफलता पायी है। यूपी के अपराधियों का पड़ोसी राज्य में जाकर आत्मसमर्पण करने की घटना यूपी पुलिस एवं प्रशासन के इसी इकबाल की बानगी भर है। बड़े एवं संज्ञेय अपराधों के इतर भी छोटे मोटे अपराधों से समाज जीवन को सुरक्षित एवं बेहतर बनाने की पहल काफी कारगर रही है।
यूपी सरकार के अपराधियों के प्रति इस कड़े रवैये के कारण भारत के सबसे बड़े प्रदेश का समाज जीवन तो सुरक्षित हो ही रहा है और साथ ही साथ आम जन भी अपने आप को सामर्थ्यवान महसूस करने लगे हैं। जहाँ पूर्ववर्ती सरकारों में जाति के दबंगों और समुदायों का शासन चलता था तथा सत्ता-समर्थित अपराधियों को संरक्षण मिलता था व राजधर्म गौण था; वहीं, योगी सरकार का यह शासनकाल धर्मानुकूल शासन के शुरुआत की सूचना दे रहा है।
योगी सरकार के इन्हीं सशक्त फैसलों के कारण व्यापारी वर्ग का विश्वास फिर से प्रदेश की व्यवस्था में कायम होने लगा है। अभी हाल में ही संपन्न हुए निवेशकों के महाआयोजन में लाखों-करोड़ों के निवेश का प्रस्ताव भी योगी सरकार के इन्ही सख्त फैसलों के कारण संभव हो सका है। आज का यूपी, जहाँ योगी के सुशासन की शुरुआत हो चुकी है, विकास को तरस रहे पूरे उत्तर भारत को एक नयी दिशा दिखा रहा है। योगी सरकार की सख्त प्रशासक की छवि हमारे समाज की माँग के अनुरूप ही है और विकासशील से विकसित बनने की दिशा में पहला कदम मात्र है। इस क्षेत्र के बाकी पिछड़े राज्यों के लिए भी योगी आदित्यनाथ के शासन का तरीका अपनाने योग्य है। भय मुक्त समाज की स्थापना विकास के पथ पर पहला कदम है।
(लेखक नेशनलिस्ट ऑनलाइन में कॉपी एडिटर हैं तथा उच्चतम न्यायलय में वकालत करते हैं।)