डेयरी क्षेत्र के विकास से यूपी के किसानों को मजबूती देने में जुटी योगी सरकार

योगी सरकार की ओर से किसानों को चार-पांच दुधारू मवेशी खरीदने के लिए सब्‍सिडी देने का फैसला किया गया है। सरकार जानती है कि दुग्‍ध प्रसंस्‍करण क्षमता में ढाई गुना की बढ़ोत्‍तरी आसान नहीं है। इसीलिए वह गुजरात की भांति चारागाह विकास, दूध की खरीद-बिक्री,  भंडारण,  प्रशीतन, प्रसंस्‍करण, पैकेजिंग संबंधी बुनियादी ढांचा भी बना रही है। इन कोशिशों के कामयाब होते ही डेयरी क्षेत्र उत्‍तर प्रदेश की तस्‍वीर बदल देगा।

जब आमदनी अठन्‍नी और खर्चा रूपया हो तो कंगाली आना तय है। पिछली सरकारों की नाकामियों के कारण कुछ इसी प्रकार का वाकया उत्‍तर प्रदेश के किसानों के साथ घटित हो रहा है। आंकड़ों के मुताबिक 2013 में उत्‍तर प्रदेश में एक किसान परिवार की मासिक आमदनी 4932रूपया थी, तो खर्च 6230 रूपया। इस प्रकार किसान परिवार को हर महीने 1298 रूपये गैर-कृषि क्षेत्र से जुटाना  पड़ता है। जो परिवार इसे जुटा लेते हैं, वे भाग्‍यशाली हैं और जो नहीं जुटा पाते उन्‍हें परिस्‍थितियां  गरीबी के बाड़े में धकेल देती हैं।

स्‍पष्‍ट है बिना अतिरिक्त आमदनी के किसानों को गरीबी से निजात नहीं मिलेगी। लेकिन बदलते मौसम चक्र, कुदरती आपदाओं में इजाफा और खेती की बढ़ती लागत वाले दौर में खेती से अतिरिक्‍त आमदनी की उम्‍मीद करना बेमानी होगी। स्‍पष्‍ट है, हमें किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए उन उपायों को अपनाना होगा जो खेती के साथ जारी रहें और किसानों की नियमित  आमदनी  का जरिया बनें। इस दृष्‍टि से डेयरी क्षेत्र का महत्‍वपूर्ण स्‍थान है।

सांकेतिक चित्र (साभार ; गूगल)

शहरीकरण, मध्‍यवर्ग का विस्‍तार, क्रय क्षमता में इजाफा जैसे कारणों से दूध व दूध से बने उत्‍पादों की मांग तेजी से बढ़ रही है। यदि इस  मांग के अनुरूप दुग्‍ध उत्‍पादन, प्रसंस्‍करण, वितरण का नेटवर्क बनाया जाए तो डेयरी क्षेत्र किसानों के सशक्‍तीकरण के लिए वरदान साबित होगा। डेयरी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि दूध की अंतिम रूप से चुकाई गई कीमत का 70-80 फीसदी हिस्‍सा किसानों तक पहुंचता है। यह अनुपात किसी भी फसल की बिक्री से मिलने वाली कीमत से ज्‍यादा है। इसी को देखते हुए भारत में श्‍वेत क्रांति के जनक डॉ वर्गीज कुरियन ने कहा था “हमें अधिक उत्‍पादन के बजाए अधिक लोगों द्वारा उत्‍पादन” का मूल मंत्र अपनाना होगा।

डेयरी क्षेत्र की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसके साथ कई सहायक गतिविधियां जुड़ी हुई हैं और सभी गतिविधियां नियमित आमदनी का जरिया हैं। फिर डेयरी विकास में छोटे किसानों और महिलाओं की अहम भागीदारी रहती है। डेयरी क्षेत्र के महत्‍व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि देश के सकल कृषि घरेलू उत्‍पाद का एक-तिहाई हिस्‍सा डेयरी क्षेत्र से आता है। इसी को देखते हुए डॉ वर्गीज कुरियन ने कहा था अमूल मॉडल डेयरी का व्‍यवसाय न होकर गांवों का सामूहिक व्‍यवसाय है। स्‍पष्‍ट है गांवों में मेक इन इंडिया मुहिम डेयरी से ही संभव है।

ग्रामीण विकास में डेयरी के महत्‍व को देखते हुए केंद्र सरकार ने 2017-18 के बजट में अगले तीन साल में डेयरी संबंधी आधारभूत ढांचा हेतु 8000 करोड़ रूपये  आवंटित किया है। आजादी के बाद पहली बार डेयरी विकास के लिए इतना ज्‍यादा आवंटन हुआ है। इससे प्रतिदिन 5 करोड़ लीटर दूध  की प्रासेसिंग  क्षमता बढ़ेगी और डेयरी किसानों को हर साल50000 करोड़ की आमदनी होगी। इससे किसानों को आमदनी,  देशवासियों को पोषण, ग्रामीण अर्थव्‍यवस्‍था में समृद्धि जैसे बहुआयामी लक्ष्‍य हासिल होंगे। मोदी सरकार 2022 तक किसानों की आमदनी दुगनी करने का लक्ष्‍य तय किया। इसकी पूर्ति में डेयरी विकास में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

दुर्भाग्‍यवश डेयरी की अनंत संभावनाओं के बावजूद पिछली सरकारों द्वारा ठीक से ध्यान न दिए जाने के कारण उत्‍तर प्रदेश इस क्षेत्र में पिछड़ा हुआ है। दूध उत्‍पादन में 18 फीसदी योगदान के साथ उत्‍तर प्रदेश पहले नंबर पर है। यहां सबसे ज्‍यादा भैंस पाली जाती हैं। अधिकांश जनसंख्‍या किसी न किसी रूप में पशुपालन से जुड़ी है। यद्यपि राज्‍य सरकारों ने पशुओं के नस्‍ल सुधार और दूध उत्‍पादन के लिए अनेक प्रयास किए लेकिन उनका सीमित असर पड़ा। इसी का नतीजा है कि प्रदेश में डेयरी अर्थव्‍यवस्‍था का अभिन्‍न अंग नहीं बन पाई है।

सांकेतिक चित्र (साभार: गूगल)

इसे उत्‍तर प्रदेश और गुजरात के आंकड़ों के जरिए समझा जा सकता है। संगठित डेयरी के अभाव में उत्‍तर प्रदेश का अधिकांश दूध असंगठित क्षेत्र में बेचा जाता है, जिससे किसानों को उचित कीमत नहीं मिल पाती है। अमूल ने 2015 में प्रदेश में तीन प्रसंस्‍करण इकाइयां कानपुर, लखनऊ और वाराणसी में स्‍थापित की हैं। ये इकाइयां हर रोज एक लाख किसानों से 5 लाख लीटर दूध एकत्र करती हैं। दूसरी ओर गुजरात में अमूल 36 लाख किसानों से हर रोज 177 लाख लीटर दूध खरीदता है। 

गौरतलब है कि 2015-16 में उत्‍तर प्रदेश में 36380 मिलियन लीटर दूध का उत्‍पादन हुआ जबकि गुजरात में 12260 मिलियन लीटर। दूध प्रसंस्‍करण करने वाली इकाइयों की स्‍थापना में भी उत्‍तर प्रदेश पिछड़ता जा रहा है। 2011-12 से 2013-14 के बीच गुजरात में दही, घी, मक्‍खन, पनीर जैसे डेयरी उत्‍पाद बनाने वाली इकाइयों की संख्‍या में 26 फीसद की बढ़ोत्‍तरी हुई जबकि उत्‍तर प्रदेश में इनकी संख्‍या 5 फीसदी घट गई। यही हालत दूध उत्‍पादन की भी है। 2014 से 2015 के बीच देश में दूध का उत्‍पादन 6 फीसदी की दर से बढ़ा जबकि उत्‍तर प्रदेश में यह वृद्धि महज 4.7 फीसदी रही।

प्रदेश में डेयरी विकास की नोडल एजेंसी प्रादेशिक कॉऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन है। डेयरी उद्योग को बढ़ावा देने हेतु चारा विकास, महिला डेयरी, कामधेनु, मिनि व माइक्रो कामधेनु जैसी योजनाएं क्रियान्‍वित की जा रही हैं। इनके तहत लाभार्थियों को सब्‍सिडी पर लोन उपलब्‍ध कराया जा रहा है। इसके बावजूद प्रदेश के 97941 गांवों में से 11500 गावों में ही दुग्‍ध समितियों का गठन हो पाया है। इसी को देखते हुए मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने अमूल मॉडल के जरिए दूध प्रसंस्‍करण अनुपात को मौजूदा 12 फीसदी से बढ़ाकर 30 फीसद करने का लक्ष्‍य रखा है।

इसके साथ-साथ अब योगी सरकार की ओर से किसानों को चार-पांच दुधारू मवेशी खरीदने के लिए सब्‍सिडी देने का फैसला किया गया है। सरकार जानती है कि दुग्‍ध   प्रसंस्‍करण क्षमता में ढाई गुना की बढ़ोत्‍तरी आसान नहीं है। इसीलिए वह गुजरात की भांति चारागाह विकास, दूध की खरीद-बिक्री,  भंडारण,  प्रशीतन, प्रसंस्‍करण, पैकेजिंग संबंधी बुनियादी ढांचा भी बना रही है। इन कोशिशों के कामयाब होते ही डेयरी क्षेत्र उत्‍तर प्रदेश की तस्‍वीर बदल देगा।

(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)