जिस संघ को कांग्रेस ने अपने खिलाफ उठे जनाक्रोश को भटकाने के लिए फासीवादी कहा था उसी संघ के एक शिविर में जेपी 1959 में जा चुके थे. उन्होंने संघ को कभी अछूत नहीं माना. आपातकाल के बाद जब जेपी जेल से छूटे तो उन्होंने मुंबई में एक सभा को संबोधित करते हुए कहा था, ‘मैं आत्मसाक्ष्य के साथ कह सकता हूं कि संघ और जनसंघ वालों के बारे में यह कहना कि वे फासिस्ट लोग हैं, सांप्रदायिक हैं- ऐसे सारे आरोप बेबुनियाद हैं.’ तीन नवंबर 1977 को पटना में संघ के लिए जेपी ने कहा था कि नए भारत के निर्माण की चुनौती को स्वीकार किए हुए इस संगठन से मुझे बहुत कुछ आशा है. आपमें ऊर्जा है, आपमें निष्ठा है और आप राष्ट्र के प्रति समर्पित हैं.
दरअसल यह वो दौर था जब देश का आम जनमानस कांग्रेस के एकदलीय व्यस्व्था की उभार से मुक्ति पाना चाहता था एवं कम्युनिस्टों की विचारधारा उन्हें इस देश को भारतीयता के अनुरूप नही लगी. लिहाजा उस दौर में गैर-कांग्रेसवाद के खिलाफ उठे हर आन्दोलन को विपक्ष के उभार एवं स्थापना का आन्दोलन कहा जा सकता है. आमजन के मन में मजबूत विपक्ष के उभार की इच्छा थी और लोकतन्त्र के नाम पर एकदलीय तानाशाही को देश की जनता कतई स्वीकार नही कर पा रही थी.