- भूपेंद्र यादव
छह अप्रैल को भाजपा अपनी स्थापना के 36 वर्ष पूर्ण करने जा रही है। भाजपा की स्थापना जनसंघ की राजनीतिक विचारधारा के उत्तराधिकारी के रूप में हुई। जनसंघ की विचारधारा का भारतीय राजनीति में प्रवेश नया नहीं था। यह देश की आजादी के साथ सांस्कृतिक पुनर्जागरण की धारा का ही रूप था, जो राष्ट्रीय अस्मिता से जुड़ा विषय था। हमारे राष्ट्रीय आंदोलन के नेतृत्वकर्ता महात्मा गांधी एवं अन्य राजनेताओं की भी राष्ट्रीय अस्मिता और स्वाभिमान पर कमोबेश यही राय थी। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में जनसंघ की स्थापना सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के दृष्टिकोण से की गई थी। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को भी किसी एक मजहब, परंपरा या पंथ से जोड़कर देखना उचित नहीं है। यह भारत की विविधतापूर्ण संस्कृति पर आधारित समन्वयकारी, उदारवादी, मानवतावादी शाश्वत जीवन मूल्यों को स्वीकार करने वाली जीवन पद्धति को सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक पक्ष में आचरण का मानक प्रदान करने वाली थी। इसमें डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के प्रखर नेतृत्व के साथ-साथ संगठनकर्ता पंडित दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानवतावादी दर्शन आधार रूप में था। इस दर्शन के मूल में व्यक्ति की गरिमा के साथ उसके संपूर्ण सृष्टि विस्तार का विचार जुड़ा था, जिसमें संकुचित राष्ट्रवाद न होकर वसुधैव कुटुंबकम का भारतीय आदर्श था। 1आजादी के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में हमारी राजनीतिक नीतियों में आधुनिकता एवं मानवतावादी मूल्य तो थे, परंतु राष्ट्रीय अस्मिता, स्वाभिमान नेपथ्य में रह गया था। हम भारतीयता की पहचान के साथ अंतरराष्ट्रीय फलक पर अपने परंपरागत स्वीकार्य मूल्यों के साथ आगे बढ़ने के बजाय पश्चिम के पिछलग्गू होकर अंधानुकरण करने लगे। फलत: राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण आवश्यक नहीं माना जाने लगा। ऐसा नहीं था कि भारत में गैर कांग्रेसी दलों में राष्ट्रप्रेम या राष्ट्रहित नहीं था, यह राष्ट्रप्रेम ही था जिसके कारण 1971 के युद्ध में सारे राजनीतिक दलों ने इंदिरा गांधी के नेतृत्व में अन्य वैचारिक असहमतियों के बावजूद एकजुटता दिखाई, परंतु उसके तुरंत बाद जब उनके द्वारा आपातकाल के माध्यम से देश के लोकतंत्र एवं अभिव्यक्ति को बंधक बनाया गया तो सभी गैर कांग्रेसी राजनीतिक दलों ने एकजुट होकर जयप्रकाश के नेतृत्व में लोकतंत्र को बचाने का कार्य किया। भारतीय जनादेश ने उस पर अपनी मुहर लगाई, परंतु जनता पार्टी का यह प्रयोग पूर्ण सफल नहीं हो सका और भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई। 1980 में पार्टी के समक्ष लक्ष्य स्वयं का विस्तार करने के साथ अपनी रचनात्मक नीतियों के द्वारा देश के विकास में राजनीतिक भागीदारी भी था। अपनी स्थापना के पश्चात पार्टी के समक्ष महत्वपूर्ण चुनौती भारत के सभी क्षेत्रों में अपना विस्तार करने एवं सत्ताधारी कांग्रेस से भिन्न एक भारतीय राजनीतिक दल के रूप में अपनी स्वीकार्यता बनाने की थी। भाजपा के सरोकार राष्ट्र के साथ-साथ वैश्विक परिदृश्य से भी थे। ज्ञान-विज्ञान और आधुनिक तकनीक के प्रति सम्मान और सदुपयोग का भाव पार्टी का सदा से रहा, परंतु बाजारवाद, नव उदारीकरण और उपभोक्तावाद के प्रति पूर्ण समर्पण के बजाय समाज के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति को न्याय दिलाना और संपन्न वर्ग को राष्ट्रहित से जोड़ना भी भाजपा आवश्यक मानती है। 1अस्सी के दशक में देश को नए विकल्प की तलाश थी। भाजपा ने जहां राम जन्मभूमि आंदोलन और तिरंगा यात्र के द्वारा देश की राष्ट्रीय एकात्मता एवं सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को प्रखर बनाने का काम किया वहीं असम और पंजाब में तत्कालीन सरकार के निर्णयों से असहमति जताते हुए स्थानीय समस्या के विषय को राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में रखा। देश के वंचित एवं पिछड़े वर्गो के समान अवसरों की वकालत करते हुए पार्टी ने समतामूलक समाज की स्थापना को अपनी पार्टी की निष्ठा में शामिल किया। 90 का दशक आते-आते भाजपा सशक्त राजनीतिक दल के रूप में स्थापित हो गई। फलत: 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में कांग्रेस के विकल्प रूप में गठबंधन सरकार आई। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की समझबूझ, उदारता और समन्वयकारी नीतियों ने भारतीय राजनीति में गठबंधन धर्म के निर्वाह का पहली बार सफल प्रयोग किया, क्योंकि इसके शीर्ष नेतृत्व की प्रतिबद्धता सभी को साथ लेकर चलने की थी। 2004 में केंद्र में संप्रग की सरकार बनी, परंतु भाजपा की सरकारें विभिन्न राज्यों में सुशासन एवं विकास के मॉडल पर कार्य करती रहीं। भाजपा के राज्यों के विकास मॉडल की चाह केंद्र स्तर पर भी हुई और 2014 में आजादी के बाद के इतिहास में पहली बार कांग्रेस से इतर दल भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिला, परंतु फिर भी हमारे नेतृत्व ने बिना अहंकार के गठबंधन धर्म को वरीयता दी। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार जनआकांक्षाओं का केंद्र बन चुकी है एवं राष्ट्रीय चरित्र के विकास के लिए प्रतिबद्ध है। अभी तक वामपंथियों के माध्यम से सामाजिक विसंगतियों एवं क्षेत्रीय असमानता को नकारात्मक रूप से प्रस्तुत किया गया है। कांग्रेस 67 वर्षो के शासन में जहां एक ओर बिजली, पानी और सड़क जैसी बुनियादी चीजें लोगों तक नहीं पहुंचा पाई वहीं सामाजिक भागीदारी से समाज का पिछड़ा एवं दलित वर्ग वंचित रहा। भाजपा ने भारत की राष्ट्रीय पहचान, सांस्कृतिक जागरण, समतामूलक समाज की स्थापना और प्रगतिशील एवं आधुनिक भारत का निर्माण एक बड़े मिशन के रूप में लिया है। यही भाजपा की विकास यात्र का अगला पड़ाव बनेगा।
(लेखक भाजपा के महासचिव और राज्यसभा सांसद हैं)
Courtesy : dainik jagaran 6th April 2016